कोरोना जैसी महामारियों का अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव
महामारियों का इतिहास-4
महामारी काल में मृत्यु भय से कम अर्थ भय नहीं होता है।महामारियों के समय जीवन के लय के साथ अर्थव्यवस्था का लय भी भंग हो जाता है।महामारियों से बचने वाले से आर्थिक तंगी का शिकार हो जाते है।वर्तमान महामारी कोरोना कोविड काल में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है।इसमे विकाशील देश विशेष रूप से प्रभावित हुए है।
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महामारी काल में मृत्यु भय से कम अर्थ भय नहीं होता है।महामारियों के समय जीवन के लय के साथ अर्थव्यवस्था का लय भी भंग हो जाता है।महामारियों से बचने वाले से आर्थिक तंगी का शिकार हो जाते है। वर्तमान महामारी कोरोना कोविड काल में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है।इसमे विकाशील देश विशेष रूप से प्रभावित हुए है।महामारियों के इतिहास में देखा जाय तो लगभग 100 वर्षो बाद ऐसी कोविड के रूप ऐसी महामारी फैली है जिससे पूरी दुनियाँ एक साथ प्रभावित हुई ।
इसे वैश्विक शासकों की लापरवाही कहे या अतिआत्मविश्वास,जिसके कारण जब चीन अपने एक शहर के कोरोना संक्रमण से निपट रहा था,तो अन्य देश उससे व्यापार बन्द कर उसकी गिरती अर्थव्यवस्था पर कुटिलता से मुस्करा रहे थे,परन्तु कुछ दिनों में परिदृश्य उलट गया।कोविड के चीन ने वुहान में ही नियंत्रित कर पूरे देश में फैलने बचा लिया तथा देखते ही देखते इटली,ईरान,अमेरिका,ब्रिटेन,ब्राजील,फ्रांस,भारत,आदि सभी देश पूरी तरह महामारी के जद में आ गये ।
कोरोना महामारी से निपटने के लिए हड़बड़ी में लाकडाउन,मास्क,सेनेटाईजर का चीनी माडल अपना लिए ।रातो-रात चीन कोरोना से निपटने के संसाधनों का विश्व का एक मात्र निर्मता व निर्यातक बन बैठा।उसकी गिरी अर्थव्यस्था उठने लगी,इधर बाकि दुनिया की अर्थव्यवस्था धड़ाम होने लगी।अमेरिका सहित कई देशों की कम्पनियों में चीन भारी निवेश कर अपने नियंत्रण मे करने लगा।इस स्थिति में अब भारत का नम्बर आने वाल था कि विपक्षी नेता राहुल गाँधी के सावधान करने पर सरकार ने भारतीय कम्पनियों में चीनी निवेश के लिए सरकारी अनुमति आवश्यक कर दिया।फिर भी अचानक लाकडाउन ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ असंगठित क्षेत्र
यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ असंगठित क्षेत्र है,महामारी के बचाव में अचानक लगाये गये लाकडाउन से सबसे अधिक यही क्षेत्र प्रभावित हुआ।पर्यटन,रेल,हवाई,होटल,खुदरा कारोबार,दैनिक मजदूर,ठेकेदारी आदि पूरी तरह ध्वस्त हो गये.जिसके परिणाम स्वरूप भारत की जीडीपी नकारात्मक स्तर पर पहुँच गयी,रही-सही कसर दूसरी लहर में पूरा कर दिया।
इस तरह महामारी में अर्थव्यवस्था को समझने के लिए अतीत के कुछ पन्ने पलटना आवश्यक है।भारतीय इतिहास के मौर्यकाल में हैजा महामारी के कारण लाखो लोग मारे गये।जिसमें सबसे अधिक मजदूर किसान थे।उत्पाद और उपभोग पूरी तरह ठप हो गया।जिससे राज्य में दुर्भिक्ष(अकाल)फैल गया।जिससे उबारने के लिए सम्राट के विमर्श से रसायन शास्त्री नागार्जुन से पारा से सोना बनाया,सोने व अन्य धातु के भस्मों से दवायें बनायी।सोने के निर्यात से राज्य की अर्थव्यस्था एवं भस्मों से महामारी पर नियंत्रण पाया जा सका ।
