नई शिक्षा नीति पर विचार गोष्ठी संपन्न
नई शिक्षा नीति में शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण पर कोई विचार नहीं.
विवेचना द्वारा विगत दिवस 28 नवंबर 2021 को ‘नई शिक्षा नीति’ पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। विवेचना का गठन ही ज्वलंत विषयों पर विचार गोष्ठियों के आयोजन के लिए किया गया था। विवेचना ने इस परंपरा को जारी रखा है और समय समय पर गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने यह जानकारी दी।
विवेचना के सचिव हिमांशु राय ने गोष्ठी के प्रारंभ में बताया कि जब यह नई शिक्षा नीति की घोषणा की गई तब से ही यह अंधों का हाथी है। हर कोई इसकी अलग व्याख्या कर रहा है। इसमें शब्दों का ऐसा जाल बिछाया गया है कि इस शिक्षा नीति में नया क्या है यह पता ही नहीं चलता। देश का दुर्भाग्य है कि पिछले कुछ वर्षों में जो शिक्षा के मंत्री रहे हैं उनका न तो खुद शिक्षा से कोई संबंध रहा न वे स्वयं ही उच्च शिक्षित रहे।
नई शिक्षा नीति पर राजेन्द्र चन्द्रकांत राय पूर्व शिक्षक व साहित्यकार ने पावर पाइंट प्रस्तुति के माध्यम से विस्तार से शिक्षा नीति के प्रावधानों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इसमें 5$3$3$4 का फार्मूला अपनाया गया है। इसमें छात्र ही छात्र को पढ़ायेंगे इसका प्रावधान है जिसमंे उन्हें प्रमाण पत्र मिलेगा। इसमें समाज के लोगों को लेकर उन्हें शिक्षक के स्थान पर काम पर लिया जाएगा। इसे राष्टीय ट्यूटर्स प्रोग्राम नाम दिया गया है।
जितनी बड़ी संख्या में छात्र हैं उसी के अनुपात में शिक्षक होना चाहिए और अच्छी शिक्षा के लिए अच्छे प्रशिक्षित शिक्षक होना चाहिए इसका कोई प्रावधान नहीं है। शिक्षकों से छात्रों के लिए भोजन आदि बनवाने और बंटवानें का काम नहीं लिया जाए इसका कोई प्रावधान नहीं है। जिस समिति ने शिक्षा नीति का बनाई है उस समिति में स्कूली शिक्षा से संबंधित कोई नहीं है। सभी उच्च शिक्षा से संबंधित हैं।
नवीन चतुर्वेदी पूर्व प्राचार्य रेलवे स्कूल ने बताया कि 1986 में राजीव गांधी के समय शिक्षा नीति आई थी। जिसके कारण नवोदय विद्यालय बने और केन्द्रीय विद्यालयों का विस्तार हुआ। शिक्षा का लोकव्यापीकरण हुआ। अब शिक्षा बहुत मंहगी हो चुकी है और हर साल किताबें बदलकर शिक्षा के व्यापार को विस्तार दिया जा रहा है। शिक्षा बहुत मंहगी हो गई है। प्राइवेट स्कूलों को एक दुकान के तौर पर चलाया जा रहा है।
सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों से बहुत कम वेतन पर संविदा शिक्षक भर्ती हो रहे हैं। नई शिक्षा नीति में अच्छे पढाने वाले शिक्षकों के चयन और वेतन की कोई बात नहीं की गई है। प्रायमरी शिक्षा में भाषा और गणित विषय सबसे महत्वपूर्ण होते हैं और विद्यार्थी की नींव बनाते हैं। जब तक मातृभाषा में शिक्षा नहीं होगी बच्चों की भाषा और गणित नहीं सुधर सकते। बच्चों में वैज्ञानिक सोच जब तक नहीं होगी तब तक नई पीढ़ी दूरदर्शी नहीं होगी।
अरूण कुमार हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित आलोचक व पूर्व पा्रचार्य जी एस कामर्स कालेज ने कहा कि शिक्षा आज पूरी तरह उपेक्षित है। शिक्षा विभाग में केवल मुकदमेबाजी हो रही है। उन्होंने बताया कि एक वकील को शिक्षा विभाग ने 7 करोड़ की फीस चुकाई। आज एक चपरासी का वेतन उसी कालेज में काम करने वाले सभी अतिथि शिक्षकों से ज्यादा होता है। अब शिक्षा को लाभकारी व्यवसाय में बदला जा रहा है। इसीलिए शासकीय कालेजों की टक्कर में प्राईवेट कालेज खुलवाये जा रहे हैं जहां लाखों से बढकर अब करोड़ों तक में फीस वसूली जा रही है।
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अब धीरे धीरे अच्छी शिक्षा केवल अच्छे पैसे वालों के लिए आरक्षित होती जाएगी। पहले ज्ञानी की कमाई ज्यादा होती थी और कौशल की कमाई कम होती थी। अब कौशल रखने वाले की कमाई ज्ञानी से ज्यादा होती है। अब ज्ञान की जगह एप्लाइड की कीमत है। शिक्षा का अर्थ होता है हजारों साल से अर्जित ज्ञान की शिक्षा और रिसर्च का अर्थ ज्ञान की अभिवृद्धि माना जाता है। आज हालत ये है भारत में हो रही रिसर्च को कहीं मान्यता नहीं है। यह पूरी तरह फर्जी रिसर्च है जिससे लाखों लोग प्रतिवर्ष पीएचडी हो रहे हैं।
इस रोचक विषय पर मीना पांडेय और डा मनीषा खरे ने भी अपने विचार व्यक्त किए। हिमांशु राय ने सभी श्रोताओं और वक्ताओं का आभार व्यक्त किया और विवेचना की हर गोष्ठी में शामिल होने का अनुरोध किया।