क्या गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की? सच और अफवाह के बीच का फ़र्क


अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की या उन्होंने जानबूझकर पर्याप्त प्रयास नहीं किए। यह दावा करने वालों में मुख्य रूप से चार तरह के समूह शामिल रहे हैं:

1. क्रांतिकारी राष्ट्रवादी: भगत सिंह और उनके समर्थकों का मानना था कि गांधीजी, अहिंसा की अपनी विचारधारा के कारण, क्रांतिकारियों का समर्थन नहीं करते थे। वे यह भी तर्क देते हैं कि गांधी-इरविन समझौते को प्राथमिकता देने के कारण गांधी ने भगत सिंह की फाँसी रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए।

2. दक्षिणपंथी और हिंदू राष्ट्रवादी समूह: कुछ दक्षिणपंथी राजनीतिक धड़े गांधी को ब्रिटिश सरकार के प्रति नरम मानते हुए यह तर्क देते हैं कि उन्होंने भगत सिंह को बचाने में रुचि नहीं दिखाई।

3. ब्रिटिश दस्तावेज़ और उनकी गलत व्याख्या: कुछ ब्रिटिश सरकारी रिकॉर्ड यह संकेत देते हैं कि गांधी ने इस विषय पर अधिक दबाव नहीं डाला। हालाँकि, ये दस्तावेज़ ब्रिटिश हुकूमत की राजनीतिक सीमाओं और उनके पूर्वनिर्धारित निर्णय को नजरअंदाज करते हैं।

4. सोशल मीडिया और लोकप्रिय भ्रांतियाँ: हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर बिना ऐतिहासिक प्रमाण के इस दावे को व्यापक रूप से फैलाया गया है, जिसे कई बार राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

गांधीजी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश की थी

मूल ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फाँसी को रोकने के लिए वायसराय लॉर्ड इरविन से अपील की थी। 23 मार्च 1931 को गांधीजी ने इरविन को पत्र लिखकर दया याचिका प्रस्तुत की। लेकिन इरविन ने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि ब्रिटिश सरकार पहले ही इस मामले में अपना निर्णय ले चुकी थी।

महात्मा गॉंधी

गांधीजी के समर्थकों का मानना है कि उन्होंने अपनी पूरी क्षमता के अनुसार प्रयास किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से दया दिखाने की अपील की, लेकिन वह अंतिम निर्णय बदलने में सक्षम नहीं थे। गांधीजी ने कई मौकों पर कहा था कि वे मृत्यु दंड के खिलाफ हैं और किसी भी व्यक्ति की फाँसी के पक्षधर नहीं हैं।

भगत सिंह ने खुद दया याचिका का विरोध किया था

यह भी एक ऐतिहासिक सत्य है कि भगत सिंह ने खुद कभी भी दया याचिका नहीं मांगी थी। उनका मानना था कि उनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम को और तेज़ करेगा।

1. भगत सिंह का पत्र (20 मार्च 1931):

• भगत सिंह ने फाँसी से तीन दिन पहले ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें फाँसी देने के बजाय गोली से मारा जाए, ताकि उन्हें युद्धबंदी (War Prisoner) माना जाए।

• उन्होंने खुद को क्रांतिकारी बताया और कहा कि उनका बलिदान भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई को और तेज़ करेगा।

2. दया याचिका के विरोध में उनका स्टैंड:

• भगत सिंह और उनके साथियों ने अपने मुकदमे के दौरान ब्रिटिश न्याय व्यवस्था का बहिष्कार किया।

• उनका मानना था कि उनकी फाँसी से भारतीय जनता को क्रांति की प्रेरणा मिलेगी।

• उन्होंने कहा था, “क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज़ होती है।”

3. गांधीजी की अपील और भगत सिंह का रुख:

• गांधीजी ने वायसराय इरविन से clemency (दया) की अपील की थी, लेकिन भगत सिंह खुद इस अपील के पक्ष में नहीं थे।

• उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने भी दया याचिका देने की कोशिश की, लेकिन भगत सिंह ने इसे अस्वीकार कर दिया।

निष्कर्ष

गांधीजी ने भगत सिंह को बचाने का प्रयास किया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार पहले ही निर्णय ले चुकी थी और इरविन ने clemency याचिका ठुकरा दी। दूसरी ओर, भगत सिंह खुद दया याचिका के खिलाफ थे और उन्होंने अपनी शहादत को क्रांति का संदेश बनाने की इच्छा जताई थी।

इसलिए, यह कहना कि गांधीजी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की, एक अधूरी सच्चाई है। ऐतिहासिक रूप से सही बात यह है कि गांधी ने अपील की थी, लेकिन भगत सिंह खुद भी अपनी फाँसी रोकने के पक्ष में नहीं थे।

