हार्ट और किडनी को भी ठीक रखती है लौंग!!
लवङ्ग्म कटुकम तिक्तम लघु नेत्रहितम हिमम।
दीपनम पाचनम रुच्यम कफपित्तास्रनाशकृत।
तृष्णाम छर्दिम तथाssध्मानम शूलमाशु विनाशयेत।
कासम श्वासश्च हिक्काश्च क्षयम क्षपयति ध्रुवम॥
अर्थात, लौंग कटु एवं तिक्त रस युक्त, लघु, नेत्र के लिए हितकर,शीतवीर्य, अग्नि को दीप्त करने वाली, पाचक एवं रुचिकारक होती है तथा कफ, पित्त, रक्तविकार, तृषा, वमन, आध्मान, शूल, कास, श्वास, हिचकी,एवं क्षय रोगों को शीघ्र एवं निश्चित ही दूर करती है।
(भाव प्रकाश कर्पूरादि वर्ग 58-59)
लौंग मुखशुद्धि के लिए एवं गर्म मसाले के एक घटक के रूप में सामान्यतः प्रयुक्त वनस्पति है। अधिकांश लोगों को संभवतः इसकी जानकारी नहीं होगी कि इसका चिकित्सीय उपयोग भी होता है। इसका रस कटु एवं तिक्त, गुण लधु, वीर्य शीत होता है। इसकी शुष्क पुष्प कलिका का ही प्रयोग किया जाता है। यह आँखों के लिए लाभदायक होती है, जठराग्नि को दीप्त कर भूख को बढ़ाकर भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न करती है, भोजन को पचाने में सहायक होती है। इसके साथ साथ,आयुर्वेद में इसका प्रयोग कफ, पित्त, रक्त संबंधी रोगों, प्यास, उल्टी,आध्मान, दर्द, खांसी, श्वास संबंधी रोगों, हिचकी एवं क्षय रोगों में प्रयोग की जाती है। लौंग का तेल का प्रयोग जठराग्नि को बढ़ाने, वात दोष का शमन करने और दाँत के दर्द को दूर करने में प्रयोग किया जाता है।
इसमें विटामिन बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, यूजीनोल, ओलिएनोलिक एसिड, कैरियोफ़ाईलीन, टैनिन, वाष्पशील तैल, तथा फोस्फोरस जैसे रसायन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
लौंग के सेवन से भूख बढ़ती है, आमाशय की रस क्रिया को बल मिलता है, भोजन के प्रति रुचि उत्पन्न होती है और मन प्रसन्न होता है। कृमिनाशक होने से उदररोगों के जनक सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट कर देती है। चेतना शक्ति को जाग्रत करती है। शरीर की दुर्गंध को दूर करती है। शरीर के किसी भी बाह्य अंग में लेप करने से दर्द को दूर करने, चेतना जाग्रत करने, घावों को सुखाने और उनको भरने में बहुत सहायक होती है। इसके अतिरिक्त, लौंग किडनी संबंधी रोगों और हृदय रोगों के लिए भी बहुत अच्छी औषधि है।
लौंग का किन किन रोगों में किस प्रकार उपयोग किया जाता है,इसकी कितनी मात्रा का सेवन करना चाहिए और इसके क्या क्या गुण दोष हैं, इस पर आज श्री रामदत्त त्रिपाठी के साथ आयुषग्राम चित्रकूट के संस्थापक, भारतीय चिकित्सा परिषद, उ.प्र. शासन में उपाध्यक्ष तथा कई पुस्तकों के लेखक, आयुर्वेद फार्मेसी एवं नर्सिंग कॉलेज के प्रधानाचार्य एवं प्रख्यात आयुर्वेदचार्य आचार्य वैद्य मदन गोपाल वाजपेयी, एवं बनारस विश्वविद्यालय के दृव्य गुण विभाग के प्रो. (डॉ) जसमीत सिंह विस्तार से चर्चा कर रहे हैं:
आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयी, बी0ए0 एम0 एस0, पी0 जीo इन पंचकर्मा, विद्यावारिधि (आयुर्वेद), एन0डी0, साहित्यायुर्वेदरत्न, एम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन), एल-एल0बी0।
संपादक- चिकित्सा पल्लव,
पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0,
संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।