कोविड महामारी का वैश्विक राजनीति पर प्रभाव 

–संतोष कुमार

दुनिया में जब भी कोई बड़ी घटना घटती है तो उसका असर भी उतना ही बड़ा होता है। ये घटनाएं नैसर्गिक और कृत्रिम दोनों प्रकार की हो सकती हैं।  दरअसल, वर्तमान इंसानी सभ्यता आज उन अनेक घटनाओं का परिणाम मात्र है जो न सिर्फ घटीं बल्कि उनके असर से इंसान कभी व्यापक तो कभी आंशिक तौर पर बदल के रह गया। पाषाण युगीन अग्नि का आविष्कार और आधुनिक युग में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास दो बड़े छोर हैं जिनके बीच दुनिया का तमाम इतिहास समाया हुआ है।  जहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का सम्बन्ध है, यह तो स्वाभाव से ही गतिशील है।  इसलिए ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि कोरोना के कारण दुनिया की सियासत में और भी बदलाव आ सकते हैं। 1918 में  फैले स्पैनिश फ्लू के कारण प्रथम विश्व युद्ध की भीषण तबाही झेलने वाली दुनिया को एक बड़ा झटका लगा था।  प्रथम विश्व युद्ध के विनाशकारी अनुभवों के पश्चात यूरोप को स्पैनिश फ्लू को भी झेलना पड़ा था।स्पेन से शुरू होकर यह महामारी फ्रांस, इटली, ब्रिटेन आदि अनेक देशों में तेज़ी से फैली और शीघ्र ही दुनिया भर में इसका असर देखा गया। हालाँकि कोरोना महामारी की मृत्युदर तुलनात्मक रूप से अभी तक लगभग दो प्रतिशत रही है इसलिए इसका वैसा असर कम संभावित है जो पूर्व की महामारियों में अनुभव किया गया था। किन्तु यह अभी तक निर्विघ्न रूप से जारी है इसलिए भविष्य में परिणाम बदल भी सकते हैं।    

अब तक यह स्पष्ट हो गया है कि कोरोना वायरस की वजह से दुनिया की स्थापित अर्थव्यवस्थाओं तक में गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है। इन देशों में उपलब्ध उन्नत चिकित्स्कीय अवसंरचना  नाकाफ़ी साबित हुई है। इस परिस्थिति के कारण गरीब देशों की चिंताएं और बढ़ गयी हैं। इटली, स्पेन, अमेरिका जैसे सक्षम देशों में महामारी प्रलयंकारी रही है। इसने अमेरिका जैसी महाशक्ति की मज़बूत स्वास्थ्य अवसंरचना को असहज कर के रख दिया है। यही हाल इटली और यूरोप के अनेक सक्षम देशों का भी रहा है।  जर्मनी को यदि अपवाद माने तो अन्य अनेक ताक़तवर देशों को व्यापक परिणाम झेलने पड़े हैं। यूरोप में प्रथम और द्वितीय विश्व युद्दों के बाद नितांत प्रतिकूल परिस्थितियाँ पैदा हो गयी हैं। इटली के हालIत ऐसे रहे हैं कि वहां पर डॉक्टर यह तय कर रहे थे कि किसे वेंटीलेटर पर रखा जाये और किसको उसके हाल पर छोड़ा जाये? अब ऐसे  में यदि दुनिया के निर्धन देशों की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को देखें तो उपलब्ध संसाधन चिंताग्रस्त कर देते हैं। जहाँ दुनिया के अनेक देशों में पर्याप्त टेस्टिंग आदि के ज़रिये माहमारी को नियंत्रित करने के प्रयास किये गए वहीँ विकासशील देशों में ऐसा संभव नहीं हो पाया है। इसलिए महामारी की वास्तविक स्थिति कुछ और भी हो सकती है। जनसांख्यकीय दृष्टि से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।सीरो के सर्वे में  दिल्ली के प्रत्येक चौथे व्यक्ति को कोरोना संक्रमित पाया गया है।  यह हाल सम्पूर्ण दक्षिण और दक्षिण -पूर्व एशिया का हो सकता है।  

इस प्रकार से देखा जाये कोरोना महामारी ने दुनिया को दो ध्रुवीय बना दिया है। एक तरफ वे देश हैं जो स्वास्थ्य सुविधाओं से सम्पन्न हैं और उनमे से अनेक देशों ने इस पर प्रभावी काबू भी पाया हुआ है।  जैसे दक्षिण कोरिया, जापान और जर्मनी।  किन्तु विपन्न देशों में हालात बेहद कठिन होते जा रहे हैं। ईरान पहले से ही ज़बरदस्त प्रतिबंधों की मार झेल रहा था। कोरोना ने तो उसे तोड़ के रख दिया है। एक डॉलर के मुकाबले लगभग ढाई लाख रियाल कीमत होना ईरानी अर्थव्यवस्था की तकलीफ़देह तस्वीर पेश करता है।  सद्दाम हुसैन के बाद इराक़ लगातार अराजकता से ग्रस्त रहा है। कोरोना ने इस स्थिति को और जटिल बना दिया है। अपेक्षित चिकित्स्कीय सुविधओं के आभाव में बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं। मृतकों की संख्या इतनी अधिक हो रही है कि कब्रें कम पड़ रही हैं।  ऊपर से वहाँ सक्रिय विभिन्न गुट अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे हैं।  दक्षिण और दक्षिण -पूर्व एशिया के देशों के पास मौजूद संसाधन इस संकट के सामंने अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। एक तो पहले से ही यहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ कमज़ोर थीं और वहीँ दूसरी ओर महामारी का बेकाबू स्वाभाव इन देशों में बड़े राजनीतिक और आर्थिक संकट ला सकता है। हाँ, वियतनाम जैसे अपवाद हो सकते हैं। वियतनाम ने शुरू में ही कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए थे। चीन के साथ लगने वाली सीमाओं को सील कर दिया था।वहां यह आवश्यक था कि विदेश से आने वाला प्रत्येक यात्री अनिवार्य क्वारंटाइन से गुज़रेगा। इसका बड़ा सकारात्मक असर रहा है। वियतनाम ने महामारी पर बिना मज़बूत संसाधनों के प्रभावी काबू पाने का दावा किया है। 

कोरोना काल से पूर्व अनेक देश आर्थिक मंदी का सामना कर रहे थे।  एक प्रकार से देखा जाये तो वैश्विक अर्थव्यवस्था अपनी लय को बरक़रार रखने के लिए संघर्ष कर रही थी। अमेरिका, चीन और भारत समेत अनेक देश आर्थिक संकटों का सामना कर रहे थे। कोरोना के दौर में इसमें और इज़ाफ़ा हुआ है। अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जिनकी कमर टूट चुकी है।  इनमे पर्यटन, उड्डयन और होटल जैसे अनेक क्षेत्र हैं जहाँ व्यापक असर हुआ है। बेरोज़गारी अमेरिका में तो चिंता पैदा कर ही रही है साथ ही भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इसने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया है। इसका बड़ा असर अभी देखना शेष है। सम्भावना है कि बेरोज़गारी से पीड़ित देश ऐसे अनेक उपाय अपना सकते हैं जो चले आ रहे वैश्विक पैटर्न से विलग.

–संतोष कुमार

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