सोै साल में चीन हुआ शी चिनफिंग,
चीन को नापते समय इतिहास के झराखे में झांकना जरूरी
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को सौ साल पूरे हुए और चीन का इतिहास हजारों साल पूरे कर चुका है। तो क्या आज के चीन को पुरानी तरह देखा जाना चाहिए। वह भी पहले खंडित दीवारों की अक्सरियत से घिरा था और छिन षिह्वांग, -यानी मुझसे बादशाहत शुरू होती है- ने आकर लम्बी दीवार यानी वान ली छांगछंग -दस हजार ली अथवा पांच हजार किलोमीटर लंबी दीवार- के निर्माण की अथश्री की। बल्कि इन सारी अलग-अलग दीवारों को मिलाकर इकट्ठा कर दिया।
पूरा चीन तबसे लगभग ऐसा ही चला आ रहा है।समय-समय पर उसमें शिनच्यांग और शीचांग -तिब्बत- जैसे भूभागों को भी चीन का स्वायत्त पहचान वाला सीमान्त हिस्सा मानकर दिखाया जाता रहा ह, भीतरी मंगोलिया की भी लगभग यही स्थिति है। राजसत्ता के वर्तमान सोपान यानी चीनी कम्युनिस्ट पार्र्टी को अस्तित्व में आये भी अब सौ साल हो रहे हैं। तो यह विहंगम दृष्टिपात करने का एक उचित अवसर है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्र्टी की स्थापना जब 1921 में हुई तो उस समय तक 1911 की लोकतांत्रिक क्रांति के तहत गणराज्य के तौर पर सुन चुंगषान की रहनुमाई में चीन का राजकाज चल रहा था।च्यांग च्यैषि यानी जनरल च्यांग काईषेक ने क्वो मिनतांग पार्र्टी को गोया अपनी जागीर में बदल दिया था। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने ग्रामीण क्षे़त्रों में ’लाल आधार क्षेत्र’ बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के सहारे नियमित सेना को करारी मात दी।और च्यांग काईषेक भागकर थाई खाड़ी-थाईवान या ताईवान- चला गया। तब से चीन की मुख्यभूमि 1 अक्तूबर 1949 को चीन लोकगणराज्य हो गई। इस तरह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर लिये हैं। और शी चिनफिंग इस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष हैं।
अब वह मा़त्र अघ्यक्ष नहीं बल्कि ’आजीवन अध्यक्ष’ भी घोषित कर दिये गये हैं। इससे पहले अभी हाल तक यानी इस पद से उतारे जाने तक पो शीलाई के बारे में यह संभावना बताई जा रही थी। लेकिन वे रातोंरात ऐन मौके पर भ्रष्ट पाये गये और उनकी सत्ता हाथ से जाती रही।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शासनकाल में सत्तापलट की यह प्रणाली लगभग एक सर्वसिद्ध हथियार बन चुकी है। माओ च तुंग पर भी ऐसे आरोप लगे। तंग श्याओफिंग तो इसके बाकायदा शिकार भी हुए। लिन प्याओ, चैगुटे, हूयाओ पांग, चांग छुनछ्याओ, च्यांग छिंग, याओ वनय्वैन, चओ चीयांग, हू छीली और इधर पो पो शीलाई सब इसी नाकारा कर दो प्रणाली के शिकार हुए हैं।
वहां आजीवन कब अल्पजीवन हो जाय यह इस बात पर निर्भर करता है कि सत्ता पर पार्टी के किस समूह का कब्जा है। इस परंपरा को थोड़ा बहुत प्रसिद्ध चीनी उपन्यास ’बंजर के वीर’ को समझा जा सकता है, पर थोड़ा बहुत ही। लेकिन समझने की एक और आंख अवश्य खुल जाती है।
बहरहाल, इस अवसर पर हाल में शी चिनफिंग ने जो घोषणाएं की हैं। उनका दूसरा मतलब यही है कि चीन अपने को अब दुनिया भर में छा जाने में नये सिरे से समर्थ मानता है। हाल में चीनी जनकांग्रेस में उन्होंने जो ताल ठोंके, उससे यह साफ हो जाना चाहिए कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का फौरी उद्देश्य विश्व को अपनी आर्थिक सफलता की मुट्टी में कैद कर लेना है। कोरोना ने भी चीन के लिए दुतरफा काम किया हैा मन जैसी न होने पर दुनिया भर में उसका प्रसार हालिया नमूने के आधार पर किया जा सकता है और अगर दो दो हाथ करने की नौबत आए तो फिर दुश्मन ठीक से सोच ले और संभावित अंत भी जान ले।
दूसरी तरफ दूसरे ग्रहों तक पहुंचने की चीन की कोशिश भी अब किसी से छिपी नहीं है। कह सकते हैं कि चीन चीनी भूमंडलीकरण का एक नया नमूना ईजाद कर चुका है। और वह जब उचित समझेगा, इसका प्रयोग भी कर सकता है। यह लेखक नहीं दुनिया भर के चीन विशेषज्ञ इस आशंका से ग्रस्त दीख पड़ते हैं।
पर इतिहास भी एक ऐसा तत्व है जो अपने को बार-बार दोहराने से बाज नहीं आता। पहला विश्व युद्ध, दूसरा और संभावित तीसरा सबके इस बारे में अपने-अपने कयास हैं । यह दुनिया कई बार विनष्ट होकर फिर उठ खड़ी हुई है। लेकिन वर्तमान सचाई तो यही है कि चीन तरह-तरह से दुनिया में हाथपांव पसारता दिखाई पड़ रहा है। साथ ही चीन के भीतर की कठिनाइयां भी तौल में कोई कम नहीं है। यह अवसर है कि चीन को वास्तविक अर्थों में सही-सही तौला जाय। शी चिनफिंग के हालिया इरादों को भी इसी तराजू पर तौला जाना चाहिए–न इधर को झुक के, न उधर को झुक के।
कह सकते हैं कि चीन को नापते समय इतिहास के झराखे में झांकना जरूरी है। जब शोर मचता है तो सूरज डूबने से हर कोई बेखबर रहना चाहता है। पर सूर्य अस्त भी होता है और उगता भी है। इंतजार करना होगा कि शी चिनफिंग काल कितना लंबा चलेगा। ये चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की भीतरी अवधियां हैं।
जहां तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रश्न है, वह अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर चुकी है। इस बीच चीन के भीतर कई तख्त बने और बिगड़े हैं। लेकिन पार्टी की उम्र और उसके कद में कोई मरणांतक चीरा नहीं दिखाई पड़ता। उसके अंत की किसी प्रकार की घोषण स्वयं मरणांतक हो सकती है। यही फिलहाल जिसे कहते हैं, वस्तुगत स्थिति है। इसी से संतोष करना पड़ेगा!
त्रिनेत्र जोशी, चीन विशेषज्ञ, दिल्ली से