जीने की राह दिखाती काव्य कृति डाल डाल टेसू खिले
-राजीव कुमार ओझा
काव्य विधा में दोहा सृजन की राह चुनौती भरी होती है। इस राह के राही को सीमित पंक्ति,सीमित शब्द सीमा के दायरे में अपनी चिंतन धारा को दोहे के माध्यम से लिपिबद्ध कर अभिव्यक्ति प्रदान करने की कठिन चुनौती भरी राह से गुजरना होता है।कबीर,सूर,तुलसी,रहीम ,रसखान के दोहा पथ की अनुगामिनी काशी निवासिनी कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी ने डाल डाल टेसू खिले दोहा संग्रह का सृजन कर हिन्दी साहित्य के संवर्धन में स्तुत्य अवदान किया है। मेरी नजर में किसी विषय को अभिव्यक्ति प्रदान करने के दो सशक्त और प्रभावी माध्यम होते हैं- कार्टून और दोहे। कार्टूनिस्ट व्यंग्य चित्र के साथ चंद शब्दों में देश काल के समसामयिक के ज्वलंत मुद्दों पर अपनी बात कह जाता है। उसके कार्टून प्रभावी तरीके से चुने गए विषय का मुकम्मल खाका खींचते हैं।उसके कार्टून उसकी बात लोगों तक वह सन्देश पहुंचा जाते हैं,उसी विषय पर अभिव्यक्ति प्रदान करने का चुनौती भरा काम काव्य विधा में दोहे ही कर सकते हैं ।
स्याही प्रकाशन से प्रकाशित वैदुष्य की धनी कंचनलता चतुर्वेदी का दोहा संग्रह -डाल डाल टेसू खिले कथ्य,भाव,सम्प्रेषण ,शब्द शिल्प , बोधगम्यता ,भाषाई लालित्य की कसौटी पर एक श्रेष्ठ सृजन है।अध्यापन की पृष्ठभूमि से कदाचित पारिवारिक दायित्वों के निर्बहन के लिए कंचनलता जी ने गृहिणी की भूमिका को प्राथमिकता दी होगी। इसे सुखद संयोग ही कहा जा सकता है की साहित्यिक अभिरुचि की कंचनलता को ससुराल में कंचन सा साहित्यिक माहौल मिला।उनके हम सफर प्रसन्नबदन चतुर्वेदी भी कवि हैं। उनका भी एक हिन्दी गजल संग्रह प्रकाशित हुआ है। कृतियां कृतिकार की चिंतन धारा,उसकी दृष्टि,उसके दृष्टिकोण की दर्पण होती हैं। दोहा संग्रह डाल डाल टेसू खिले पाठक को कवयित्री की चिंतनधारा , देश ,समाज ,समसामयिक घटनाक्रमों पर उनकी पैनी नजर और नजरिया से परिचित कराता है। इस संग्रह के दोहे पाठक को एक मार्गदर्शक शिक्षक की तरह सांप्रदायिक सद्भाव ,सामाजिक विद्रूपताओं ,पर्यावरण ,जल संरक्षण के महत्त्व को समझाते भी हैं ,चेताते भी हैं।
कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी के किरदार में जीवित शिक्षिका पर्यावरण के माहात्म्य को समझाती भी हैं ,चेताती भी हैं –
मत काटो तुम वृक्ष को ,ये जीवन के अंग
इनके बिन जीवन कहाँ ,भरते यही उमंग।।
धरती के श्रृंगार हैं इनसे कर लो प्यार
वृक्षों ने हमको दिया यह सुन्दर संसार। ।
कवयित्री की नजर धन की अंधी दौड़ में अंधाधुंध काटे जाते हरे भरे पेड़ों से होने वाले खतरों पर भी है। सड़ांध मारती व्यवस्था में कवयित्री आम आदमी को उसकी तटस्थ भूमिका के लिए एक शिक्षक की तरह डांटती भी है,कड़ी चेतावनी भी देती है –
हे मानव नादान तू ,मत जीवन को भूल
धरती से यदि तरु हटे होगा नष्ट समूल।।
प्राकृतिक संसाधनों के बेरहम दोहन पर कवयित्री की पैनी नजर देखें –
नहीं प्रकृति है जल बिना ,नहीं सकल संसार
पानी बिन जीवन कहाँ जल जीवन आधार ।।
जल का दोहन मत करो नदियां बनती रेत
जल जीवन आधार है मानव रहो सचेत ।।
पर्यावरण,वायु प्रदूषण ,ध्वनि प्रदूषण पर मड़राते खतरे,मानव स्वास्थ्य पर उसके घातक प्रभाव से देश और समाज को आगाह करते इस दोहे से कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी का वैदुष्य प्रतिबिंबित होता है-
बिगड़ चुका पर्यावरण ,करे प्रदूषण शोर
बहुत घुटन है सांस में ,ह्रदय हुआ कमजोर।।
भ्रूण हत्या, लैंगिक विभेद ,महिला उत्पीड़न पर समाज को सन्देश देती है कवयित्री –
