कोरोना संक्रमण में उपयोगी वनस्पतियाँ – वासा और धतूरा

*डॉ नीतूश्री

    एक कहावत है कि एक दिन घूरे (कचरा)पर उगा धतूर भी काम आता है।आज के परिवेश में यह कहावत चरिचार्थ हो रही है।नगर या गाँव में खाली पड़ी जमीनों,टीलो,भींटो,कचरे के ढ़ेर पर उगी बनस्पतियाँ अडुसा और धतूरा आज संजीवनी बूटी से कम नहीं है।इसलिए इन्हे पहचान जरूरी हो गयी है।अब समय आ गया है,कि आबादी के दबाव में खाली जमीने,टीले,भींटे खत्म हो रहे है।विकास के नाम हमने ऐसी वनस्पतियों को समूल नष्ट करते जा रहे है।आइए आज कोरोना काल में इनकी महत्व के समझते है।इन्हें कचरे के उठा कर गमले में लगाने का समय आ गया है।

वासा

इसे अरुषा,अडुसा,वाकस,रूसा भी कहा जाता है।बंगाली में वासक,मराठी में अडुलसा,गुजराती में अरडुसो,कन्नड़ में अडुसोगे,तेलगु मे अडुसरमु,मलयालम में वलिय आटलोटकम,पंजाबी में भेकर,तमिल में अटतोटै,फारसी में बाँस,अरबी में हसीशतुस्सुआल,अंगेजी मे मालाबार नट लैटिन में Adhotoda vasica कहते है।यह  Acanthaceae परिवार का सदस्य है।आयुर्वेद मे यह कर्पूर वर्ग की औषधि है।यह भारत के लगभग सभी प्रान्तों में खाली ऊँची जमीन,टीलों,भीटों पर  पाया जाता है। 

        इसकी मुख्य क्रिया श्वसन संस्थान (Respiratory system) पर होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा श्वासनलिकाओं का प्रसार करता है। इससे श्वासनलिकाओं का प्रसार कम किन्तु स्थायी होता है। इससे कफ पतला होकर आसानी से बाहर निकलता है । कास का जो निरन्तर वेग आता रहता है वह कम होता है, श्वासनलिकाओं का प्रसार होकर दम फूलना कम हो जाता है। यदि कफ के साथ या खांसी के बाद मुंह से रक्त आता हो तो वह भी बन्द हो जाता है। इसका पत्र स्वेदजनन है।  इसका कफनि:सारक गुण सम्भवत: मुख्यतया इसमें मौजूद उङनशील तैल (volatile oil)  के कारण होता है। नवीन श्वसनीशोथ में विशेषकर जब कफ गाढा तथा चिपचिपा हो इससे आराम होता है। जीर्ण श्वसनीशोथ में इससे खांसी में आराम मिलता है तथा कफ ढीला होकर आसानी से बाहर निकल जाता है। इसका वातनाङियों पर शामक प्रभाव के कारण एवं कफ को पतला करने के कारण इससे खांसी में आराम मिलता है। 

तमक श्वास में इसके पत्तों का धूम्रपान लाभदायक है। इसके पत्र में  उङनशील तैल मौजूद होने के कारण इसे अकेले या नमक या जवाखार या सुहागे या  धत्तूरे के पत्तो के साथ उबाल कर भाप लेने से कफ निकलता है,जिससे खाँसी व श्वास लेने में कष्ट में तत्काल आराम मिलता है। इससे श्वसनतंत्र  के सूजन भी कम होती है। भाव प्रकाश के अनुसार यह उत्तेजक,कफ निकालने वाला,ऐंठन कम करने वाला, श्वासकष्ट,खाँसी, फेंफड़ो के क्षय (टीबी),ज्वर,कृमि नाशक होता है। इसके पत्ते में एक कडवा क्षाराभ (alkaloid) Vasicine, Adhatodic acid (carbolic acid), volatile oil पाया जाता है। इसकी औषधीय क्रिया मुख्यत:  Vasicine  और Volatile oil के कारण होती है।इसके पंचांग चूर्ण  को एक ग्राम के मात्रा, पत्तों का स्वरस 3 से 5 मिली शहद व अदरख के रस के साथ दिन में दो से तीन बार प्रयोग किया जाता है।खाँसी के लिए बाजार में बिकने वाले लगभग सभी कफसिरपो का यह महत्वपूर्ण घटक है। वर्तमान से इसे गमले में लगना चाहिए,क्योकि आज कर यह भीटों,टीलो,खाली जमीन के खत्म होने के कारण यह दुर्लभ होता जा रहा है।

धतूरा
धतूरा

धतूरा

आयुर्वेद के अनुसार यह भी कर्पूर वर्ग की वनौषधि है,जो भारत के कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी प्रांतो में पाया जाता है। इसका फूल,फल भगवान शिव को चढाया जाता है इसलिए शिवप्रिय भी कहा जाता है। यह शिवमंदिरों आस-पास या नगरी  व ग्रामीण क्षेत्र में कूड़े कचरे के ढेर पर मिल जाता है।इसे हिन्दी में धतूरा,धूर्त, धतूर,बंगाली में धुत्तुरा,मराठी में धोत्रा,धत्तूरो,पंजाबी में धत्तूर,मलयालम में उन्मत्त,कन्नड़ में मदकुणिके,तेलगू में धुत्तुरम्,तमिल में उम्मतई,अग्रेजी में थार्न अपल,लैटिन में Datura stramonium Linn.  कहते है।यह मादक व अधिक मात्रा में विषाक्त होता है।इसके पत्ते वेदना,उद्वेष्टन(Spasm),श्वास,खाँसी,ज्वर,शोथ नाशक होता है।इसमें हायोसिन नामक उड़नशील तैल होता है।जिसके कारण इसका धूँवा या भाप लेने पर कफ निकल कर श्वासकष्ट दूर होता है। फेफड़ो के के सूजन में भी लाभदायक होता है।आयुर्वेद में श्वास व खाँसी मे लाभकारी कनकासव नामक औषधि बनायी जाती है।जिसका प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के अनुसार किया जाता है। 

श्वास के पुराने रोगियों के कमरे में इसके सूखे पत्तों में कलमी शोरा मिला कर धूँवा करने से आराम मिलता है।इसके चार-पाँच पत्तों को अकेले या वासा के पत्तों या कलमीशोरा,या नमक या जवा क्षार,या सुहागा के साथ पानी में उबाल कर भाप लेने से गले में फँसाँ कफ तत्काल निकल जाता है,श्वशनिका मे फैला कर साँस लेने में परेशानी को दूर कर देता है उसके सूजन को भी कम करता है।

इस प्रकार वर्तमान में खाँसी,श्वास,ज्वर की महामारी में इसका प्रयोग का गंभीर स्थिति में जाने बचा जा सकता है।इस समय कई वैद्य इसका प्रयोग कर लोगो को राहत प्रदान कर रहे ।

     *डॉ नीतूश्री , एसोसिएट प्रोफेसर-मेजर एस.डी.सिंह आयुर्वेद पोर्टग्रेजुएट कालेज फरुर्खाबाद उप्र् शोधार्थी ,द्रव्यगुण विभाग,आई एम एस आयुर्वेद,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी

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