महामारी : प्राकृतिक असंतुलन से स्वास्थ्य और पर्यावरण को क्षति
कोविड-19 तथा महामारी के दौर में मानवता का ऐतिहासिक व साहित्यिक दृष्टिकोण
इतिहास साक्षी है कि सदियों से महामारियों ने भीषण संहार किया है, इस संहार की भयावहता का अंदाज़ा हम आज कोरोना काल मे भी नहीं लगा सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर मच्छर जनित मलेरिया संक्रमण ने हज़ारों वर्षों तक मानवता को अपना शिकार बनाया और वर्तमान में भी लगभग पांच लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष इस संक्रमण की चपेट में आते हैं।
छठीं सदी में जस्टिनियन प्लेग नामक महामारी विश्व की आधी जनसंख्या को निगल गई थी।
14 वीं सदी में द ब्लैक डेथ महामारी के चलते लगभग 200 मिलियन लोग काल के गाल में समा गए। 20 वीं सदी में चेचक ने 300 मिलियन लोगों की जान ले ली।
सन् 1918 में जब प्रथम विश्व युद्ध की चिंगारी शांत पड़ने लगी पूरे विश्व को इन्फ्लुएंजा यानी भीषण ज्वर महामारी ने अपनी चपेट में ले लिया। इस महामारी ने 18 महीनों में 40 प्रतिशत वैश्विक जनसंख्या को अपना शिकार बनाया। एक अनुमान के मुताबिक करीब 20 से 50 मिलियन लोग इसका शिकार हो गए, यह आंकड़ा इसलिए भी भयावह है क्योंकि तत्कालीन प्रथम विश्व युद्ध में इसकी तुलना में 17 मिलियन जानें ही गई थीं। इस महामारी ने यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका और यूरोप से लेकर ग्रीनलैंड और पैसिफिक द्वीपों तक को अपनी चपेट में ले लिया था। इस महामारी से ग्रस्त लोगों की सूची में तत्कालीन राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के चहेते भी शामिल थे, जो उस समय 1919 के प्रारंभ में वर्साय की संधि को लेकर वार्ता करने के लिए गए थे।
सन् 1918 के अंत में इस महामारी ने लगभग संपूर्ण विश्व को अपनी चपेट में ले लिया था तब यूएसए और यूरोप के अन्य हिस्सों में इसे ‘स्पैनिश ज्वर’ या ‘स्पैनिश लेडी’ का नाम दे दिया गया। सबको लगा कि इस महामारी का आधार आइबेरियन पेनन्सुएला है। लेकिन यह सबका भ्रम था क्योंकि स्पेन उन देशों में से एक था जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में किसी का साथ नहीं दिया था। तत्कालीन शक्तिशाली देशों ने इस ज्वर की खबर को दबाने का भरसक प्रयास किया लेकिन स्पैनिश मीडिया ने इससे जुड़ी हर खबर को प्रकाशित किया। वर्ष 1918 के मई माह में स्पैनिश मीडिया ने मैड्रिड में इसके संक्रमण की खबर को प्रकाशित किया। इस महामारी ने तत्कालीन स्पैनिश किंग अल्फांसो (तेरहवें) को अपनी चपेट में ले लिया, इसके बाद तेजी से इसके बारे में खबरें फैलने लगीं। चूंकि उस समय जो देश विश्व युद्ध का हिस्सा बने, वहां