दधीचि बने, अंग दान करें
एक व्यक्ति अंग दान के माध्यम से कुल आठ लोगों की जान बचा सकता है
–डॉ दीपक कोहली–
भारत महर्षि दधीचि जैसे ऋषियों का देश है, जिन्होंने एक कबूतर के प्राण एवं दुष्टों से जन सामान्य की रक्षा के लिये अपना देहदान कर दिया था .परंतु समय के साथ भारत में अंग दान की प्रवृत्ति खत्म होती गयी , निश्चित तौर पर अंग दान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में नयी उम्मीदों का सवेरा लाया जा सकता है .अंग दान करने से एक प्रेरणादायी शक्ति पैदा होती है, जो अद्भुत होती है यह उदारता व्यक्ति की महानता का द्योतक है, जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी प्रसन्नता प्रदान करती है
भारत में ही प्रतिवर्ष लगभग पांच लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं . प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच एक बड़ा अंतर है .
अंग दान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंग दाता अंग ग्राही को अंग दान करता है ,दाता जीवित या मृत हो सकता है,दान किये जा सकने वाले अंग गुर्दे, फेफड़े, आंखे, यकृत, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और शिराएँ हैं , अंग दान किसी के जीवन के लिये अमूल्य उपहार है.अंग दान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है.
अंग दान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति (जीवित या मृत, दोनों) से स्वस्थ अंगों और ऊतकों को लेकर किसी अन्य ज़रूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है..जबकि ऊतकों के रूप में कॉर्निया, त्वचा, ह्रदय वाल्व कार्टिलेज, हड्डियों और वेसेल्स का प्रत्यारोपण होता है.
जीवित व्यक्ति के लिये अंग दान के समय न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना अनिवार्य है . साथ ही अधिकतर अंगों के प्रत्यारोपण का निर्णायक कारक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति होती है, उसकी आयु नहीं .जीवित अंग-दाता द्वारा एक किडनी, अग्न्याशय, और यकृत के कुछ हिस्से दान किये जा सकते हैं .
कॉर्निया, हृदय वाल्व, हड्डी और त्वचा जैसे ऊतकों को प्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् दान किया जा सकता है, परंतु हृदय, यकृत, गुर्दे, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों को केवल ब्रेन डेड (Brain Death) के मामले में ही दान किया जा सकता है . कार्डियक डेथ अर्थात प्राकृतिक रूप से मरने वाले का सामान्यतः नेत्र (कॉर्निया) दान किया जाता है .
भारत में प्रति वर्ष लाखों लोग अंग प्रत्यारोपण का इंतजार करते-करते मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं . इसका कारण मांग और दान किये गये अंगों की संख्या के बीच बड़ा अंतर है .
भारत में अंग प्रत्यारोपण करने की सुविधा अच्छी है लेकिन यहाँ पर अंग दान करने वालों की संख्या बहुत ही कम है .विश्व संदर्भ में देखें तो अंग दान करने के मामले में भारत दुनिया में बेहद पिछड़ा हुआ देश है .यहाँ प्रति दस लाख की आबादी पर केवल 0.16 लोग अंग दान करते हैं जबकि प्रति दस लाख की आबादी पर स्पेन में 36 लोग, क्रोएशिया में 35 और अमेरिका में 27 लोग अंग दान करते हैं .
भारत में ‘ब्रेन डेड’ या ‘मानसिक मृत’ हो चुके लोगों के परिवार जन भी अंग दान करने से बचते हैं जबकि यह निश्चित हो जाता है कि ऐसे लोगों का जीवनकाल बढ़ाना अब संभव नहीं है . यही कारण है कि इस मामले में भी अंग दान बहुत कम हो रहा है .वर्ष 2018 में महाराष्ट्र में 132, तमिलनाडु में 137, तेलंगाना में 167 और आंध्रप्रदेश में 45 और चंडीगढ़ में केवल 35 अंग दान हुए तमिलनाडु ने बीते कुछ समय में इस क्षेत्र में बेहतर काम किया है . वहाँ प्रत्येक वर्ष लगभग 80 हजार कॉर्निया का अंग दान होता है .
दिसंबर 2018 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक प्रश्न के उत्तर में राज्यसभा में यह जानकारी दी गयी कि प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग दो लाख गुर्दे, 30 हजार ह्रदय और दस लाख नेत्रों की ज़रूरत है .जबकि केवल ह्रदय 340 और एक लाख नेत्र यानी कौर्निया ही प्रतिवर्ष मिल रहे हैं .
