रामलीलाओं के विविध स्वरूपः किसिम-किसिम की रामलीला
सन् 2005 में यूनस्को ने रामलीला को विश्व विरासत घोषित करते हुए यह विवेचना दी कि लगभग 500 वर्ष पूर्व तुलसीदास जी द्वारा स्थापित रामलीला विश्व की ऐसी प्रदर्शनकारी कला है जो निरन्तर 500 वर्षों से आज तक सतत् रूप में मंचित हो रही है।
चित्रकूट में तुलसीदास से पूर्व मेधा भगत द्वारा झांकी लीला की जाती रही है जिसमें श्रीराम के जीवन से सम्बंधित विभिन्न प्रसंगों की झांकियां जीवन्त कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की जाती थीं। एक प्रसंग पर एक दिन कलाकार मेकअप द्वारा स्थिर बैठकर झांकी प्रस्तुत करते थे जिसे आमजन द्वारा बहुत सराहा गया।
तुलसीदास ने झांकी लीला की लोकप्रियता को देखकर रामचरित मानस की पंक्तियों के आधार पर व्यास परम्परा द्वारा रामलीलाएं प्रारम्भ कीं। इन रामलीलाओं में लंका और अयोध्या मंच बनाया जाता था जिसके बीच में भी अभिनय का क्षेत्र होता है। दर्शक अयोध्या और लंका मंच के मध्य बने हुए मंच के दोनों ओर बैठते हैं। एक ओर वी0आई0पी0 तथा दूसरी ओर आमजन के बैठने की व्यवस्था होती थी। तुलसी मंच में विशिष्ट अतिथियों के कारण कोई भी बाधा नहीं उत्पन्न होती थी। तुलसीदास ने 12 रामलीला मण्डलियों की स्थापना की जिसमें दलित और किन्नरों की रामलीलाएं भी मंचित की जाती थीं। तुलसीदास ने दलित रामलीला में मेकअप का कार्य भी स्वयं किया।
रामलीलाओं में दर्शकों द्वारा करतल ध्वनि से राजा राम चन्द्र की जय का उद्घोष लगाया जाता था यह प्रतीकात्मक रूप से तत्कालीन मुगल राजाओं के विरूद्ध आम जनता का आक्रोश था। तुलसीदास ने मैदानी रामलीलाओं का श्रीगणेश किया जिसमें मैदान में अलग-अलग मंच बनते थे-अयोध्या, जनकपुर, लंका, किष्किंधा आदि। इन रामलीलाओं में सभी वर्ग सभी जाति, सभी धर्म के लोग सम्मिलित होते हैं। आज भी मैदानी रामलीलाओं की सुदीर्घ परम्परा विद्यमान है। काशी की रामनगर की रामलीला इसका एक बड़ा उदाहरण है। इसके अतिरिक्त उरई के कोंच में, इटावा के जसवंतनगर में, मैनपुरी में, कानपुर देहात अकबरपुर, कानपुर परेड ग्राउण्ड, रसड़ा बलिया, मुमताज नगर अयोध्या उत्तर प्रदेश की प्रमुख मैदानी रामलीलाएं हैं।
शौकिया रामलीलाएं-दशहरे के आसपास पूरे भारतवर्ष तथा विश्व में भी रामलीलाओं का मंचन स्थानीय नवयुवकों की एक समिति द्वारा बड़े उत्साह से किया जाता है। शौकिया रामलीलाओं की परम्परा पृथ्वीराज कपूर के पारसी रंगमंच शैली से प्रभावित है जिसमें मंच पर विभिन्न प्रसंग क्रमशः होते हैं तथा इन्जीनियर, डाक्टर से लेकर आमजन तक शौकिया रूप में 15 से एक महीने का प्रशिक्षण लेकर अभिनय करते हैं। वर्तमान में दिल्ली की लवकुश रामलीला समिति ने अक्षय खन्ना, मनोज तिवारी, अक्षय कुमार जैसे पात्र भी इन रामलीलाओं में भागीदारी करने में गर्व महसूस करते हैं। नोएडा में एक रामलीला के बारे में जानकारी प्राप्त हुई है कि चपरासी से लेकर इन्जीनियर तक दुबई में 15 लोग नोएडा के काम करते हैं जो एक माह पूर्व दुबई से एक साथ आते हैं और 10 दिन की रामलीला मंचित कर एक साथ वापस लौट जाते हैं। लखनऊ के बख्शी के तालाब में एक रोचक रामलीला ज्ञात हुई है जिसमें यादव और मुस्लिम परिवार प्रतिवर्ष अलग-अलग भूमिकाओं में कार्य करते हैं जैसे यदि एक वर्ष यादव परिवार राम के अभिनय करेंगे तो उस वर्ष मुस्लिम परिवार के लोग रावण के परिवार का मंचन करेंगे। यह क्रम अगले वर्ष बदल जाता है। बाल रामलीलाओं का भी व्यापक विस्तार मिलता है।
