दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को दिया झटका: ‘शरबत जिहाद’ विज्ञापन हटाने का आदेश
बाबा रामदेव की भ्रामक मार्केटिंग पर बढ़ी कार्रवाई
दिल्ली हाईकोर्ट ने आज (22 अप्रैल 2025) योग गुरु रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद के शरबत जिहाद को एक बड़ा झटका देते हुए आदेश दिया कि वे हमदर्द की लोकप्रिय ड्रिंक रूह अफ़ज़ा के ख़िलाफ़ “शरबत जिहाद” जैसे भड़काऊ और सांप्रदायिक विज्ञापन तुरंत हटाएं।
न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा, “मैंने अपनीआंखों और कानों पर यक़ीन नहीं किया जब यह विज्ञापन देखा।”
न्यायमूर्ति अमित बंसल की एकल पीठ ने रामदेव को निर्देश दिया कि वे ऐसी किसी भी बयानबाज़ी या प्रचार से परहेज़ करें और पांच दिन के भीतर शपथपत्र दाखिल करें। यह मामला पतंजलि द्वारा अपने पेय पदार्थ की बिक्री बढ़ाने के लिए सांप्रदायिक भाषा के उपयोग को लेकर दायर हुआ था।
पतंजलि की पुरानी आदतें भी सवालों में
यह पहला मौका नहीं है जब पतंजलि की विज्ञापन नीति सवालों में है। 2016 में भी एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने पतंजलि के कई विज्ञापनों को झूठा और भ्रामक बताया था — खासकर उनके “कच्ची घानी सरसों तेल” के विज्ञापन, जिनमें प्रतिस्पर्धी ब्रांड्स को नीचा दिखाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की भी सख़्ती
सिर्फ हाईकोर्ट ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट भी रामदेव की कंपनी की गतिविधियों पर सख़्त रुख अपना चुकी है। फरवरी 2024 में अदालत ने पतंजलि को ऐसे किसी भी दावे से रोक दिया था जिसमें यह कहा गया हो कि उनकी आयुर्वेदिक दवाइयाँ डायबिटीज, अस्थमा जैसे रोगों का इलाज कर सकती हैं। कोर्ट ने रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की ‘माफ़ीनामों’ को “जाली और दिखावटी” बताया था।
इसके बावजूद विज्ञापन जारी रहे, जिसके बाद कोर्ट ने यह चेतावनी भी दी कि अगर आदेशों की अनदेखी की गई, तो अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
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केरल में भी मुक़दमे और वारंट
इसी कड़ी में, केरल राज्य की एक अदालत ने पतंजलि और उसके निदेशकों के ख़िलाफ़ ज़मानती वारंट जारी किया। पालक्काड़ की अदालत ने यह कार्रवाई तब की जब रामदेव और बालकृष्ण अदालत में पेश नहीं हुए। राज्य के ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने पाया कि पतंजलि की सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी ने अख़बारों में छपे 29 ऐसे विज्ञापन प्रकाशित कराए जिनमें हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया गया।
उत्तराखंड सरकार की सज़ा
उत्तराखंड की सरकार ने भी अप्रैल 2024 में पतंजलि की 14 दवाइयों का उत्पादन लाइसेंस रद्द कर दिया था। इन दवाओं में दमा, ब्रोंकाइटिस और डायबिटीज के इलाज के दावे किए गए थे, जिन्हें भ्रामक माना गया।
मुनाफे की अंधी दौड़ में नैतिकता की बलि?
इन तमाम घटनाओं ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या योग गुरु रामदेव अपनी ब्रांड छवि और जनता के विश्वास का दुरुपयोग कर रहे हैं? जहां एक ओर योग और आयुर्वेद के प्रचार के नाम पर लोगों को जोड़ने का दावा किया जाता है, वहीं दूसरी ओर मुनाफा कमाने के लिए सांप्रदायिक और भ्रामक प्रचार को हथियार बनाया जा रहा है।
न्यायपालिका के सख़्त रुख और राज्यों की कार्रवाई से यह साफ़ संकेत मिल रहा है कि अब इस तरह के ‘धार्मिक रंग’ देकर मुनाफा कमाने की कोशिशें ज़्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली हैं।