दिसंबर 2018 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा एक प्रश्न के उत्तर में राज्यसभा में यह जानकारी दी गयी कि प्रत्येक वर्ष भारत में लगभग दो लाख गुर्दे, 30 हजार ह्रदय और दस लाख नेत्रों की ज़रूरत है .जबकि केवल ह्रदय 340 और एक लाख नेत्र यानी कौर्निया ही प्रतिवर्ष मिल रहे हैं .
मार्च 2020 में अंग दान तथा प्रत्यारोपण करने के मामले में महाराष्ट्र ने तमिलनाडु और तेलंगाना को पीछे छोड़ दिया है .
भारत के सभी अस्पतालों में भी अंग प्रत्यारोपण संबंधी उपकरणों की व्यवस्था नहीं है वर्ष 2017 के आँकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 301 अस्पताल ऐसे हैं जहाँ अंग प्रत्यारोपण संबंधी उपकरण मौजूद हैं और उनमें से केवल 250 अस्पताल ही राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) में पंजीकृत हैं .उपरोक्त आँकड़े दर्शाते है कि देश में अंग प्रत्यारोपण हेतु लगभग 43 लाख लोगों के लिये ऐसा मात्र एक ही अस्पताल मौजूद है जहाँ अंग प्रत्यारोपण संबंधी सभी आवश्यक उपकरण मौजूद हैं .
आँकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन औसतन 150 लोगों का नाम अंग प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे लोगों की सूची में जुड़ जाता है.जहाँ एक ओर वर्ष 2017 में तकरीबन दो लाख लोग किडनी प्रत्यारोपण का इंतज़ार कर रहे थे, परंतु इनमें से केवल पांच प्रतिशत लोगों का ही किडनी प्रत्यारोपण हो पाया था .
यह स्थिति तब है जब एक व्यक्ति अंग दान के माध्यम से कुल आठ लोगों की जान बचा सकता है , हालाँकि विगत कुछ वर्षों में अंग दानकर्त्ताओं की संख्या में काफी वृद्धि दर्ज की गयी है, परंतु फिर भी यह वृद्धि लगातार बढ़ती अंग दान की मांग को पूरा करने में समर्थ नहीं है .
भारत में अंग दान करने वालों में अधिकतर मध्यम निम्न वर्ग या निम्न वर्ग के लोग ही होते हैं, परंतु अंग प्राप्त करने वाले लोगों में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व काफी कम होता है, जिसका एक सबसे बड़ा कारण प्रत्यारोपण की उच्च लागत को माना जाता है .उल्लेखनीय है कि भारत में अंग प्रत्यारोपण की लागत लगभग पांच से 25 लाख रुपये के आस-पास है, जो कि मध्यम निम्न वर्ग या निम्न वर्ग के लिये काफी बड़ी रकम है .
भारत के आम नागरिकों में अंग दान को लेकर उचित शिक्षा और जागरूकता का अभाव है .कई बार यह देखा जाता है कि दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले अंग विफलता से पीड़ित लोगों को अंग दान और अंग प्रत्यारोपण जैसी प्रणाली के बारे में पता ही नहीं होता है जिसके कारण उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है .
भारत में अधिकतर लोग मृत्यु के बाद जीवन एवं पारलौकिक विश्वासों में जीते हैं. अतः अंगों में काट-छाँट उन्हें प्रकृति एवं धर्म के विपरीत लगता है.
कुछ लोगों का मानना है कि अंग प्रत्यारोपण की सहमति देने पर अस्पताल के कर्मचारी उनका जीवन बचाने के लिये गंभीरता से प्रयास नहीं करेंगे .
अंग प्रत्यारोपण में गलत प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा वर्ष 1994 में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम बनाया गया इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य चिकित्सीय प्रयोजनों के लिये मानव अंगों के निष्कासन, भंडारण और प्रत्यारोपण को विनियमित करना है साथ ही यह मानव अंगों के वाणिज्यिक प्रयोग को भी प्रतिबंधित करता है
इस अधिनियम में किसी गैर-संबंधी (माता-पिता, सगे भाई-बहन, पति-पत्नी के अलावा) के अंग प्रत्यारोपण को गैर-कानूनी घोषित किया गया था . सन् 1999 में इस अधिनियम में संशोधन कर चाचा-चाची,मौसा-मौसी और बुआ आदि को तथा वर्ष 2011 में भावनात्मक लगाव रखने वाले संबंधों को भी मान्यता दी गयी.
मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011:
इस अधिनियम में मानव अंग दान के लिये प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रावधान किये गये थे .साथ ही अधिनियम के दायरे को और अधिक व्यापक कर उसमें ऊतकों को भी शामिल कर लिया गया था .
इन प्रावधानों में रिट्रिवल सेंटर और मृतक दानकर्त्ताओं से अंगों के रिट्रिवल के लिये उनका पंजीकरण, स्वैप डोनेशन और अस्पताल के पंजीकृत मेडिकल प्रेक्टिशनर द्वारा अनिवार्य जाँच करना शामिल है .
इस अधिनियम में राष्ट्रीय स्तर पर दानकर्त्ताओं और प्राप्तकर्त्ताओं के पंजीकरण करने का भी प्रावधान है .मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 2014 के द्वारा अंग दान के कार्य को सहज, सरल और पारदर्शी बनाने तथा नियमों की गलत व्याख्या रोकने के प्रावधान किये गये हैं .
यदि अंग दान हासिल करने वाला विदेशी नागरिक हो और दाता भारतीय, तो बगैर निकट रिश्तेदारी के प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं मिलेगी और इस संबंध में निर्णय प्राधिकार समिति द्वारा लिया जायेगा.जब प्रस्तावित अंग दानकर्त्ता और अंग प्राप्तकर्त्ता करीब संबंधी न हों तो प्राधिकार समिति यह मूल्यांकन करेगी कि अंग दानकर्त्ता और अंग प्राप्तकर्त्ता के बीच किसी भी तरह का व्यावसायिक लेन-देन न हो
देशभर में अंग दान को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम लागू किया है .वहीं ब्रेन डेड व्यक्ति से अंगदान को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने अनेक उपाय किये हैं जैसे- नयी दिल्ली में राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organisation-NOTTO) और पूरे भारत में सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के लिये पांच अन्य क्षेत्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (Regional Organ and Tissue Transplant Organisation- ROTTO) स्थापित किये हैं, जिनमें से ऐसा ही एक संस्थान पी.जी.आई चंडीगढ़ में स्थापित किया गया है जोकि उत्तरी भारत के सात राज्यों पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख तथा उत्तराखंड में अंग और ऊतक दान की निगरानी करता है .
ग़ौरतलब है कि अंग दान करने वाले व्यक्तियों से प्राप्त अंगों को उपयोग के लायक जीवित रखने के लिये राज्यों द्वारा इस संदर्भ में उल्लेखनीय कार्य किया जा रहा है. तमिलनाडु देश का पहला राज्य है, जिसने इस संदर्भ में कई पहल किये हैं, जैसे ब्रेन डेड व्यक्ति का प्रमाण-पत्र बनाना, अंग वितरण को सुव्यवस्थित करना और अंगों के आवागमन के लिये हरित कॉरिडोर निर्धारित करना आदि .राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन, स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है .इसमें ‘राष्ट्रीय मानव अंग और ऊतक निष्कासन एवं भंडारण’ तथा ‘राष्ट्रीय बॉयोमैटीरियल केंद्र’ जैसे दो प्रभाग हैं .यह देश में अंगों और ऊतकों की ख़रीद के नेटवर्क के साथ-साथ अंगों और ऊतक दान एवं प्रत्यारोपण के पंजीकरण में सहयोग जैसी अखिल भारतीय गतिविधियों के लिये सर्वोच्च केंद्र के तौर पर कार्यरत है .
अंग दान की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर सांस्कृतिक मान्यताओं, पारंपरिक सोच और कर्मकाण्डों की वजह से है .ऐसे में डॉक्टरों, गैर-सरकारी संगठनों और समाज सेवियों को अंग दान के महत्त्व के प्रति लोगो को जागरूक करना चाहिये .
सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमज़ोर वर्ग तक भी पहुँच सकें इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है अंग दान के बारे में प्रचलित गलत धारणाओं और मिथकों को दूर करना देश में अंग दान करने वालों की कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है
एक रिपोर्ट के मुताबिक, यदि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण मरने वालों में से पांच प्रतिशत व्यक्ति भी अंग दान करें तो जीवित व्यक्तियों को अंग दान करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी
_____________________________________________
– डॉ दीपक कोहली, संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, 5 /104, विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ- 226010( उत्तर प्रदेश )