उर्दू संवादों की भी रामलीलाओं को व्यापक लोकप्रियता प्राप्त हो रही है। संवाद अदायगी और वेशभूषा में उर्दू और उसका प्रभाव इतना व्यापक है कि राष्ट्रीय स्तर पर उर्दू संवादों की रामलीला एक विशेष पहचान बना रही है।
स्वतंत्रता संग्राम और रामलीलाएं-वर्तमान में समस्त मंचीय रामलीलाएं जो शौकिया रूप में दशहरे के आसपास की जाती हैं उन सभी का उद्भव और विकास स्वतंत्रता संग्राम के आसपास हुआ। उत्तर प्रदेश के ऐसे स्वतंत्रता संग्राम स्थल जहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आमजन से संवाद करना चाहते थे उन्होंने रामलीलाओं को बहुत बड़ा आधार बनाया। नई दिल्ली में रामलीला मैदान आज भी सरकार और सरकार के विरूद्ध होने वाले संवाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसी तरह हर महत्वपूर्ण जिले और क्षेत्र में रामलीला मैदान बने हुए हैं। इन रामलीला समितियों कर्ताधर्ता और उनके पूर्वज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं।
रामलीलाओं में मुस्लिमों का योगदान-रामलीला एक सांस्कृतिक आयोजन है। यह नई पीढ़ी से लेकर पुरानी पीढी के बीच मूल्य बोध का सांस्कृतिक सेतु है। धर्म और अर्थ से परे सांस्कृतिक रूप से रामलीलाओं का महत्व इस रूप में है कि सभी पुतले तथा आभूषण, वाद्य यंत्रों की सम्पूर्ण जिम्मेदारी मुस्लिम समाज की होती है। हिन्दू समाज द्वारा दिये गये चंदे का बहुत बड़ा हिस्सा इन मुस्लिम कारीगरों को मिलता है, इसलिए दशहरा मनाने के लिए हिन्दुओं से कम मुसलमान आकर्षित नहीं होते, वे पूरे वर्ष भर दशहरे का इंतजार करते हैं। मुस्लिम कलाकारों में सीता, राम आदि बनने की होड़ होती है। वर्तमान में मुजफ्फनगर मूल के बड़े फिल्मी कलाकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी द्वारा भी जटायु का रोल किया जाता है।
निरन्तर 43 वर्षों से प्रतिदिन मुस्लिम कलाकारों द्वारा रामलीला का मंचन-जोग जकार्ता इण्डोनेशिया के पुराविसाता संस्था द्वारा किया जा रहा है.
कैरेबियन देशों में बाल रामलीलाएं पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा-त्रिनिडाड जैसे छोटे देश में पार्लियामेण्ट में बने कानून से वर्ष 2012 से स्कूलों में रामलीलाएं अनिवार्य रूप से मंचित की जाती है और उनकी प्रतियोगिता होती है। त्रिनिडाड के सत महाराज द्वारा अपने 52 स्कूलों में 52 रामलीलाएं मण्डलियां बनायी गयी हैं। इसी प्रकार इस देश के अन्य क्षेत्रों में 15 सक्रिय रामलीला समितियां हैं जो अंग्रेजी संवाद के द्वारा रामलीलाओं का मंचन करते हैं।
रामायण गान/रामचरित मानस गायन-कैरेबियन देशों- सूरीनाम, त्रिनिडाड, गयाना, अफ्रीकन देश माॅरीशस, कंगारू देश फीजी में प्रत्येक देश में लगभग चार हजार रामायण गान की मण्डलियां हैं। इन मण्डलियों द्वारा उत्तर प्रदेश की पारम्परिक शैली में अत्यन्त मधुर सुंदरकाण्ड तथा रामचरित मानस का पाठ किया जाता है। वर्तमान में उत्तर भारत में इस शैली की विधा लगभग समाप्त है।