दिल्ली–एनसीआर प्रदूषण संकट: कारण, प्रभाव और भविष्य की नीति
दिल्ली–एनसीआर दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्रों में से एक
राम दत्त त्रिपाठी
दिल्ली–एनसीआर दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगरीय क्षेत्रों में से एक बन चुका है। हर साल सर्दियों में वायु प्रदूषण सुर्खियाँ बटोरता है, पर वास्तविक संकट इससे कहीं बड़ा और बहुस्तरीय है—हवा, पानी, शोर, भू-जल, हरियाली, और भू-उपयोग—सभी मोर्चों पर लगातार गिरावट हो रही है। यह किसी एक मौसम या घटना का परिणाम नहीं, बल्कि दशकों के अव्यवस्थित विकास, पर्यावरणीय शिथिलता, और नीतिगत विफलताओं का संचित परिणाम है।
इस सर्वांगीण प्रदूषण को समझना इसलिए भी जरूरी है कि बिना संरचनात्मक सुधारों के दिल्ली–एनसीआर की रहने योग्य स्थिति और भी बिगड़ेगी। यह लेख वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण की जड़ों का विश्लेषण करता है और आगे का एक व्यावहारिक नीति-मार्ग सुझाता है।
1. वायु प्रदूषण: संरचनात्मक और नीति-आधारित संकट
अ) अरावली पर्वतमाला का क्षरण
दिल्ली–एनसीआर की हवा में धूल-कणों की मात्रा बढ़ाने में अरावली पर्वतमाला का विनाश सबसे बड़ा कारक है।
• अवैध खनन
• पर्वतों को काटकर फार्महाउस, टाउनशिप
• हरियाणा और राजस्थान में कमज़ोर वन व पर्यावरण प्रवर्तन
अरावली दिल्ली के लिए प्राकृतिक धूल–ढाल थी। इसके टूटने से पश्चिमी रेतीले क्षेत्रों की धूल इतनी आसानी से दिल्ली तक पहुँचती है कि हवा की गुणवत्ता लगातार गिरती रहती है।
ब) अनियंत्रित निर्माण गतिविधियाँ
दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा , ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और आसपास विशाल निर्माण प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
• धूल नियंत्रण के नियमों का ढीला पालन
• लाखों पेड़ों की कटाई
• मेट्रो, एक्सप्रेसवे और रियल-एस्टेट प्रोजेक्ट्स द्वारा लगातार जमीन का उलटना-पुलटना
इन सबने प्रदूषण को स्थायी रूप से बढ़ा दिया है।
स) वाहन उत्सर्जन
दिल्ली में वाहनों की संख्या भारत के चार महानगरों से भी ज़्यादा है।
• सार्वजनिक परिवहन का अपर्याप्त विस्तार
• इंटर-स्टेट वाहन नियमन का अभाव
• ई-मोबिलिटी विस्तार धीमा
यह समस्या स्थानीय स्तर पर PM2.5 की भारी वृद्धि का कारण है।
द) उद्योग और कचरे का धूहा
एनसीआर के अनियोजित औद्योगिक क्लस्टर्स—बवाना, नांगलोई, गाजीपुर, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद—नियमित निगरानी से लगभग बाहर रहते हैं। खुले में कचरा और प्लास्टिक का जलाया जाना आम है।
इ) पराली जलाना: मौसमी बढ़ोतरी
यह संरचनात्मक समस्या तो नहीं, पर सर्दियों में प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देती है। पंजाब–हरियाणा के किसानों के लिए वैकल्पिक मॉडल न होने से यह समस्या जारी है।
2. जल प्रदूषण: यमुना का संकट और भू-जल की गिरावट
अ) यमुना में भारी प्रदूषण
दिल्ली के 18 प्रमुख नालों और सीवेज सिस्टम से निकलने वाला कचरा यमुना को देश की सबसे प्रदूषित नदियों में बदल चुका है।
• अधूरा सीवरेज नेटवर्क
• असंगठित कॉलोनियों का गन्दा पानी सीधे नालों में
• कई STP या तो अधूरे या कम क्षमता वाले
दिल्ली का लगभग 70-80% प्रदूषण लोड नजफगढ़ और शाहदरा ड्रेन से आता है।
ब) भू-जल का लगातार गिरना
अरावली पर्वतमाला और ग्रामीण-शहरी जलस्रोतों के क्षरण ने NCR में प्राकृतिक रीचार्ज को लगभग खत्म कर दिया है।
• गुरुग्राम और फरीदाबाद में अनगिनत अवैध बोरवेल
• नई टाउनशिप और अपार्टमेंट्स द्वारा अति-निकासी
• वॉटरबॉडीज़ का अतिक्रमण और समतलीकरण
भू-जल के गिरने से दिल्ली की जल सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।
स) औद्योगिक प्रदूषण
दिल्ली–एनसीआर के डाईंग, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, केमिकल उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट अक्सर बिना उपचार सीधे नालों में गिराए जाते हैं। प्रवर्तन एजेंसियों के पास न तो पर्याप्त कर्मचारी हैं और न निगरानी तंत्र।
3. ध्वनि प्रदूषण: लगातार बढ़ता पर अनदेखा संकट
अ) वाहनों की अधिकता और जाम
ट्रैफिक प्रेशर दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है।
• हॉर्न का अति-उपयोग
• फ्लाईओवर, रिंग रोड और हाईवे का निरंतर विस्तार
ब) निर्माण का शोर
24×7 चलने वाले मेट्रो, हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट्स लगातार ध्वनि बढ़ा रहे हैं।
स) हवाई जहाज़ और मेट्रो लाइनें
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में विमानों का शोर लगातार बढ़ रहा है। ऊँचे मेट्रो ट्रैक भी ध्वनि में उल्लेखनीय योगदान करते हैं।
दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण की लगभग कोई प्रभावी निगरानी नहीं है, जिसके कारण यह संकट सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन गया है।
4. मुख्य समस्या: बिखरा हुआ शासन और कमजोर प्रवर्तन
दिल्ली–एनसीआर में एक ही नीति को लागू करने वाली एकीकृत एजेंसी नहीं है।
• दिल्ली सरकार
• केंद्र (MoEFCC, NHAI, DDA)
• हरियाणा, उत्तर प्रदेश
• 12+ नगर निकाय
• NCR प्लानिंग बोर्ड
जब तक एक एकल क्षेत्रीय पर्यावरण प्राधिकरण नहीं बनेगा, तब तक समन्वयहीनता बनी रहेगी। इसके अलावा:
• पर्यावरणीय नियमों का पालन कमजोर
• निर्माण क्षेत्र पर निगरानी नाम मात्र
• औद्योगिक क्लस्टर्स पर ढीला नियंत्रण
• हरियाली की कटाई के बदले लगाए गए पौधों की निगरानी न के बराबर
इस प्रशासनिक अव्यवस्था ने दिल्ली को लगातार “लाल ज़ोन” में रहने वाला शहर बना दिया है।
5. भविष्य का रास्ता: क्या होना चाहिए?
