कोविड: प्राकृतिक इम्युनिटी और वैक्सीन की आवश्यकता
वैक्सीन और आपका अपना इम्यून सिस्टम बिलकुल एक ही तरीके से काम करते हैं
कोरोना वायरस को लेकर पिछले हफ्ते अमेरिका स्थित वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से एक बहुत महत्त्वपूर्ण शोध अध्ययन प्रकाशित हुआ है जिसे कुछ ऐसे लोग जो मूलतः कांस्पीरेसी थ्योरी के प्रभाव में आकर या फिर Immunology जैसे बेहद जटिल विषय को न समझ पाने की विवशता के कारण मिसइंटरप्रेट करके आम जनता में वैक्सीन के उपयोगिता के खिलाफ अफवाहें फैला रहे हैं।
आइये समझते हैं कि यह नया शोध पत्र किस बारे में है।
दरअसल कुछ महीनों पहले दो शोध पत्र प्रकाशित हुए थे जिनमे यह पाया गया कि कोविड के मरीज़ों में उनके ठीक होने के कुछ महीनों के बाद वायरस के खिलाफ प्राकृतिक रूप से बनी हुई एंटीबाडी का स्तर काफी कम हो जाता है। इन दोनों और कुछ अन्य शोध अध्ययनों के आधार पर विशेषज्ञों में सामूहिक राय यह बनी कि वैक्सीन ही एकमात्र उपाय है जिससे लोगों में नियंत्रित तरीके से कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबाडी का एक निश्चित स्तर बरक़रार रख कर शरीर का इम्यून सिस्टम मज़बूत बनाया जा सकता है।
अब पिछले हफ्ते जो नया शोध पत्र आया है जो मेडिकल साइंस की बेहद प्रतिष्ठित जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ उसमें कोरोना वायरस से ग्रसित ऐसे मरीज़ों की ११ महीने तक निगरानी की गयी जिन्हें वायरस का हल्का (mild) इन्फेक्शन हुआ था। ऐसे लोगों में इन्फेक्शन से ठीक होने के ११ महीनों के बाद भी वायरस के खिलाफ प्राकृतिक रूप से बनी हुई एंटीबाडी का स्तर घटा हुआ मिला ठीक उसी तरह से जैसा पहले के दो अन्य अध्ययनों में मिला था।
यानी एक बार फिर यह प्रमाणित हुआ कि एक बार इन्फेक्शन होने के बाद नेचुरल तरीके से बनी हुई एंटीबाडी का स्तर धीरे धीरे घटने लगता है। पर जो नयी बात इस शोध पत्र में सामने आयी है वह यह है कि भले ही इन्फेक्शन के ४ महीने के बाद वायरस के खिलाफ एंटीबाडी का लेवल घटने लगता हो पर उस आदमी के रक्त में पाए जाने वाली एंटीबाडी का उत्पादन करने वाली B -lymphocytes नामक कोशिकाएं उसके bone marrow में जाकर आराम करने लगती हैं जिसे विज्ञान की भाषा में quiescent stage कहते हैं।
यह B-lymphocytes जो कोरोना वायरस के लिए खास तौर एंटीबाडी उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षित होती हैं दुबारा जरुरत पड़ने पर यानी दुबारा इन्फेक्शन होने पर शरीर के इम्यून सिस्टम से फिर से एक्टिवेट की जा सकती हैं और फिर activation की अवस्था में ये bone marrow में सोई पड़ी हुई ये B-lymphocytes फिर से एंटीबाडी का उत्पादन करना शुरू कर सकती हैं ताकि शरीर ने इन्फेक्शन से फिर से लड़ सके।
पर इस शोध का मतलब यह बिलकुल नहीं हुआ कि अब वैक्सीन की जरुरत नहीं पड़ेगी।
इसका मतलब यह जरूर है कि शरीर का अपना इम्यून सिस्टम इन्फेक्शन के ११ महीनों के बाद भी उस वायरस को पहचान सकता है और संभव है कि वायरस का दुबारा इन्फेक्शन होने पर एंटीबाडी का उत्पादन फिर से शुरू कर दे।
