हर मोहब्बत करने वाला इंदिरा और अमृता बनना चाहता है
प्रियदर्शन शर्मा
मोहब्बत करने वालों के बारे में कहा जाता है कि जो लोग प्रेम में होते हैं वे दो भिन्न नदियों की भांति होते हैं ।
जैसे दो नदियां मिलती हैं और उनका पानी एक हो जाता है, उसी तरह दो लोगों के बीच का प्यार होता है।
यह भी एक अनोखा संयोग है कि इंदिरा गांधी और अमृता प्रीतम दोनों की आज 31 अक्टूबर को पुण्यतिथि है।
हालांकि अमृता का जन्म भी 1919 में 31 अगस्त को ही हुआ था। तो 31 से विशेष वास्ता रखने वाली अमृता प्रीतम को जब भी कोई याद करेगा तब वह उन्हें प्रेम के खांजे में रखकर ही देखेगा। इसी तरह 31 से वास्ता रखने वाली इंदिरा के जीवन में भी प्रेम का एक विशेष स्थान रहा।
अपने अपने क्षेत्र की इन दो सफल नायिकाओं को मैं जब भी देखता हूं तो ऐसा लगता है कि जैसे दोनों का कोई पुराना नाता हो। नैन-नक्श से लेकर जीवन में प्रेम की कहानियां तक, सब कुछ मिलता जुलता।
दिलकश अदा और दिलफरेब खूबसूरती क्या होती है यह अमृता और इंदिरा को देखने से पता चलता है। प्रेम में पागलपन क्या होता है यह भी इन दोनों के जीवन में झांकने पर पता है।
चाहे साहिर और इमरोज के साथ बीता अमृता का समय हो या फिर इंदिरा का फिरोज के साथ इश्कियापा। दोनों जब तक रहीं पूरी शिद्दत से अपनी जिंदगी को जीती रहीं।
बगावती तेवर भी दोनों में कूट-कूट कर एक समान और प्यार के लिए हर झंझावात को झेलने का माद्दा भी एक सा। प्रेम में सिर से पांव तक डूबी दोनों महानायिकाएं आज़ाद बला की थी और खुद्दार भी उतनी ही।
मशहूर शायर साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम को लेकर कई क़िस्से हैं। अमृता प्रीतम ने भी बेबाकी से साहिर के प्रति अपने प्रेम को बयां किया है। इसी तरह इंदिरा और फिरोज की मोहब्बत।
इंदिरा के कई किस्से हवा में तैरते रहे। कुछ समय पूर्व मथाई की ‘शी’ शीर्षक वाली आत्मकथा में भी दावा किया गया कि उनके भी इंदिरा से निकटस्थ संबंध थे।
हालांकि इश्क अमर होता है। उसे सरहद, जाति, मज़हब या वक्त के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। मोहब्बत की कहानियां, किरदारों के गुजर जाने के बाद भी जिंदा रहती हैं।
ये एक ऐसी शै है कि जिसे हर कोई जीना चाहता है लेकिन उसके लिए जो जिगर चाहिए वह सबमें नहीं होता।
मेरा मानना है कि शीरीं-फरहाद, हीर-रांझा, लैला-मजनूं या रोमियो-जूलियट को भले ही हमने सुना लेकिन हाल के वर्षों में इश्क को जीने वाली दो महिलाओं को भारत ने देखा तो वे अमृता और इंदिरा ही रहीं।
अपने लिए प्रेम का गलियारा खुद तय करने वाले लोग बड़े साहसी होते हैं।
अमृता और इंदिरा दोनों वैसी रही थी। लेकिन कहते हैं न प्रेम में डूबी हर स्त्री अमृता होती है या फिर होना चाहती है पर सबके हिस्से कोई इमरोज नहीं होता।
तो अमृता के हिस्से भले इमरोज रहे और साहिर में दिखी मोहब्बत को स्वीकारने का जज़्बा भी रहा लेकिन इंदिरा इस मामले में अमृता नहीं हो पाई।
इसलिए अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा “रसीदी टिकट” में एक जगह इंदिरा गांधी से अपनी उस बातचीत का जिक्र किया है, जब इंदिरा गांधी पर बासु भट्टाचार्य फिल्म बना रहे थे।
वे लिखती हैं- शूटिंग के समय मैंने पूछा- इंदिरा जी आप औरत हैं, क्या कभी इस बात को लेकर लोगों ने आप के रास्ते में रुकावट पैदा की है?
तो उनका जवाब था- इसके कुछ एडवांटेज होते हैं कुछ डिसएडवांटेज भी। पर मैंने कभी इस बात पर ग़ौर नहीं किया। औरत-मर्द के फर्क में ना पड़कर मैंने अपने आपको हमेशा इंसान सोचा है।
शुरू से जानती थी मैं हर चीज के काबिल हूं, कोई समस्या हो, मर्दों से ज्यादा अच्छी तरह समझ सकती हूं, सिवाय इसके कि जिस्मानी तौर पर बहुत वजन नहीं उठा सकती। और हर बात में हर तरह काबिल हूं।
इसलिए मैंने अपने औरत होने को कभी किसी कमी के पहलू से नहीं सोचा। जिन्होंने शुरू में मुझे सिर्फ औरत समझा था, मेरी ताकत को नहीं पहचाना था, वह उनका समझना था, मेरा नहीं…।”
शायद इंदिरा की इस प्रकार की सोच भी मोहब्बत में उनके अमृता न बनने का कारण रहा होगा?