बुंदेलखंड़ : पैरों से खुद की तकदीर लिख रही है ‘अंजली’!
बांदा। खुदा किसी के साथ नाइंसाफी करता है तो उसे भविष्य संवारने की तरकीब भी देता है। खुदा ने कुछ ऐसी ही तरकीब दोनों हाथों से दिव्यांग ‘अंजली’ को दिया है। दसवीं कक्षा की परीक्षा दे चुकी अंजली पढ़ाई-लिखाई से लेकर खाना खाने तक के अपने सभी रोजमर्रा के काम पैरों से ही निपटाती है। यानी पैरों से ही खुद की ‘तकदीर’ लिख कैंसर की डॉक्टर बनना चाहती है।
यह कहानी उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड़ के बांदा जिले में विकास खंड बिसंडा के तेंदुरा गांव की दोनों हाथों से दिव्यांग 16 साल की लड़की ‘अंजिली’ की है। जो अपने रोजमर्रा के कामों के लिए किसी पर आश्रित नहीं हैं। उसने इस साल दसवीं कक्षा की परीक्षा दी है। पिता की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के बाद भी पढ़-लिखकर वह डॉक्टर बनना चाहती है और कैंसर पीड़ितों का मुफ्त में इलाज करना चाहती है। कुदरत ने उसे हाथ तो दिए हैं, लेकिन उन हाथों से चम्मच तक नहीं पकड़ सकती। वह पढ़ाई-लिखाई से लेकर खाना खाने तक के सभी काम पैरों से निपटाकर अपने किस्मत की लकीर खुद खींच रही है। अब तक उसे या उसके मां-बाप को कोई सरकारी सहायता नसीब नहीं हुई।
अंजली के अनुसार, “वह पढ़-लिखकर कैंसर विभाग में डॉक्टर बनना चाहती है और हर कैंसर पीड़ित का मुफ्त में इलाज करना चाहती, ताकि गरीबी के चलते इस बीमारी से उसके ताऊ जैसे किसी की जान न जाये।” उसने बताया कि “महज 14 बीघे कृषि भूमि के किसान उसके ताऊ (बाबा) अवधेश सिंह कैंसर से पीड़ित थे। इलाज के लिए पूरी जमीन बैंक में गिरवी रख दी, जो आज भी बंधक है। कर्ज लेकर करवाये गए इलाज से भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।” उसने कहा कि “अब वही सरकारी कर्ज बढ़कर मां-बाप के लिए बोझ बन गया है। इसलिए डॉक्टर बनकर कैंसर पीड़ितों का मुफ्त में इलाज करना चाहती हूं और मां-बाप को वरासत में मिले सरकारी कर्ज को भरना चाहती हूं।”अंजली के पिता राजकिशोर सिंह बताते हैं कि “हम दो भाई हैं। कैंसर की बीमारी से पिता की मौत के बाद दोनों भाइयों को 7-7 बीघा पैतृक कृषि भूमि वरासत में मिली है। पिता के इलाज के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (के.सी.सी.) के तहत पूरी जमीन इलाहाबाद बैंक में गिरवी कर पांच लाख रुपये कर्ज लिया था, जो अब बढ़कर आठ लाख रुपये हो गया है। एक भाई के हिस्से में चार लाख रुपये सरकारी और एक लाख रुपये गांव के साहूकारों का कर्ज उधार है। बैंक ने कर्ज अदायगी न करने पर जमीन नीलाम करने की नोटिस दी है। इस साल सात बीघे जमीन में कुल नौ कुंतल गेहूं पैदा हुआ है और खेती में लागत 25 हजार रुपये आयी है। ऐसे में सरकारी कर्ज कैसे भरा जा सकेगा। कर्ज माफी का भी लाभ नहीं मिला।” अंजली के डॉक्टर बनने के जुनून पर वह कहते हैं कि “आर्थिक स्थिति तो बहुत खराब है, लेकिन बिटिया की पढ़ाई के लिए कसर नहीं छोड़ेंगे, भले ही जमीन बेचना पड़े।”
बकौल राजकिशोर, “अंजली के दोनों हाथ बेकार हैं, वह अपने पैरों से कलम पकड़कर लिखाई करती है और पैरों से ही चम्मच पकड़ कर खाना भी खाती है। पढ़ने में अपनी कक्षा में सहपाठियों में सबसे अव्वल है। अंजली घर में बड़ी है, उससे छोटे दो लड़के हैं।” वह बताता है कि “इसके पहले मैं गुजरात के सूरत में मजदूरी करता था, लेकिन कैंसर से पिता की मौत के कुछ दिन बाद मां की भी मौत होने पर अब घर में रह रहा हूं।” उसने बताया कि “बिटिया अंजली को सरकारी सहायता के नाम पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा दिया गया सिर्फ विकलांगता प्रमाण पत्र मिला है, अब तक बिटिया को एक रुपये वजीफा भी नहीं मिला।”
-बुंदेलखंड़ से आर. जयन की रिपोर्ट
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