पर Bone marrow में छिपी हुई B-lymphocytes से दुबारा इन्फेक्शन होने पर इतनी मात्रा में एंटीबाडी बन सकेंगी कि वह वायरस को नाकाम कर दें इस बात की कोई गारंटी अभी भी नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे पहली बार इन्फेक्शन हुए लोगों में भी यह नहीं कहा जा सकता कि उनका अपना immune system उन्हें बचा ही लेगा।
बल्कि यह नया शोध इस संभावना को और पुष्ट करता है कि वैक्सीन अधिक लम्बे समय तक आपके शरीर की प्रतिरक्षा कर सकेगी क्योंकि जिन लोगों में अभी तक इन्फेक्शन नहीं हुआ है उन्हें वैक्सीन देकर उनके bone marrow को पहले से ही इस वायरस से लड़ने के लिए प्रशिक्षित B-lymphocytes से समृद्ध किया जा सकता है।
मत भूलें कि सभी वैज्ञानिक तरीकों का ठीक से पालन करके बनायी गयी वैक्सीन आपके अपने शरीर के इम्यून सिस्टम को ही मज़बूत करती है पर नियंत्रित तरीके से। हालाँकि किसी राजनैतिक दबाव में बनायी गयी कोई वैक्सीन जिसके सभी चरणों के क्लीनिकल ट्रायल के परिणाम उपलब्ध न हों के बारे में यह दावा नहीं किया जा सकता।
ध्यान रखें कि वैक्सीन दवा नहीं है। वैक्सीन और आपका अपना इम्यून सिस्टम बिलकुल एक ही तरीके से काम करते हैं बल्कि वैक्सीन आपके अपने इम्यून सिस्टम को ही इस तरह नियंत्रित करती है कि उसका सही और नियंत्रित उपयोग किया जा सके। इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि बगैर वैक्सीन के आपका शरीर आपके संक्रमित करने वाले वायरस से ऐसे लड़ेगा जैसे कोई अवैध तरीके से बनायी गयी देसज बन्दूक के साथ अपनी सुरक्षा अपने दुश्मन से करे पर वह बंदूक कभी कभार मिसफायर भी कर सकती है। जबकि वैक्सीन के सहारे आपका शरीर वायरस से ऐसे लड़ेगा जैसे किसी के पास गाइडेड मिसाइल हो जिसके निशाना चूकने की सम्भावना बेहद कम ही होती है।
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जो लोग किसी वैक्सीन पर किन्ही राजनैतिक कारणों से संदेह करते हैं उन्हें जरूर उस वैक्सीन के सारे क्लिनिकल ट्रायल के डेटा की सरकार से डिमांड करनी चाहिए पर इस बीच अन्य ढेर सारी वैक्सीन शीघ्र ही भारत के बाज़ार में उपलब्ध होने वाली हैं जिनकी विश्वसनीयता पर संदेह नहीं है और उनके बेहद उत्साहित करने वाले परिणाम मिले हैं। अब इस बात को निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि जिन्हें अच्छी क्वालिटी की वैक्सीन मिली उनका जीवन बच गया! अभी दो दिन पहले अमेरिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार करीब १०१ millions यानी लगभग १० करोड़ लोगों को वैक्सीन लगायी गयी थी, उनमें सिर्फ़ ०.०१ प्रतिशत लोगों को इन्फ़ेक्शन हुआ और वह भी बेहद हल्का फुल्का!
https://time.com/6052238/breakthrough-covid-19-infections-vaccinated/
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Mahendra K. Singh, Ph.D.
Research Assistant Professor – Department of Surgery
University of Miami Miller School of Medicine
Member – Sylvester Comprehensive Cancer Center
Email: mahendragbc@gmail.com (personal)
mahendra.singh@miami.edu (Office)
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Twitter: @mksin149