इस संदर्भ मे आज भारत को देखे तो यहाँ भी एक संघीय अर्थव्यवस्था है,जिसकी चाबी सैद्धांतिक रुप से केन्द्र सरकार के हाथ में होती है,परन्तु वास्तव में यह शक्ति व्यापारिक घरानों व उद्योगपतियों के पास होती है।सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर अर्थव्यवस्था की मूलाधार आम जनता होती है,क्योकि जनता के पास ही श्रम शक्ति होती है।जिससे देश की उत्पादकता होती है।जिसका उपभोग भी जनता ही करती है।महामारी काल में जनता के श्रम व उपभोग की तारतम्यता टूट जाती है।जिसे पुनः स्थापित करना शासन के लिए सबसे कठिन चुनौती होती है।
हाँलाकि यह चुनौती पूरी दुनियाँ के देशो के सामने है परन्तु बहु स्तरीय विषम अर्थव्यवस्था वाले विकासशील देशों के लिए अत्यंत विकट स्थिति है ,क्योकि महामारी काल में जिसके पास जो धन होता है उसे व्यय करना बन्द कर देता है।जिसके पास श्रम होता है वह श्रम का अवसर खो चुका होता है। क्रय-विक्रय की प्रक्रिया का अवरुद्ध हो जाती है।जिसके परिणाम स्वरुप बाजार ध्वस्त हो जाता है।
मौलिक उत्पादक कृषको का उत्पाद विक्रय के अभाव में अवमूल्य होकर नष्ट होने लगता है। यह संकट आरोही क्रम में अर्थव्यवस्था के लिए उत्तरदायी केन्द्रों अर्थात सरकारों, उद्योगपतियों,व्यापारियों तक पहुँच जाता है।शासकीय राजकोष महामारी भेंट चढ़ जाता है।अंततः राज्य में अर्थिक महामारी का शिकार हो जाता है। जिससे राजकार्मियों का छँटनी होने लगती है,वेतन कम होने लगता है।जिससे राजकर्मी विक्षुब्ध हो जाते है।परिणाम स्वरूप व्यवस्था अनियंत्रित हो जाती है।ऋण भार बढ़ने लगता है। शिक्षा, चिकित्सा के साथ सुरक्षा तंत्र भी कमजोर होने लगता है।उत्पादन कम होने ले मँहगाई बढ़ने लगती है,आढती अधिक लाभ के लोभ में जमाखोरी करने लगते है।जनता अकिंचन हो जाती है।इतिहास के अनुसार यह राज्यों के उत्थान-पतन का कारण होता है।ऐसी ही परिस्थितियों में रोम,चीन यांग,ब्रिटीश साम्राज्यों पतन हुआ था।
आचार्य कौटिल्य के अनुसार दुर्भिक्ष काल में संचित कोष व विदेशी मुद्रा संजीवनी का कार्य करती है।इस काल में राजपुरुषो के अपव्यय व प्रदर्शनकारी कार्यो को बन्द कर देना चाहिए।अति आवश्यक कार्य व योजनायें जारी रखना चाहिए।राजकोषिय धन से व्याधिग्रस्त विपन्न जनता, राजकार्मिक, शिक्षा,सेना अर्थिक महामारी का आभास नहीं होने देना चाहिए.क्योंकि उनकी हताशा शासन व बाजार दोनों को हतोत्साहित करती है।
संचित राजकोष व विदेशीमुद्रा कोष का उपयोग श्रम,उत्पादन व उपभोग की प्रक्रिया को पुनर्थापित करना चाहिए है। यहाँ सतर्कता की आवश्यकता यह होती है कि प्रजा,श्रमिक व्यापारियों को समान सहायता का प्रबंध करना चाहिए। व्यवस्था के पुनः स्थापना से जनता से अर्थिक महामारी का भय दूर होता है।अभय के वातावरण में उत्पादन,क्रय,विक्रय की तारतम्यता का पुनर्स्थापन संभव होता है। राज्य पुनः प्रगति पथ पर गतिशील होकर अपना अस्तित्व सुरक्षित कर लेता है।इस काल में सबसे महत्वपूर्ण मित्र व शत्रु राष्ट्रो की पहचान होती है,क्योकि सर्वत्र महामारी के व्याप्त होने के कारण अनेक प्रकार कुटिल षडयंत्र भी चलते रहते है।
आज के संदर्भ मे हमारी सरकारे कौटिल्य सूत्र का कितना प्रयोग करती यह भविष्य के गर्भ में है। क्षणिक आवेग पैदाकर महाव्यापद एवं दुर्भिक्ष नहीं निपटा जा सकता है।
वैद्य डा .आर.अचल ,संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट,लेखक एवं आयोजन सदस्य-वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस, देवरिया
सटीक व्याख्या