महात्मा गांधी और भगत सिंह: नए ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर पुनर्मूल्यांकन

आपके द्वारा साझा किए गए दो ऐतिहासिक दस्तावेज़—गांधीजी का 23 मार्च 1931 का पत्र (वायसराय को) और 26 मार्च 1931 का कराची कांग्रेस में दिया गया भाषण—यह साबित करते हैं कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी को रोकने का गंभीर प्रयास किया था।

1. गांधीजी द्वारा वायसराय को लिखी गई अंतिम अपील (23 मार्च 1931)

महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फाँसी से ठीक पहले वायसराय लॉर्ड इरविन को एक अंतिम पत्र लिखा।

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महत्वपूर्ण बिंदु:

✔️ जनता की मांग का हवाला – गांधीजी ने कहा कि जनता की इच्छा के अनुसार फाँसी रोकना ब्रिटिश सरकार का कर्तव्य है।

✔️ आंतरिक शांति का खतरा – उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भगत सिंह को फाँसी दी गई, तो देश में अशांति बढ़ेगी।

✔️ क्रांतिकारी दल से समझौता – गांधीजी ने लिखा कि क्रांतिकारी गुट ने भरोसा दिया था कि यदि भगत सिंह को जीवनदान दिया जाता है तो वे हिंसा छोड़ देंगे।

✔️ राजनीतिक हत्याओं के उदाहरण – उन्होंने ब्रिटिश सरकार को याद दिलाया कि पहले भी राजनीतिक हत्याओं को माफ किया गया है।

✔️ गांधीजी मिलने को तैयार थे – उन्होंने कहा कि यदि वायसराय को उनसे चर्चा करनी हो, तो वे व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए तैयार हैं।

निष्कर्ष:

🔹 यह पत्र स्पष्ट रूप से दिखाता है कि गांधीजी ने भगत सिंह की फाँसी को रोकने की गंभीर कोशिश की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार पहले ही फैसला कर चुकी थी और उन्होंने गांधीजी की अपील को अनदेखा कर दिया।

2. कराची कांग्रेस में गांधीजी का ऐतिहासिक भाषण (26 मार्च 1931)

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फाँसी के तीन दिन बाद 26 मार्च 1931 को कराची कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी ने भाषण दिया।

महत्वपूर्ण बिंदु:

✔️ गांधीजी को भी झटका लगा था – उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें उम्मीद थी कि भगत सिंह को बचाया जा सकता था, लेकिन वे असफल रहे।

✔️ युवा वर्ग की नाराजगी को स्वीकार किया – गांधीजी ने कहा कि वे समझते हैं कि युवा उनसे नाराज हैं कि वे भगत सिंह को नहीं बचा पाए।

✔️ क्रोध की जगह शांति का संदेश – उन्होंने कहा कि एक सच्चे सेवक को जनता के क्रोध से घबराना नहीं चाहिए और उन्हें संयम रखना चाहिए।

✔️ अपने अहिंसा के सिद्धांत पर अडिग रहे – उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका मार्ग अहिंसा का था और वे क्रांतिकारी हिंसा का समर्थन नहीं कर सकते थे।

निष्कर्ष:

🔹 गांधीजी ने भगत सिंह की फाँसी को रोकने की अपनी असफलता को खुले तौर पर स्वीकार किया और कहा कि वे खुद इस फैसले से आहत थे।

🔹 उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे क्रांतिकारी हिंसा के समर्थक नहीं थे, लेकिन वे भगत सिंह के बलिदान को महत्व देते थे।

क्या गांधीजी भगत सिंह को बचा सकते थे?

इन दस्तावेजों से स्पष्ट है कि:

✅ गांधीजी ने वायसराय से अपील की थी लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे ठुकरा दिया।

✅ गांधी-इरविन समझौते में भगत सिंह का मामला शामिल नहीं था, क्योंकि अंग्रेज इसे किसी भी हालत में माफ नहीं करना चाहते थे।

✅ युवा वर्ग गांधीजी से नाराज था, लेकिन गांधीजी ने उनका गुस्सा स्वीकार किया और संयम बनाए रखने की अपील की।

✅ गांधीजी का अहिंसक मार्ग और भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा अलग थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि गांधीजी ने उन्हें बचाने का प्रयास नहीं किया।

अंतिम निष्कर्ष:

🔹 यह कहना कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश नहीं की, ऐतिहासिक रूप से गलत है।

🔹 गांधीजी ने पूरी कोशिश की, लेकिन ब्रिटिश सरकार अपने फैसले पर अड़ी रही।

🔹 युवा क्रांतिकारियों की नाराजगी के बावजूद, गांधीजी ने हमेशा उनके बलिदान का सम्मान किया।

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