के लोग केवल स्पैनिश मीडिया के माध्यम से ही इससे जुडी खबरों को पढ पा रहे थे, तो उन्होंने समझा कि इस माहमारी का जन्म स्पेन में ही हुआ है। हालांकि स्पैनिश लोगों का मानना था कि यह वायरस फ्रांस से उनके देश में आया था। तो वह इसे ‘फ्रेंच फ्लू’ के नाम से जानने लगे। इतिहास से हमें यह सीखना चाहिए कि किसी भी वायरस के नामकरण के पीछे एक अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और दोषारोपण का सिद्धांत होता है। इसे हम वर्तमान में कोविड 19 के प्रसार से जोडकर भी समझ सकते हैं क्योंकि इसे भी ‘चाइनीज वायरस’ की संज्ञा दी जाती है।
इतिहासकार अल्फ्रेड क्रॉसबी ने सन् 1918 के फ्लू पर आधारित पुस्तक ‘अमेरिकाज फॉरगॉटन पैनडमिक’ लिखी थी। सदियों बाद वर्ष 1968 में यही फ्लू हांगकांग और वर्ष 1996 में भारत में अत्यधिक भयावह रूप में लौटा। जिसने वैश्विक स्तर पर काफी नुकसान पहुंचाया। इस विषय में कुछ अच्छी पुस्तकें भी उपलब्ध हैं, इनमें कैथरीन एन पोर्टर का उपन्यास ‘पेल हार्स, पेल राइडर’ भी शामिल है। कैथरीन स्वयं भी स्पेनिश फ्लू से ग्रस्त रहीं और बाद में इस उपन्यास में अनुभवों को लिखा। यह उपन्यास इसी महामारी पर आधारित है जिसने यूएसए में 20 वीं और 21 वीं सदी के युद्ध से अधिक जानें लीं। कैथरीन और इनकी पत्नी दोनों इस संक्रमण की चपेट में आ गए थे और उन्होंने इसका वर्णन करते हुए यह भी लिखा था कि ‘अप्रैल एक निर्दयी महीना है’। ठीक इसी तरह डब्ल्यू बी यीट्स ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद के हालातों का वर्णन करने के लिए एक कविता ‘ द सेकेंड कमिंग’ की रचना की जिसमें उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी के महामारी के कारण मृत्यु के समीप जाने का वर्णन किया है। इसके अलावा विलियम मैक्सवेल के उपन्यास ‘ दे केम लाइक स्वैलोज’ उनकी अपनी मां की महामारी से मृत्यु के वर्णन पर आधारित है। यह भी किताबें महामारी का सटीक और सशक्त चित्रण करती हैं।
पूर्व में प्लेग और ज्वर ही महामारी के रूप में जाने जाते थे जिसकी चपेट में आकर लाखों जानें चली गईं। जब प्लेग का प्रसार हुआ तो कोई दवा काम नहीं आई और कोई इसके संक्रमण के प्रसार को रोक नहीं पाया। इससे बचने का सिर्फ एक ही उपाय था कि संक्रमित व्यक्तियों और वस्तुओं से निश्चित दूरी बनाकर रखी जाए। बाइबल में ऐसे कई संस्मरण हैं (Exodus 9:14, Numbers 11:33, 1 Samuel 4:8, Psalms 89:23, Isaiah 9:13). इनमें प्लेग को बढते पाप के चलते ईश्वर के दंड की संज्ञा दी गई है। प्लेग और पापों के बीच के इस संबंध का वर्णन ग्रीक साहित्य में भी मिलता है (Homer’s LLiad and Sophocels’ Oedipus the King 429 BC).
