केंद्र सरकार चेते या भुगते

डॉ सुनीलम
  • निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है किसान आंदोलन
  • किसान आंदोलन के पक्ष में उतरे संपूर्ण विपक्ष

देश का किसान आंदोलन महत्वपूर्ण दौर में पहुंच चुका है। पंजाब के किसानों ने पंजाब से दिल्ली आने वाले दो हाईवे पर लाखों की संख्या में डेरा डाला हुआ है तथा 50 किलोमीटर का जाम लगा हुआ है। पंजाब के किसान 6 महीने के राशन पानी की व्यवस्था के साथ आए हुए हैं। किसानों ने रामलीला मैदान मांगा था लेकिन उन्हें बुराड़ी मैदान दिया गया जो कि दिल्ली के बाहर है। वहां हजारों की संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बल किसानों को घेरने की तैयारी में है इसलिए किसान वहां नहीं जाना चाहते।

किसानों में मन मे संदेह तभी पैदा हो गया था जब दिल्ली में 6 स्टेडियमों को जेल में तब्दील करने की बात चर्चा में आई थी। केंद्र सरकार और उसका गोदी मीडिया किसान आंदोलन को बदनाम और विभाजित करने में दमखम से लगा हुआ है। गोदी मीडिया बेशर्मी के साथ आंदोलन को खालिस्तान समर्थकों, पाकिस्तान समर्थकों, पृथकतावादीयों का आंदोलन साबित करने के लिए हर किस्म के तिकड़म और षड्यंत्र कर रहा है। एजेंसियों की कोशिश है कि पंजाब के 30 किसान संगठनों में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की वर्किंग ग्रुप में तथा संयुक्त किसान मोर्चा में फूट पैदा की जाए। अभी तक एजेंसियों को सफलता नहीं मिली है लेकिन प्रयास जारी है। पंजाब के किसान संगठन दिन-रात बैठकें कर एक-एक मुद्दे पर लगातार स्पष्टता एवं एकजुटता बनाए रखने के लिए सतत प्रयासरत हैं।

पंजाब के किसान जब भी बात करते हैं तो वह पंजाब के गौरवशाली इतिहास पर बोलते हैं।यह सिख किसान यह बतलाता है कि कैसे सिक्खों ने मुगलों, अंग्रेजों से वीरता पूर्वक संघर्ष कर उन्हें परास्त किया था।वे खुले आम घोषणा करते हैं कि अब नरेंद्र मोदी की बारी है। मैं लगातार पंजाब गत 3 दिनों से किसानों के बीच में हूं मुझे आश्चर्य होता है कि पंजाब के किसानों में इतनी ऊर्जा कैसे पैदा हो गई है । यह सब पंजाब के किसान संगठनों की दशकों की मेहनत का परिणाम है जिसके चलते पंजाब के किसानों की चेतना का स्तर पूरे देश में सर्वाधिक है। मैं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश को देश का सर्वाधिक राजनीतिक चेतना वाला क्षेत्र मानता रहा हूं लेकिन तीन किसान विरोधी कानून के खिलाफ केंद्र सरकार से मुकाबला करने के संदर्भ में पूरे देश में पंजाब का किसान सर्वाधिक चेतनशील दिखलाई पड़ रहा।

देश के 5 वामदलों के साथ डी एम के ,राष्ट्रवादी कांग्रेस ,राष्ट्रीय जनता दल ने किसानों के प्रति केंद्र सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना की है एवं राष्ट्रपति से मुलाकात करने की घोषणा की है। अब समय आ गया है कि संपूर्ण विपक्ष किसान आंदोलन के समर्थन में सड़कों पर उतरे।
मुझे लगता है कि देशभर में किसानों के सड़क पर पंजाब की तरह सड़क पर नहीं उतरने के पीछे बोवनी का समय और कोरोना का भय है। बिहार की जनता ने जनादेश महागठबंधन को दिया था लेकिन भाजपा-जदयू गठबंधन ने सत्ता उसी तिकड़म से हथिया ली है जिस तिकड़म से राज्यसभा में तीनों किसान विरोधी बिलों को पारित कराए थे।

बिहार में संपूर्ण विपक्ष किसान आंदोलन के साथ खड़ा है बिहार के संपूर्ण विपक्षी दल के विधायक किसान आंदोलन के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। अब समय आ गया है जब बिहार के विपक्ष सड़कों पर निकल कर दिल्ली पहुंचकर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ में किसानों द्वारा चलाए गए आंदोलन के साथ खड़ा हो। वहां के किसान भी जल्दी ही मैदान में दिल्ली की सड़कों पर दिखाई देंगे इसकी शुरुआत भारतीय किसान यूनियन द्वारा कर दी गई है। यदि किसानों को रामलीला मैदान पर 26 तारीख से डेरा जमाने देते तो अब तक देश भर के लाखों किसान दिल्ली पहुंच चुके होते लेकिन सरकार ने किसानों को रामलीला मैदान में नहीं पहुंचने दिया। आज भी तराई किसान संगठन के सेकड़ों वाहन 3 दिन रामपुर में रोके जाने के बाद दिल्ली जंतर मंतर जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें बुराड़ी पहुंच दिया।

देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा जो भाषा बोली जा रही है उससे पता चलता है कि वह किसानों को एक तरह का अल्टीमेटम दे रहे है। ग्रह मंत्री द्वारा कहा गया है कि किसान बुराड़ी मैदान में बैठे और शांतिपूर्वक आंदोलन करें जिसका अर्थ यह भी है कि वह वर्तमान किसान आंदोलन को शांतिपूर्ण नहीं मानते हैं तथा जल्दी से जल्दी हाईवे खुलवाने की जुगत में है। केंद्र सरकार के मंसूबों को पंजाब के किसानों ने समझ लिया है इसलिए भी सड़कों से हटने को तैयार नहीं है। किसान संगठनों (पंजाब संगठनों,अखिल भारतीय किसान सँघर्ष समन्वय समिति-संयुक्त किसान मोर्चा) ने सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। सरकार ने किसानों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए तमाम रोड पर कृत्रिम जाम लगाने शुरू कर दिए हैं ताकि जनता किसान आंदोलन के खिलाफ बोलने लगे।

किसान आंदोलन को सरकार, मीडिया और देश का ध्यान आकृष्ट कराने में अब तक सीमित सफलता मिली है। मोदीवादी और संघी आंदोलन को विभाजनकारी बतलाकर राष्ट्रवाद का एजेंडा वैसे ही आगे बढ़ा रहे हैं जैसे मुसलमानों को लेकर,तबलीगी जमात को लेकर अब तक बढ़ाते रहे हैं।
अन्नदाता किसान आंदोलनकारियों को देश का दुश्मन साबित करने का प्रयास किया जा रहा है।
किसान आंदोलन ऐसे निर्णायक दौर पर पहुंच चुका है जब देश के किसान आंदोलन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल कर किसान विरोधी कृषि कानूनों और बिजली बिल 2020 को रद्द कराने के इस संघर्ष में पूरी ताकत से शामिल हों तथा इसे रद्द कराएं। केंद्र सरकार को भी यह समझ लेना चाहिए कि हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा जो दमनकारी कदम उठाए गए उसका प्रयोग यदि केंद्र सरकार ने भी किया तो उसके गंभीर परिणाम होंगे।

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