भ्रूण की हत्या पाप है ,इससे बड़ा न पाप
सुता- सुवन अंतर नहीं ,समझो इसको आप ।।
मरें यहाँ ना बेटियां ऐसा रचो समाज
अपने भारत देश पर ,सबको होवे नाज ।।
विभाजनकारी सियासत पर भी कवयित्री मुखरता के साथ अपनी बात कहती है –
हिन्दू -मुस्लिम बंट गये ,बंटने लगा समाज
द्वेष ,कपट ,लालच भरा ,राजनीति का राज ।।
नशे के मकड़जाल में फंसे लोगों को एक शिक्षक ,एक समाज सुधारक की भूमिका में कवयित्री समझाती है –
लग जाए यदि लत बुरी ,समझ शुरू अवसाद
एक सुखी इंसान को कर देती बर्बाद ।।
माँ को राशन चाहिए ,पापा मुझे किताब
गर चिंता परिवार की छूना नहीं शराब ।।
राशन की चिंता करो ,भरता इससे पेट
छूना नहीं शराब को ,पैसा रखो समेट ।।
दो मुंहे लोगों ,दोमुंही सियासत पर कवयित्री बेबाकी से अपने मन की बात पाठकों से करती है –
कोयल बैठी मौन है ,कौवे करते शोर
करते बातें मर्म की ,बोले वचन कठोर ।।
बातें करता सत्य की ,खुद ही बोले झूठ
सत्य वचन कड़वा लगे ,पल पल जाए रूठ ।।
सत्ता लोभी लालची ,करते अत्याचार
झोली भरते झूठ से ,जाकर सबके द्वार ।।
जिंदगी को एक रंग मंच बताते हुए कवयित्री समाज को जीने की राह दिखाती है,समझाती है –
रंग मंच है जिंदगी ,कर ले अभिनय नेक
मिट्टी तन मिट्टी मिले ,रहे कर्म बस एक ।।
भाव रखो उपकार का ,बनो वृक्ष फलदार
सब कुछ तरु अर्पित करे ,जिससे है संसार ।।
मत सूरत पर जाइए ,सीरत ही पहचान
कोयल रूप कुरूप है ,लेकिन मीठा गान ।।
मत इतना कड़वा बनो ,हो जाएं सब दूर
इतना मीठा भी नहीं ,करें लोग मजबूर ।।
स्वार्थ के वशीभूत मैत्री का स्वांग करने वाले कालनेमियों से बचने की सलाह देखें –
अवसरवादी जो दिखे ,उनसे रखो दुराव
बनते कभी न मित्र ये ,होता कपट स्वभाव ।।
विषम परिस्थितियों में विचलित हो जाने वालो में उत्साह का संचार करते हुए कवयित्री कहती है –
संयम को खोएं नहीं ,देख विकट यह काल
नूतन गढ़ें विचार हम ,खुद को रखें संभाल
विषम परिस्थितियों में विचलित हो जाने वालो में उत्साह का संचार करते हुए कवयित्री कहती है –
संयम को खोएं नहीं ,देख विकट यह काल
नूतन गढ़ें विचार हम ,खुद को रखें संभाल ।।
लक्ष्य वही पाते मनुज जो ,होते नहीं निराश
मन में दृढ संकल्प ले ,छूते वो आकाश ।।
पंख नहीं तो क्या हुआ ,छू लेंगे आकाश
सब संभव है यत्न से ,हे मन ! हो न निराश ।।
कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी के भावलोक का साहित्य उनके एक दोहे में प्रतिबिंबित होता है –
लक्ष्य यही साहित्य का ,होता रहे सुधार
दर्पण बने समाज का ,सत्य करें स्वीकार ।।
मैंने कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी के दोहा संग्रह को एक पाठक की नजर से भी पढ़ा ,संपादक की नजर से भी। समीक्षक की नजर से पढ़ना इसलिए अपरिहार्य था की उन्होंने अपनी यह कृति मुझे सस्नेह समीक्षार्थ ही भेजी थी। पाठक की नजर से पढ़ा तो खुद को शिक्षिका कंचनलता चतुर्वेदी के क्लास में पाया गोया वह,सहज ,सरस ,बोधगम्य भाषा में मानव जीवन के विविध पक्षों को परिभाषित कर रही हों। संपादक की नजर से पढ़ा तब उनके दोहा संग्रह को नगण्य त्रुटियों वाला पाया। समीक्षक की दृष्टि से पढ़ा तब कवयित्री कंचनलता चतुर्वेदी के चिंतन के दायरे ने ,शब्द शिल्प ने,विषयों के चयन ने मुझे यह आश्वस्त किया की उनके किरदार में हिन्दी साहित्य की अनंत संभावनाएं समाहित हैं। मैं साहित्यानुरागियों को यह कह सकता हूँ की दोहा सृजन के कठिन और चुनौती भरे पथ पर चलते हुए कवयित्री ने समाज को जीने की राह दिखाती एक अनुपमेय कृतिभेंट की है ,जो पठनीय भी है ,संग्रहणीय भी है।