कोरोना:- अवसाद या संवाद…
मन की गाठें अवसाद न बनें
द विट्स स्कूल द्वारा 17 जनवरी रविवार को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपने स्कूल के अभिभावको एवं छात्र- छात्राओं के लिए ऑनलाइन कोरोना: – अवसाद या संवाद विषय पर ‘जीवन-संवाद’ का लाइव सेशन आयोजित किया गया। इस लाइव सेशन को मीडिया जगत की सुप्रसिद्ध हस्ती और बहुचर्चित पुस्तक ‘‘जीवन-संवाद’’ के लेखक दयाशंकर मिश्रा ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि कोविड और प्री-कोविड के इस बुरे दौर में आज सबसे ज्यादा जरूरत अपनों के बीच बैठकर उनसे बात करने की। क्योंकि किसके मन का कौन सा खाली कोना कब अवसाद का रूप ले ले, यह तय नहीं है।
कहीं मन की गाठें अवसाद न बनें…
रविवार को ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आयोजित हुए इस ‘‘जीवन-संवाद’’ में दयाशंकर मिश्रा ने कहा कि कई बार छोटी-छोटी बातों और मनमुटाव की वजह से मन में गांठें पड़ती जाती हैं और हमारा अपनों से जीवंत संवाद लगातार घट जाता है, जबकि आज सबसे ज्यादा जरूरत अपनों से मिल-बैठकर बात करने की है। क्योंकि मन में पड़ती गांठें आगे चलकर अवसाद या डिप्रेशन का रूप ले लेती हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे ज्यादा खतरनाक है।
संवाद बेहद जरूरी…
ऑनलाइन प्लेटफार्म पर लगभग डेढ़ घंटे चले इस ‘‘जीवन-संवाद’’ में दयाशंकर मिश्रा ने अपनी बात रखने के बाद प्रश्नोत्तरी सेशन में अभिभावकों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। उन्होंने डिप्रेशन संबंधी एक सवाल के उत्तर में कहा कि बच्चों से हर विषय पर बात करना और उनकी सुनना भी बेहद जरूरी है, ताकि अभिभावकों और बच्चों के बीच संवाद की गुंजाइश बनी रहे।
मानसिक स्वास्थ्य को पागलपन से न जोड़ें…
रिश्तों के बीच होने वाली अनबन से जुडे़ एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि हर भारतीय औसतन अपने दिन का 4 घंटा आज सोशल मीडिया में खपा रहा है, जो एक चैंका देने वाला आंकड़ा है। सोशल मीडिया के इस दौर में लोग आभासी दुनिया को ही सच समझ लेते हैं। अपने सच्चे रिश्तों को समय नहीं देते हैं। एक साथ बैठकर बातचीत करना ही भूलते जा रहे हैं। यहां तक कि सोशल एकाउंट्स की फ्रेंडलिस्ट के लिए अपने वास्तविक मित्रों को तक भूल बैठते हैं। यह स्थिति चिंतनीय है, क्योंकि हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य को अभी भी लोग सामान्य बीमारी की तरह नहीं, बल्कि पागलपन से जोड़कर देखते हैं।
लोगों को बातचीत के लिए प्रोत्साहित करें.
बातचीत के दौरान ‘‘जीवन-संवाद’’ पुस्तक के लेखक ने कहा कि हमें बातचीत और संवाद के माध्यम से लोगों को यह समझाने की सख्त जरूरत है कि अवसाद या डिप्रेशन पागलपन नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है। इसलिए लोगों को अपना हर दुःख-दर्द किसी अपने से साझा करने की बहुत जरूरत है। साथ ही दूसरों को भी बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। आज डिप्रेशन से भारत सहित पूरी दुनिया जूझ रही है। डिप्रेशन के कारण लगातार आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। इसका हल मन की गांठें खोलना ही है। इसलिए इसे छुपाने की बजाय गंभीरता से लेने की जरूरत है, ताकि समय रहते इसका इलाज हो सके। क्योंकि जीवन बहुत अनमोल है और जीवन की किसी भी समस्या का समाधान मौत नहीं बल्कि जीवन ही है।
‘ कोरोना:- अवसाद या संवाद’
इस विषय पर आयोजित इस ‘‘जीवन-संवाद’’ का संचालन द विट्स स्कूल की प्रिंसिपल नमिता शुक्ला ने किया। ”जीवन-संवाद” पुस्तक के लेखक दयाशंकर मिश्रा द्वारा किया गया, जो मूलतः रीवा से हैं। इस संवाद की शुरुआत में दयाशंकर जी ने विट्स की टीम, अभिभावकों एवं बच्चों से जीवन के विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से बातचीत करते हुए कहा कि आज कल हम करोना काल में किस तरह के प्लेटफॉर्म एवं संवाद के बीच में जी रहे हैं और मन में आ रहे सवालों के साथ लम्बे समय जीते चले जाते हैं। हम यह समझ ही नहीं पाते कि कैसे वह भाव और बात हमारे मन के भीतर अवसाद पैदा कर देती है। अवसाद को कम करने के लिए हमे संवाद करना बहुत जरूरी है, पिता को पुत्र से, माता को पुत्र- पुत्री से, बेटे को माता-पिता से, बड़ों को छोटों से संवाद करते रहना चाहिए। मन की गांठ को कैसे कम किया जा सकता है उस विषय पर चर्चा की गई।
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चर्चा के अन्त में विट्स स्कूल के अभिभावकों एवं टीम के सदस्यों ने दयाशंकर मिश्रा से अपने मन के सवाल पूछे और चर्चा के अन्त में यह भी निवेदन किया कि आने वाले समय पर द विट्स स्कूल को ऐसा प्रयास करना चाहिए कि यह विषय और संवाद सतना के हर क्षेत्र मे पहुंच सके। ताकि जीवन के हर मोड़ पर टूटने वाले व्यक्ति की मदद की जा सके।
दयाशंकर मिश्रा
ये ऑनलाइन संवाद करने वाले सज्जन और “जीवन-संवाद” पुस्तक के लेखक अपने एमसीयू के सीनियर दयाशंकर मिश्रा हैं। इस समय नेटवर्क 18 की हिंदी वेबसाइट के पैन इंडिया एडीटर हैं।