इसके विपरीत, ग्रीक इतिहासकार थ्यूसीडाइज (460-395 बीसीई) ने पेलोपोनेशियन युद्ध के इतिहास और लैटिन कवि ल्यूक्रेट्स (99 से 55 बीसीई) ने अपनी रचना ‘ डे रेरम नैचुरा’ ने महामारी के ईश्वरीय संबंध को नकारा है। इनके मुताबिक प्लेग अच्छे और बुरे के बीच भेद नहीं करता है।
बाद में, मध्यकालीन युग के लेखकों जैसे गियोवनी बोकैशियो की द डेकॉमेरॉन (1313-1375) और ज्योफेरी कॉशर की ‘ द कैंटनबेरी टेल्स’ (1343-1400) जैसे पुस्तकों ने यह वर्णन किया है कि बदलते मानवीय व्यवहार और शहरीकरण के चलते लालच और भ्रष्टाचार बढ़ा है। जिसके कारण ही संक्रमण बढ़ा और मानव को मानसिक और भौतिक क्षति पहुंचाई है। डेनियल डेफो (1659-1731) के जर्नल ऑफ द प्लेग इयर में वर्ष 1665 में लंदन में फैली प्लेग महामारी की विभीषिकाओं का वर्णन है। इसमें भी सन् 1630 में मिलान में फैले प्लेग की महामारी की भयावहता का वर्णन रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
मैरी शेली (1797-1851) के अंग्रेजी उपन्यास ‘द लास्ट मैन’ (1826) में भविष्य की एक कल्पना का वर्णन भी है जो इम्यूनाईजेशन के सिद्धांत पर बल देता है। सन् 1842 में अमेरिकी कवि और उपन्यासकार इडगर ऐलन पो(1809-1849) की रचना ‘ द मॉस्क ऑफ रेड डेथ’ में इस बात का वर्णन है कि चिंता इस बात की नहीं है कि प्लेग से लोग मर रहे हैं बल्कि मुद्दा ये है कि प्लेग ने लोगों को त्रस्त कर दिया था और लगातार जानें भी जा रही थीं। ऐसे ही कई बेहद सशक्त रचनाएं मौजूद हैं तो महामारी की भयावहता का सटीक चित्रण करती हैं। सन् 1912 में प्रकाशित ‘द स्कैरलेट प्लेग’ एक बेहद उत्कृष्ट कृति है। यह रचना अन्य सभी रचनाओं से इस कारण से भी अलग है क्योंकि इसमें वैज्ञानिक खोजों वैज्ञानिकों लुईस पैस्चर(1822- 1895) और रोबर्ट कोच ( 1843-1910) की रोगजनक विषाणुओं की खोज का भी वर्णन है।
इस संबंध में कुछ अन्य उत्कृष्ट रचनाएं हैं जिन्हें पढ़ा सकता है, उनमें जॉर्ज आर स्टूवर्ट की ‘अर्थ अबाइड्स’ (1949), 1954 में प्रकाशित रिचर्ड मैथसन की आई एम लेजेंड, 1978 में प्रकाशित स्टीफन किंग की ‘द स्टैंड’, 1985 में प्रकाशित कोलंबियन नोबल प्राइज विजेता गैबरियलि गैरिया मरकेज की ‘लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा’, 1997 में पुलिट्जर और एवेंटिस अवार्ड विजेता जेरन डायमंड की पुस्तक ‘ गन्स, जर्म्स एंड स्टील : द फेटर्स ऑफ ह्यूमन सोसाइटीज’ शामिल हैं। इसके अलावा मैं कुछ ब्लॉक बस्टर फिल्मों की ओर भी इंगित करना चाहूंगा जिनसे काफी कुछ सीखा जा सकता है, इनमें 12 मंकीज (1995), 28 डेज लेटर (2002) कैरियर्स (2009) और कंटेजियन (2011) शामिल हैं।
ये सभी घटनाएं प्राकृतिक असंतुलन की ओर इशारा करती हैं। ये सब मानव जनित है और पर्यावरण, पशुओं और मानव के बीच गहरी खाई पैदा करने वाला है। यह असंतुलन स्वास्थ्य और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाला भी है। इतिहास और साहित्यिक घटनाओं का जिक्र यहां इसलिए आवश्यक है क्योंकि इससे महामारी की विभीषिका पता चलने साथ-साथ बदलती मानवीय मानसिकता का आकलन करने में आसानी रहती है जो विषाणु और संक्रमण काल में पुरातन मान्यताओं से निकलकर वैज्ञानिक सिद्धांतों को अंगीकार करने की ओर बढ़ी है।
ये महामारी को ठीक प्रकार से डील करने के लिए नितांत आवश्यक है क्योंकि यह तत्व संक्रमण काल में सरकार के बोझ को कम करता है और समाज के योगदान को बढ़ाता है। इसके साथ साथ सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ को भी कम करता है।
संजय आर भूसरेड्डी, लखनऊ
(लेखक वरिष्ठ आई एस अधिकारी हैं. वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास के पद पर कार्यरत हैं और यह उनके निजी विचार हैं)