डा बनवारी लाल शर्मा – एक सच्चे, क्रांतिकारी सामाजिक कार्यकर्ता
मनीष सिन्हा , जिला सचिव , पीयूसीएल , इलाहाबाद।
डॉ बनवारी लाल शर्मा के जन्म दिवस पर …………….साथियों इस देश में बौद्धिक लोगों की संख्या कम नहीं है और समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपने आपको समाज निर्माण में लगा दें ऐसे लोग भी कम नहीं हुए हैं लेकिन आदर्श बौद्धिकता,खांटी सामाजिक कार्यकर्ता और चौबीस घंटे जिसके पोर पोर में समाज निर्माण की बेचैनी हो ; यह सभी गुण किसी एक मनुष्य में बहुत कम दिखते हैं। डॉ० बनवारी लाल शर्मा जी ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे।
आज उनके जन्मदिवस पर यह कहा जा सकता है कि हिंदुस्तान में डॉ० शर्मा पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कॉरपोरेटीकरण अथवा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते दखल को न केवल तीसरी दुनिया के लोगों के लिए घातक बताया बल्कि विकसित देशों के लिए भी प्रमुख समस्या घोषित किया।
20 मई 1935 को तत्कालीन आगरा जिले में जन्मे डॉ बनवारी लाल शर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा की डिग्री ली और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद गणित में शोध के लिए उन्हें पेरिस यूनिवर्सिटी से डीएससी की उपाधि मिली। वह हिंदुस्तान के पहले व्यक्ति थे जिन्हें पेरिस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका मिला। उस जमाने में हमेशा के लिये उन्हें वहां पढ़ाने का निवेदन किया गया लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गणित विभाग के विभागाध्यक्ष के पद से रिटायर हुए और यह सुनने में काफी अजीब सा लगता है कि गणित का प्रोफेसर इतना बड़ा है सामाजिक कार्यकर्ता भी बन सकता है।
1991 में जब नयी आर्थिक नीतियों और साम्प्रदायिकता के द्वारा भ्रम की स्थिति फैलाई जा रही थी तो उस समय उन्होंने कहा था कि यह विचार न तो अपने समाज की उपज है, नहीं समाज के लिए हितकर साबित होगा। नई आर्थिक नीतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की हित साधक है इसलिए उन्होंने इनके विरोध का व्यावहारिक रास्ता चुना तथा विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामानों के बहिष्कार का कार्य प्रारंभ किया।
समाज, मानवता तथा पर्यावरण की रक्षा आज की वैश्विक चुनौती है जिसे प्रोफेसर शर्मा में सही संदर्भों में पहचाना था। संसाधनों पर सामाजिक मिल्कियत का एक नया दर्शन उन्होंने गढ़ा ; देश भर का सघन दौरा करते हुए गांव तथा अंचलों की दुर्दशा तथा आदिवासियों पर अत्याचारों को उन्होंने अपनी आंखों से देखा तथा जल, जंगल, जमीन को बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा लूटते देखने पर उन्होने उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ समेत अनेक प्रांतों में स्थानीय लोगों को एकत्रित कर मोर्चाबंदी की एवं बड़ी पूंजी के विरोध में उत्पादन की वैकल्पिक तरीकों पर गंभीरता से चर्चा की तथा उसे मूर्त रूप दिया।
उनके द्वारा स्थापित आजादी बचाओ आंदोलन और स्वराज विद्यापीठ रचना और संघर्ष दोनों कार्य करते रहें। व्यक्तिगत रूप से 2004 से लेकर उनके निधन तक उनके नेतृत्व में समाजिक कार्यों को करने का अवसर मुझे मिला। कई बार मैंने उन्हें किसानों की दुर्दशा पर रोते हुए भी देखा है। वह जितने बड़े क्रांतिकारी थे उतने ही संवेदनशील इंसान थे,मेरे जैसे साधारण कार्यकर्ता जो यदि 2 महीने बाद भी मिलता था, उन्हें यह बात याद रहता था कि मेरी छोटी सी बीमारी या समस्या की भी बात याद रहती थी और वह समस्या दूर हुई कि नहीं वह इस बारे में पूछते थे।
आज पूरे भारत समेत इलाहाबाद को उनकी कमी खलती है। शहर में जब भी सामाजिक रूप से संवेदनशील लोगों की बैठक होती है चाहे वह नागरिक समाज के द्वारा हो या अन्य संगठन के द्वारा अक्सर यह चर्चा होती है कि आज अगर डॉ० शर्मा होते तो ……।
जयप्रकाश जी के संपूर्ण क्रांति आंदोलन में उन्होंने इलाहाबाद का नेतृत्व किया और जब सरकार बनी तो राज्यसभा से लेकर अन्य कई गतिविधियों में शामिल होने का अवसर भी मिला लेकिन उन्होंने सिद्धांत के लिए सत्ता को ठुकरा दिया।
जब डॉ० मनमोहन सिंह यूजीसी के चेयरमैन हुआ करते थे तब डॉ० शर्मा यूजीसी के सदस्य थे और तत्कालीन समय में अक्सर कहा करते थे कि वित्तविहीन कॉलेज का नजरिया देश को शिक्षा को गर्त में ले जाएगा वही आज दिख भी रहा है।
डॉ मुरली मनोहर जोशी के द्वारा इन्हें यूजीसी के चेयरमैन बनाए जाने का भी प्रस्ताव मिला जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था। वह अक्सर कहा करते थे कि राजनीति के खेल के नियम जब तक बदले नहीं जाएंगे सत्ता से सामाजिक निर्माण नहीं हो सकता है और वह चीज आज दिख भी रहा है।
उनकी सामाजिक यात्रा आचार्य विनोबा भावे के नेतृत्व में सर्वोदय अभियान से शुरू हुई थी। दुख की बात यह है कि जिस उदारीकरण के खिलाफ वह आजीवन लड़ते रहे,उसी उदारीकरण का नतीजा है कि आज की अधिकांश युवा पीढ़ी उन्हें नहीं पहचानती है।
भारत की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को काफी नजदीक से देख कर उसके खिलाफ एक समांतर व्यवस्था के लिए प्रयास करना…… यही उनका अंतिम लक्ष्य था और अगर मैं गलत नहीं है तो इनके समकक्ष प्रोफेसर वी. डी. शर्मा को ही रखा जा सकता है।
कृपया इसे भी सुने : https://www.youtube.com/watch?v=oj3G_uG3ukk&t=26s
जयप्रकाश जी के आंदोलन और आपातकाल में श्री रामदत्त त्रिपाठीजी के साथ ही डॉ शर्मा से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।