1. अरावली संरक्षण और पुनर्स्थापन
• पूरी अरावली श्रृंखला को Natural Conservation Zone घोषित करने की आवश्यकता।
• अवैध खनन पर AI आधारित उपग्रह निगरानी।
• गंभीर दंड के साथ ज़मीन पुनर्स्थापन और बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक वनरोपण।
2. NCR के लिए ‘एकीकृत पर्यावरण प्राधिकरण’
यूनाइटेड किंगडम के ‘ग्रेटर लंदन अथॉरिटी’ की तरह NCR को एक एकीकृत पर्यावरण, परिवहन और भूमि-उपयोग प्राधिकरण चाहिए।
यह संस्था ही नीति बनाए, लागू करे और निगरानी करे।
3. सीवरेज और यमुना सुधार में तेज प्रगति
• सभी नालों को इंटरसेप्टर्स से जोड़कर उनका पानी STPs में भेजना।
• अनधिकृत कॉलोनियों में सीवरेज कार्य के लिए विशेष कोष।
• औद्योगिक “ज़ीरो-लिक्विड-डिस्चार्ज” नीति का सख्त प्रवर्तन।
4. सार्वजनिक परिवहन का व्यापक विस्तार
• NCR के लिए एकीकृत बस और मेट्रो पास।
• इलेक्ट्रिक बसों और अंतिम मील कनेक्टिविटी में भारी निवेश।
• गुरुग्राम–नोएडा–फरीदाबाद–दिल्ली को जोड़ने वाली तेज रफ्तार रेल प्रणाली।
5. निर्माण धूल पर नियंत्रण
• सभी बड़े प्रोजेक्ट्स पर रियल–टाइममॉनिटरिंगसिस्टम।
• धूल नियंत्रण विफल रहने पर प्रोजेक्ट-लागत का प्रतिशत जुर्माना।
• हर निर्माण स्थल पर अनिवार्य ग्रीन-कवर बैरियर।
6. भू-जल पुनर्भरण
• तालाबों, झीलों और नालों का वैज्ञानिक जीर्णोद्धार।
• यमुना और हिंडन बाढ़क्षेत्रों में निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध।
• बड़े आवासीय प्रोजेक्ट्स के लिए ‘ग्राउंडवॉटर बजट’ प्रणाली।
7. शोर प्रदूषण के लिए शहरी सुधार
• फ्लाईओवर और हाइवे किनारे ध्वनि-बैरियर।
• रात में निर्माण पर कठोर पाबंदी।
• एयरपोर्ट मार्गों के लिए ‘नाइट कर्फ्यू’ जैसे मॉडल का परीक्षण।
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि दिल्ली में अभी जो गंभीर हालात हैं, वो स्लो-पॉईजन जैसा है। डॉक्टरों का भी कहना है कि दिल्ली की प्रदूषित हवा एक सामान्य व्यक्ति का जीवन 6 से 7 साल तक कम कर रही है और बीमार व्यक्ति को खतरा ज्यादा है।
उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के कई कारण हैं, लेकिन नागरिक के तौर पर हमें सरकारों से सवाल पूछने होंगे और उन्हें अपने काम के प्रति जवाबदेह बनाना होगा।
निष्कर्ष
दिल्ली–एनसीआर का प्रदूषण संकट सिर्फ एक मौसमी समस्या नहीं बल्कि शहरी नियोजन की ऐतिहासिक विफलता और पर्यावरण पर आधारित विकास मॉडल के अभाव का परिणाम है। हवा हो या पानी, शोर हो या हरियाली—हर मोर्चे पर स्पष्ट संकेत है कि बिना क्षेत्रीय समन्वय, कठोर प्रवर्तन और दीर्घकालिक नीति-संकल्प के समाधान संभव नहीं।
भविष्य का रास्ता तभी बन सकता है जब राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक जिम्मेदारी मिलकर एक वैज्ञानिक, पारदर्शी और नागरिक-केन्द्रित मॉडल अपनाएँ। दिल्ली–एनसीआर को यदि बचाना है, तो पर्यावरण को विकास का मुख्य आधार बनाना ही होगा—न कि विकास के रास्ते का अवरोध।



