धनतेरस पर कूकर
प्रियदर्शन शर्मा
पूरे बरस भर के इंतजार के बाद धनतेरस पर कूकर खरीदा गया … डाक बाबू के बेटा का बियाह हुआ था तो उनके यहां दहेज में कूकर आया था… पूरे टोले में पहला कूकर था वह भी दहेजुआ .. टोले की हर घर की औरत डाक बाबू के घर दहेज का सामान देखने गई थी लेकिन देखना तो सबको कूकर ही था … फिर दरोगा के बेटी जब घर की मंझली बहुरिया बनकर आई तो उसी के हाथ से कूकर में पहली बार ‘भात’ बना था …
अम्मा जिंदा थी उस समय, उस दोपहर अम्मा जब डाक बाबू के घर गई तब कोयला वाले चूल्हा पर कूकर में ‘लेबा’ लगाकर भात बनाने के लिए चढाया गया था … चार-छह मिनट बीता नहीं की कूकर से ‘सीं’ सीं’ की आवाज आने लगी और फिर सीटी पर सीटी देने लगा कूकर … अम्मा तो एकदम से डर गई थी … अब भला ‘तसला, कराही’ जैसा बरतन भी सीटी देने लगे तो आदमी की तो जान ही चली जाए … अम्मा ने इसके पहले बांसुरी और बिगुल से आवाज निकलते सुना था, लेकिन एकदम बिगुल जैसी आवाज कूकर की सीटी में था …
अम्मा ही आई थी और बड़का बाबू को बताई थी कैसे डाक बाबू के घर में भात बनाने के लिए सीटी देवे बाला बरतन आया है … अम्मा खुलकर बोली नहीं थी लेकिन चाहती थी कि बड़का बाबू भी एक कूकर ले लाएं, ऐसे भी डाकू बाबू के घर तो आज तक जितना सामान आया सब अम्मा के घर में ही पहले आया था … लेकिन दहेजुआ कूकर ने गच्चा दे दिया … अब भला सन् 1988 में बड़का बाबू का तनख्वाह ही कितना था महीना का 600 रुपया, उस पर घर में खाने वाले आदमी जानवर मिलाकर 18 प्राणी … कहां से आता कूकर एतना पैसा में …
उस दिसम्बर के महीना में ही बड़का बाबू ने तय किया था कि अगला धनतेरस पर कूकर आएगा … करीब करीब बरस भर के इंतजार के बाद … एक एक रुपया जोड़ा गया था तब जाकर धनतेरस पर कूकर आया … बड़का बाबू तो अम्मा को बताए भी नहीं थे कि कूकर लाने जा रहे हैं लेकिन जब बड़ा वाला डिब्बा खुला तब अम्मा की खुशियों का ठिकाना नहीं था … कूकर की खुशी में आंख छलक आई थी अम्मा की …
ऐसे ही हर साल कभी कूकर, तो कभी थाली- कोटरी सेट आते रहा बरस दर बरस धनतेरस पर … अम्मा आज बता रही कि बड़का बाबू कहते थे ‘धनतेरस’ इसलिए बना है कि साल का सबसे जरुरी सामान खरीदा जाए … पैसा पैसा जोड़ा जाए ताकि कुछ बनाया जा सके धनतेरस पर ….
और आज अखबार में एक लेख आया है कि अब हमारे देश में लोगों की क्रय शक्ति बढ गई है, मंदी के बावजूद लोग बाजारों में कुछ न कुछ खरीद रहे हैं। वैसे कूकर खरीदने वाला धनतेरस का चलन खत्म हो गया… सेहत के लिए धन्वंतरि की पूजा तो हम पहले ही भूल चुके हैं ।