गार्डेन सिटी बंगलोर में आक्सीजन के लिए चीत्कार

भारत का एक शहर है बंगलोर जिसे सिटी आफ गार्डेंस कहा जाता था. बाद में उसे इंडिया का आई टी हब बना दिया गया. विकास के आधुनिक तौर तरीक़ों में आक्सीजन पार्लर शामिल हो गया. और अब आक्सीजन के लिए चीत्कार. क्या देश के कर्णधार अब भी नहीं जागेंगे – समाज सेवी कुमार कलानंद मणि की चिंता.

कुमार कलानंद मणि

आज भारतवर्ष विश्र्वगुरू के रूप में नहीं विश्व का सबसे पीड़ित राष्ट्र के रूप में विलख रहा है ‌। कोविड के आंकड़े गगन छू रहें हैं । कल तक अट्टालिकाओं में लाखों की गद्दी पर नींद ढूढने वाले अस्पतालों के इंफ्केटेड फर्श पर पुनर्जीवन का गुहार लगा रहे हैं ।सरकार से कुछ नहीं कहूंगा क्योंकि वह है ही नहीं । दंभी और अपराधी जब सत्ता की कुर्सी पर बैठेगा तो सिवा विनाश के कुछ और नहीं कर सकता । शिक्षित समझने वालों, खुद को आधुनिक या सुपर ह्युमन से कुछ कहने की हिम्मत जुटा रहा हूं ।आज कोविड 19 में आक्सिजन के लिए आप शहरी शिक्षितों का तड़पना और तड़प कर मरना मुझे भी हर दिन विव्हल कर रहा है, क्षत विक्षत कर रहा है । पता नहीं, कल में इन पंक्तियों को सुधारने के लिए रहूं या नहीं ।शिक्षितों, आधुनिक पंथियों, शहरी सभ्यता के खिदमतगारों, माता धरती और जीव सृष्टि के साथ आपके अपराध का चिठ्ठा बहुत बड़ा है ।

आक्सिजन के लिए चीत्कार शहरों से हैं। महानगरों की अट्टालिकाओं से विकरित चीत्कार विश्र्व को रूलाया है । Whether, today, this learned consumer citizens have any ability of reading between the lines. ?? The line is about the life and the development.

एक शहर है बंगलुरू

एक शहर है बंगलुरू । आज से तीस साल पहले उसे सीटी आफ गार्डेन कहा जाता था । मैं इस शहर में 43 साल पहले रहा हूं । मेरा इस शहर से इश्क था । तब मैं कैंपेगौडा सर्कल से कुमारा पार्क शौकिया चल कर जाया करता था । शादी के बाद भी जब मेरा परिवार बना तब भी बंगलुरू हम सबका प्रिय डेस्टिनेशन था । मेरे काम के शहरों में एक शहर था । इस शहर पर डायन की नजर पड़ी ।। देखते देखते सिटी आफ गार्डन्स को अभिमान पूर्वक सिटी आफ आईटीज में तब्दील कर दिया गया । फिंच क्या हुआ ?? एक दिन मैं सुबह सुबह एर्नाकुलम पहुंचा । ‌ तब आदतन स्थानीय साथी ने द हिंदू अखबार, मेरा प्रिय अखबार मुझे थमा दिया । मैं अपने गंतव्य की ओर चल पड़ा और अखबार पलटता रहा । मैंने मुख्य खबर के बजाए छोटी ख़बर पढ़ने की आदत बना रखी थी, जो अक्सर बहुत महत्वपूर्ण होती है ‌। मुख्य (?) खबर तो ज्यादातर बकवास ही होती है । छोटी ख़बर थी ” भारत का पहला ऑक्सीजन पार्लर बैंगलोर में खुला” । मैं ठिठक गया । उस दिन रिन्यूअल सेंटर में मेरा भाषण था । इसी छोटी सी खबर को मैंने अपने भाषण को मुख्य विषय बनाया । पूरी वेदना और शिद्दत से बात रखी । 10% को अच्छी लगी और बाकी को बकवास । विकास पर अंगुली उठाना बकवास के कचरे में डाला जाता रहा है धर्मपरिवर्तन या धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ आकाश फोड़ने वालों को शहर के स्वरूप परिवर्तन में विकास ही विकास दीखता रहा है ।

नव विकास रूपी डायन

बंगलूरू का नव विकास रूपी डायन उड़ उड़ शेष शहरों पर मंडराने लगी और वहां का चेहरा मोहरा बदलने लगा ‌‌ । तालाब, पोखर, कुआं, पार्क, छोटा छोटा जंगल, पेड़, पेड़ों का समूह, छोटे छोटे खेत, पुराने घर सब यह डायन निगलता रहा। इस डायनी विकास पर गर्वनिष्ट शिक्षित आज गले का टाय खोल रहे हैं ताकि कहीं से, भले ही इस्लामिक मुल्क से हो, आक्सीजन की कुछ धार उनके सीन को तप्त कर सके ।

शिक्षितों, कभी सोचा था कि सिटी आफ गार्डन्स को सीटि ऑफ आईटीज में तब्दील करने पर आक्सीजन की उपलब्धता पर क्या असर होगा ?? क्या सोचा था कि 5- 10- 20- 40- 60-100 मंजिल की अट्टालिकाओं को बांधते समय, वृक्षों का संहार करते समय, तालाबों और खेत को बुझाते समय आक्सीजन की उपलब्धता पर क्या असर पड़ेगा ?? कभी इन अट्टालिकाओं को बांधते समय सोचा था कि इससे आक्सिजन के नैसर्गिक सर्कुलेशन पर क्या असर पड़ेगा ?? कभी सोचा था कि इन्हीं अट्टालिकाओं के बंद दीवारों में आक्सीजन की उपलब्धता पर क्या असर पड़ेगा ??

