लोकतंत्र की परिभाषा
—डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी, प्रयागराज
न्यारे लोकतंत्र की
प्यारी परिभाषा है
जनता की जनता के लिए
जनता के द्वारा
जो पुस्तकों में
लिखी जाती है
यदा कदा जनता को
बताई भी जाती है
इस परिभाषा के
देदीप्यमान शब्द
की के लिए के द्वारा
सत्ता स्थापित होते ही
जनता का साथ छोड़कर
पार्टियों और पार्टियों के
दिग्गज नेताओं की
संपत्ति हो जाते है
वे भली प्रकार जानते है की
इन महान शब्दों में
सत्ता के गुणा गणित के
शकुनि छिपे होते हैं
जो नाना प्रकार के
पाँसा गढ़ते रहते हैं
और उनके चलने चलाने की
कलाएं सिद्ध करते रहते हैं
फिर एक चुनाव से
दूसरे चुनाव के बीच
लोकतंत्र की सत्ता
पांसों की पांसों के लिए
पांसों के द्वारा
लोक से दूर
राजधानियों और रिसार्टों में
परिभाषित होती रहती है