डबल डाइंग डिक्लेरेशन
किसी अपराध से पीड़ित व्यक्ति द्वारा मृत्युपूर्व दिया गया बयान (डाइंग डिक्लेरेशन) इस मान्यता के कारण सच माना जाता है कि आसन्न मृत्यु का ज्ञान हो जाने पर व्यक्ति सच ही बोलता है। यह बयान किसी के सामने दिया हुआ हो सकता है, परंतु यदि मजिस्ट्रेट के सामने का है तो लगभग अकाट्य माना जाता है। मेरे एक अनुभव ने इस मान्यता से मेरी आस्था समाप्त कर दी है।
उस समय मेरी नियुक्ति एसएसपी, बरेली के पद पर थी। एक दिन प्रातःकाल 6 बजे थानाध्यक्ष, फ़तेहगंज पश्चिमी का फोन आया, “सर! आज रात में एक गांव के पास एक लड़के को चाकू मार दिया गया है। लड़के को फ़तेहगंज पश्चिमी के पीएचसी में लाया गया, जहां प्राथमिक चिकित्सा देकर डाक्टर ने उसकी गम्भीर दशा को देखकर उसे ज़िला अस्पताल बरेली भेज दिया है। उसके घर वाले एफ़आईआर में दो अभियुक्तों को नामज़द कर रहे हैं, जिनमें एक नाम उस व्यक्ति से अलग व्यक्ति का है, जो मुझे पीएचसी जाने पर रात में पता चले थे। सर! मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? इनके द्वारा बताई एफ़आईआर लिखने से एक असली अपराधी छूट जायेगा और एक निर्दोष फंस जायेगा; और न लिखने पर ये मेरे विरुद्ध शिकायत करेंगे।”
मैने पूछा कि घटना के विषय में आप को सबसे पहले कैसे पता चला था? उत्तर मिला, “पीएचसी से रात में फोन आया था कि चाकू से घायल एक लड़का पीएचसी लाया गया है। गम्भीर हालत में है। तुरंत चले आइये।“
मैने कहा कि यही तो असली प्रथम सूचना है। आप इस टेलीफ़ोनिक सूचना को ही एफ़आईआर के रूप में लिखकर विवेचना प्रारम्भ कर दीजिये। फिर अन्य किसी एफ़आईआर की आवश्यकता ही न होगी। थानाध्यक्ष ने तदनुसार एफआईआर लिख दी और यह जानकर कि मेरे निर्देश पर एफ़आईआर लिखी गई है, किसी ने उसकी शिकायत भी नहीं की।
इस वार्तालाप के लगभग 20 दिन बाद बरेली के एक मंत्री जी ने मुझे बुलाकर कहा, “थाना फ़तेहगंज पश्चिमी के हत्या के मामले में थानाध्यक्ष एक अभियुक्त की गिरफ़्तारी नहीं कर रहे हैं, जब कि मृतक ने मजिस्ट्रेट के सामने मृत्युपूर्व बयान में भी उसका नाम लिया है।“
मैने कहा, “मैं स्वयं इस प्रकरण की जांच कर बताऊंगा।“
मैने थानाध्यक्ष को बुलाया तो उसने बताया कि उस घायल लड़के की 14 दिन बाद ज़िला अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। मृत्यु पूर्व उसका मजिस्ट्रेट द्वारा बयान लिखा गया, जिसमें एक सही अभियुक्त का नाम है और दूसरा वही ग़लत नाम है, जिसे उसके घर वाले एफ़आईआर में लिखाना चाहते थे। उसने आगे बताया कि इसमें पीड़ित पक्ष एवं वह अपराधी जिसे बचाया जा रहा है, दोनों कुर्मी जाति के हैं तथा उस अपराधी का पिता भूतपूर्व कैबिनेट मंत्री है और अत्यंत प्रभावशाली है। जिस निर्दोष व्यक्ति को अभियुक्त बनाया जा रहा है, उसकी पीड़ित पक्ष से पुरानी दुश्मनी है। एक बात और है कि पीएचसी के कर्मचारियों से गुप्त रूप से पता चला है कि जब घायल लड़का पीएचसी लाया गया था, तो उसकी दशा देखकर वहां के डाक्टर ने उसका मृत्युपूर्व बयान रिकार्ड कर लिया था। इस बयान को डाक्टर ने छिपा लिया है और अब वह मृत्युपूर्व बयान लेने की बात को स्वीकार भी नहीं करता है। इसका कारण है कि डाक्टर भी कुर्मी है और भूतपूर्व मंत्री के प्रभाव में है।
मैने थानाध्यक्ष के साथ अपराधियों के गांव, घटनास्थल और पीएचसी जाकर जांच की, तो थानाध्यक्ष द्वारा बताई बात पूर्णतः सत्य पाई। पीएचसी के डाक्टर ने मेरे सामने भी मृत्युपूर्व बयान दर्ज़ करने की बात से इनकार कर दिया।
मैं और थानाध्यक्ष वापस बरेली आ गये। वहां तय हुआ कि थानाध्यक्ष डाक्टर को धमकाकर डाक्टर से उसके द्वारा रिकार्ड किया गया डाइंग डिक्लेरेशन निकलवायेंगे। तदनुसार थानध्यक्ष ने पुनः पीएचसी जाकर डाक्टर से कहा, “एसएसपी साहब को जांच में पता चल गया है कि आप ने मृतक का डाइंग डिक्लेरेशन रिकार्ड किया था, जिसे आप छिपा रहे हैं। अतः उन्होंने हत्या के प्रकरण में गवाही छिपाने के अपराध में आप को गिरफ़्तार करने मुझे भेजा है।“
यह सुनकर डाक्टर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई, और उसने तुरंत घर से लाकर डाइंग डिक्लेरेशन थानाध्यक्ष को दे दिया। इस डाइंग डिक्लेरेशन में दूसरे अभियुक्त में भूतपूर्व मंत्री के पुत्र का नाम था। मैने अपराध की विस्तृत पर्यवेक्षण आख्या लिखी, जिसमें डाक्टर के सामने दिये गये डाइंग डिक्लेरेशन में लिखे गये दोनो अभियुकतों को वास्तविक अपराधी और मजिस्ट्रेट के द्वारा लिखे डाइंग डिक्लेरेशन में एक को ग़लत बताया। मैंने थानाध्यक्ष को निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट के डाइंग डिक्लेरेशन में लिखित निर्दोष व्यक्ति के बजाय डाक्टर के डाइंग डिक्लेरेशन में लिखित मंत्री पुत्र को गिरफ़्तार कर चार्ज-शीट लगाये।
विद्वान न्यायाधीश ने भी मेरी आख्या के अनुसार मजिस्ट्रेट के समक्ष दिये गये डाइंग डिक्लेरेशन को ग़लत माना और डाक्टर वाले डाइंग डिक्लेरेशन को सही मानकर दोनों वास्तविक अपराधियों को दोषी घोषित किया। इससे न केवल एक अपराधी दंडित हुआ, वरन एक निर्दोष व्यक्ति दंड पाने से बच गया और यह सिद्ध हो गया कि स्वजनों के दबाव में कोई व्यक्ति आसन्न मृत्युपूर्व भी झूठ बोल सकता है।