मच्छर से आक्सीजन तक सरकार के हवाले

कभी सोचा था कि ए सी में कैद जीवन से तथा बंद कमरों के सर्कुलेटेड एअर में तुम्हारे फेफड़े और नाजुक हो जाएंगे ?? कभी सोचा था कि मच्छरों से बचने के चक्कर में तुम्हारा खुद का शरीर कितना विषाक्त होगा और फेफड़े कमजोर होंगे ?? तुमने खिड़की तो बनाएं, लेकिन हवा पीने के लिए नहीं, पर्दों से सजाने के लिए और अपनी नव संपन्नता का दर्प दिखाने के लिए ‌। कभी सोचा था कि जिस आधुनिकता के साथ अंधी शादी रचाई है, वह मौत, अभाव तथा विषमता का महामार्ग है !! कभी सोचा था तुम्हारी यही आधुनिकता ग्लोबल वार्मिंग तथा क्लाइमेट चेंज के नाम से दुनिया के अस्तित्व का यक्षप्रश्न बनेगी ? तुम इतने शिक्षित हो गए कि भाग्य भगवान् के हवाले किया तथा मच्छर से आक्सीजन तक सरकार के हवाले 😭😭, !!! सरकार, मैं इस यंत्रणा के बारे में कुछ भी लिखना अमूल्य समय की बरबादी मानता हूं ‌। सरकार के चार स्तंभ हैं, एक अहंकार, दूसरा लूट, तीसरा दमन और चौथा झूठ ।😡😡

आक्सीजन, आक्सिजन का चीत्कार

एक था मोहनदास करमचंद गांधी । किसी ने उसे महात्मा से अलंकृत किया तो किसी ने राष्ट्रपिता से तो किसी ने कह डाला he will take us to lantern era, किसी ने उसे दलाल कहा तो किसी ने उस पर गोली चलाई तो किसी ने शब्दों के बाण कि India is now free from a liability । उसके अपनों में से कुछ ने उसके हिंद स्वराज पर फब्तियां कसीं, और समझाया India has to be developed on the path of science and technology, like Europe. जिसे इसने मोहनदास ने संविधान सभा में पहुंचाया उसने भी इस सभा के अंतिम सत्र में कह दिया कि आजाद व संवैधानिक भारत में सत्याग्रह के लिए कोई जगह नहीं है ‌ । गांधी ने कहा गांवों में भारत की आत्मा बसती है तो इसने कहा गांव छोड़ो और शहर जाओ । गांधी ने कहा शोषणकारी मशीन नहीं चाहिए तो इसने कहा India want more and more machine. अब कोई भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का साल 2015 तथा 2016 के रिपोर्ट को देख ले ‌। जिसने भी बनाया है, उन्हें सलाम । उसमें स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े हैं तथा Respiratory disorders की बढ़ती समस्या का जिक्र है । 2015 तथा 2016 का रिपोर्टकार्ड या कोई भी रिपोर्ट कार्ड में शिक्षितों को reading between the lines समझ में नहीं आती ! और , आज आक्सीजन, आक्सिजन का चीत्कार इसी समझदारी के अभाव का परिणाम नहीं तो और क्या है !!!

खबर है, आंकड़े हैं, कि, अब भी बड़ी आबादी गांवों में हैं लेकिन वहां से आक्सीजन की चीत्कार नहीं है । खबर है कि वनाच्छादित क्षेत्र जिस पर कारपोरेट डायन की नजर गड़ी हुई है, वहां आक्सीजन का चीत्कार नहीं है ‌ । क्या अब भी शिक्षित रीडीग बिटवीन द लाइंस समझेगा ???

बात सिर्फ़ और सिर्फ़ कोविड 19 के फेज 1 या 14 तक की नहीं है । बात है कि जीवन तथा विलासिता के भेद की । जीवनोपयोगी समाज चाहिए या मरनोन्मुखी शहरी, आधुनिक समाज । समय बहुत कम है ‌‌। गांधी ने अपने ढंग से कहा, लेकिन शिक्षितों ने नहीं माना । डॉ स्टीफन हॉकिंग ने अपने ढंग से कहा लेकिन शिक्षितों ने नहीं पढ़ना ही भविष्य माना । क्योंकि वे शिक्षित इस समझदारी से हुए हैं कि साइंस और टेक्नोलॉजी के पास आकाश के नीचे हर चीज की दवा है । भले ही एक रिपोर्ट ने किसी ने हिम्मत से लिख दिया कि 133 cities in India are unfit for human habitation.

बात सिर्फ़ और सिर्फ़ कोविड 19 के फेज 1 या 14 तक की नहीं है । बात है कि जीवन तथा विलासिता के भेद की । जीवनोपयोगी समाज चाहिए या मरनोन्मुखी शहरी, आधुनिक समाज । समय बहुत कम है ‌‌। गांधी ने अपने ढंग से कहा, लेकिन शिक्षितों ने नहीं माना । डॉ स्टीफन हॉकिंग ने अपने ढंग से कहा लेकिन शिक्षितों ने नहीं पढ़ना ही भविष्य माना । क्योंकि वे शिक्षित इस समझदारी से हुए हैं कि साइंस और टेक्नोलॉजी के पास आकाश के नीचे हर चीज की दवा है । भले ही एक रिपोर्ट ने किसी ने हिम्मत से लिख दिया कि 133 cities in India are unfit for human habitation.

फिल्म शोले की याद आती है ‌।
गब्बर: तेरा क्या होगा कालिया ??
कालिया: सरदार, मैंने आपका नमक खाया है ।
गब्बर: ले अब गोली खा ।
और उसके बाद क्या हुआ आपको पता है । कालिया भी गया और बाद में सरदार….

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