क्या लाइलाज कोरोना का इलाज प्लाज्मा थेरेपी बनेगी ?
दिनेश कुमार गर्ग
चाइनीज वायरस या कोरोना नाॅवेल वायरस या कोविड 19 से अब तक विश्व भर में 26 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1 लाख 78 हजार लोग जान से हाथ धो बैठे हैं। विश्व के लगभग सभी देश कोविड 19 से बचने के लिए लाक्ड डाऊन हैं, जीवन घरों में पिछले एक महीने से बन्द पडा़ है, विश्व अर्थव्यवस्था की गाडी़ खाडी़ हो गयी है और उसके दुष्प्रभाववश अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम शून्य के स्तर पर पहुंच गये हैं। ऐसे में अमेरिका को सन्देह हो गया है कि यह चीन के बायोलाॅजिकल वार का रूप है और वह चीन से हर्जाने की मांग पर उतर रहा है। खबर है कि अमरीका के बाद जर्मनी ने भी चीन से हर्जाना मांगा है।
कोविड 19 महामारी , कूटनीतिक व गुप्तचरी महायुद्ध के बीच भारत चुपचाप अपने सीमाओं में कोविड को नियंत्रित कर अर्थव्यवस्था व मानवता को उबारने की जद्दोजजहद में लगा है।
दर असल कोविड 19 के आने पर संपूर्ण विश्व दो कारणों से भयभीत और परेशान है , पहला यह कि विश्व भर के विशेषज्ञ तय नहीं कर पा रहे कि यह वायरस प्राकृतिक है या मानव निर्मित यानी बायोलाॅजिकल वार के लिए चीन द्वारा लैब में निर्मित है या चमगादड़ से फैला । दूसरे कि यह नया वायरस है , इसके संबंध में कोई स्टडी ऐसी नहीं हो सकी कि उसकी मदद से किसी तरह की दवा का निर्माण किया जा सके ।
अब ऐसे में आल इण्डिया इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकर साइन्सेज (एम्स ) और कुछ अन्य विशेषज्ञता वाले संस्थानों में प्लाज्मा थेरेपी से उपचार की बात सामने आयी है। विशेषज्ञों के अनुसार जब तक शोध और अध्ययन के आधार पर सुनिश्चित टीका व औषधि का विकास नहीं हो जाता , तब तक इसके इलाज में प्लाज्मा थिरेपी सबसे कारगर रहेगी ।
तो आखिर प्लाज्मा थिरेपी का कान्सेप्ट और स्वरूप क्या है आइये यह जान लिया जाये । विशेषज्ञों का मत है कि ” immunity can be transferred from a healthy person to a sick”. यानी रोग-प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ व्यक्ति से बीमार को स्थानांतरित की जा सकती है । आप सभी जानते हैं कि कोरोना वायरस की किलर वैक्सीन या औषधि का ईजाद नहीं हुआ तो भी कोविड 19 से संक्रमित होने के बाद भी लोग अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता की सबलता से संक्रमण मुक्त हुए। अतः भारत में यह सोचा गया कि संक्रमण मुक्त हुए सबल इम्यूनिटी वाले लोगों से इम्यूनिटी संक्रमण से लड़ पाने में असमर्थ लोगों में ट्रांसफर कर इससे मुक्ति पायी जाये। इसकी शुरुआत मैक्स हास्पिटल में वेन्टीलेटर पर आश्रित कोरोना पेशेण्ट को प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से इम्यूनिटी ट्रांसफर करके हुई। मैक्स का प्रयोग सफल रहा और मरीज अब वेण्टीलेटर से मुक्त हो चुका है। मैक्स की सफलता का संज्ञान लेते हुए इण्डियन काउंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च द्वारा राज्यों को प्लाज्मा थेरेपी का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने की हरी झंडी दिखायी गयी जिसके बाद गुजरात, पंजाब और केरल ने ऐसा करना शुरू भी कर दिया है। इण्डियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च ने हालांकि प्लाज्मा थेरेपी को वैकल्पिक इलाज के रूप में मान्यता नहीं दी है।
खैर अब आप सबको प्लाज्मा थेरेपी के स्वरूप के बारे में अवगत कराया जाना जरूरी है। एक ऐसा कोरोना का मरीज जिसने अपनी दमदार इम्यूनिटी की ताकत से कोराना संक्रमण पर विजय पायी उसके रक्त से प्लाज्मा लेकर वेण्टीलेटर पर जा चुके दूसरे कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीज में चढा़ दिया जाता है। प्लाज्मा रक्त का वह हिस्सा है जो इम्यूनिटी को मजबूत करने वाले कोरोना एण्टी बाॅडीज का वहन करता है। कोरोना संक्रमण पर विजय प्राप्त व्यक्ति के रक्त में कोरोना वायरस से लड़ने वाले एण्टीबाडीज का विकास हो जाता है और प्लाज्मा के माध्यम से उन्हे दूसरे बीमार व्यक्ति के शरीर में स्थानांतरित किया जाना ही प्लाज्मा थेरेपी का सरलता से समझने लायक स्वरूप है।
हम सबने जीवन के किसी न किसी मौके पर किसी न किसीको ब्लड डोनेट किया है। एक्सीडेण्ट में घायलों को, रक्ताल्पता के शिकार बीमारों को, सैनिकों को ब्लड कभी न कभी डोनेट किया है। रक्तदान तो सभी युवाओं को वर्ष में एक बार करना ही चाहिये । बस उसी तरह प्लाज्मा दान भी है बस पेंच यही है कि प्लाज्मा उस आदमी का चाहिये होता है जो कोरोना संक्रमणग्रस्त होने के बाद कोरोना पर विजय पाकर स्वस्थ हो चुका हो। प्लाज्मा दान के लिए एक मशीन है जो दानदाता के शरीर से रक्त ग्रहणकर लाल रक्त कणों को प्लाज्मा से विलग कर उन्हे वापस दानदाता के शरीर में भेज देती है। इस प्रक्रिया में मात्र घंटे भर लगते हैं। रक्तदान की तुलना में प्लाज्मा दान आसान है क्योंकि रक्तदान करनेवाला दूसरा रक्तदान तभी कर पाता है जब लाल रक्त कणों की पूर्ति शरीर कर लेती है, इसमें काफी समय लगता है। जबकि प्लाज्मा दान में यह बाधा नहीं होती । इसका मतलब कि दान दाता के शरीर से प्लाज्मा को जल्दी जल्दी सप्ताह में दो बार तक निकाला जा सकता है।
दर असल प्लाज्मा थेरेपी को सबसे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2014 में इबोला के इलाज के लिए सुझाया था। इसके पूर्व 2009 में एच1 एन 1 संक्रमण के दौरान भी डाॅक्टरों ने प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग मरीजों के हित में किया है। खुद चीन में भी कोरोना मरीजों के इलाज के लिए दो परीक्षणों में प्लाज्मा थेरेपी का प्रयोग 15 लोगों पर किया गया और सकारात्मक परिणाम हासिल किये गये। शायद यही वजह है कि यूनाइटेड किंगडम और अमरीका सहित अन्म देश भी प्लाज्मा थेरेपी ट्रायल्स शुरू कर चुके हैं।
लेखक दिनेश कुमार गर्ग एक पत्रकार, अध्यापक और उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग में संपादक तथा उप निदेशक रहे हैं .