‘बुल्ली बाई ऐप’ मामले में गिरफ्तार श्वेता को हिंदू धर्म से था लगाव, पर… उसकी बहनों ने कहा…
श्वेता ऐसा घिनौना काम कभी नहीं कर सकती
बुल्ली बाई ऐप मामले में मुख्य आरोपी बताकर मुंबई पुलिस जिस 18 साल की श्वेता को गिरफ्तार करके अपने साथ ले गई है, उसके परिवार में तीन भाई बहनों के अलावा कोई नहीं। उसकी दोनों बहनें यह मानने को तैयार नहीं कि श्वेता ऐसा कोई भी घिनौना काम कर सकती है, पढ़िये उनका दर्द…
सुषमाश्री
“श्वेता को हिंदू धर्म से बहुत लगाव था, लेकिन वह मुसलमानों से नफरत नहीं करती थी।”, 21 वर्षीय मनीषा सिंह अपनी 18 वर्षीय छोटी बहन श्वेता के लिये कहती है। “अपने हिंदू संस्कृति से वह बेहद प्यार करती है।” 18 साल की श्वेता को उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर स्थित उसके घर से 4 जनवरी को मुंबई पुलिस हिरासत में लेकर चली गई। श्वेता को “बुल्ली बाई ऐप” (Bulli Bai App) मामले में शामिल होने का आरोपी बताया गया है, जहां 100 से भी ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरों को आनलाइन नीलामी के लिये रखा गया था।
लोग बुल्ली बाई ऐप मामले में उन मुस्लिम महिलाओं की मानसिक स्थिति और सदमे की बात तो कर रहे हैं, जिनकी तस्वीरें इस ऐप में डाली गई थीं, कि वे किस दौर से गुजर रही हैं, लेकिन कोई भी इस बारे में बात नहीं करना चाहता कि 18 साल की श्वेता और उसका परिवार किस मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रहा है।
श्वेता के अलावा तीन अन्य आरोपियों को भी बुल्ली बाई ऐप मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है। बेंगलुरू से 21 साल के विशाल झा को, असम से 20 वर्षीय नीरज बिश्नोई को और उत्तराखंड से 21 वर्षीय मयंक रावत को इसी मामले में अब तक गिरफ्तार किया जा चुका है। पुलिस ने नीरज को इस ऐप का क्रिएटर बताया, जिसने यह सारी योजना बनाई जबकि श्वेता को मुख्य आरोपी बताया गया, जिसने ऐप का ट्वीटर हैंडल तैयार किया था। श्वेता को 7 जनवरी को मुंबई ले जाया गया।
इन गिरफ्तारियों के बाद से ही यह चर्चा गर्म थी कि ये सभी आरोपी युवा हैं। पुलिस ने कहा कि श्वेता विशाल झा को जानती थी।
यह पूछे जाने पर कि क्या उसकी बहन विशाल को जानती है, मनीषा ने कहा, “हां। उसका नाम इस मामले में आने का एकमात्र कारण यही है कि उसने विशाल से ऑनलाइन बात की थी।”
मनीषा ने दावा किया कि श्वेता और विशाल “ऑनलाइन दोस्त बने”, और उन्हें पुलिस से ही इस बारे में जानकारी मिली कि श्वेता और विशाल एक दूसरे से ट्विटर और इंस्टाग्राम पर बात करते थे। श्वेता की गिरफ्तारी के बाद से ही, उसके भाई-बहन अपनी बहन की बेगुनाही के सबूत वेब पर ढूंढ़ने में जुटे हैं।
मनीषा ने आगे कहा, “हो सकता है वह विशाल से बात करती हो, लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे इस तरह की गतिविधियों में संलिप्त होगी। वे उसे महज संदेह के आधार पर ले गए हैं। ”
जबकि मनीषा ने इस बात पर भी जोर डाला कि “श्वेता नीरज बिश्नोई को नहीं जानती है और न ही विशाल, नीरज और श्वेता किसी एक ग्रुप में काम कर रहे थे। हां, श्वेता का सोशल मीडिया आईडी जरूर बिश्नोई यूज कर रहा था। यह बात खुद बिश्नोई ने भी पुलिस के सामने कबूल किया है।”
मनीषा ने आगे कहा कि जब वे श्वेता को पकड़ने आए तो पुलिस ने उनके सभी फोन चेक किए और श्वेता का फोन भी छीन लिया।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की श्वेता माता पिता की मौत के बाद अपने तीन भाई बहनों – मनीषा, योगिता और यश के साथ यहां रह रही थी। उनके पिता की मौत पिछले साल मई के महीने में कोविड के कारण हो गई जबकि मां की मौत 2011 में ही कैंसर की वजह से हो गई थी।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में श्वेता को इंजीनियरिंग की छात्रा बताया गया था, लेकिन मनीषा इसे सिरे से खारिज करते हुये कहती है, “वह पुरातत्व में जाना चाहती थी, हमारी पुरानी भारतीय मूर्तियों और भित्ति चित्रों का अध्ययन करना चाहती थी। 12वीं के बाद उसने पुरातत्व में बीए करने के लिये बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आवेदन भी दिया था।”
हिंदू सभ्यता संस्कृति से श्वेता के प्रेम और लगाव का एक उदाहरण पेश करते हुये मनीषा ने बताया कि उसकी बहन अक्सर पूछती थी कि लोग क्रिसमस जैसे त्यौहार क्यों मनाते हैं? बल्कि लोगों को इसकी जगह पर तुलसी के पौधे की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भी मनीषा ने जोर देते हुये कहा कि
श्वेता ने अन्य धर्मों के प्रति “द्वेष” जैसी भावना कभी नहीं दिखाया।
मनीषा ने यह भी बताया कि उसकी बहन केराटोकोनस नामक बीमारी से पीड़ित थी, जिसमें कथित तौर पर अपनी दाहिनी आंख से वह मुश्किल से देख पाती थी। नतीजतन, “वह कभी भी अपने फोन का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करती थी और ज्यादातर दिन में भी अपनी आंखों को आराम देने के लिए सोती थी।”
उसने कहा, “श्वेता अपराधी नहीं हो सकती।”
श्वेता की 15 वर्षीय छोटी बहन, योगिता, जो कक्षा 10 की छात्रा है, ने बताया कि श्वेता “बहुत अंतर्मुखी” है। वह किसी से बेकार में ज्यादा बातचीत नहीं करती।
वह कहती है, “आप तो जानते हैं कि लोग ग्रुप्स में स्कूल जाते हैं, लेकिन उसके दोस्तों का कोई ग्रुप नहीं था। वह बस अपने भाई के साथ ही स्कूल जाती थी और उसी के साथ स्कूल से घर वापस लौट आती थी।”
वह आगे कहती है, “श्वेता हमेशा थोड़ी भोली और कोमल रही है, और अपनी शारीरिक बनावट को लेकर भी हमेशा असुरक्षित महसूस करती रहती थी। यही वजह था कि उसे स्कूल में थोड़ा धमकाया भी जाता था। इस कारण वह स्कूल के किसी भी दोस्त के संपर्क में भी नहीं थी। हम भाई बहन ही उसके सबसे करीबी दोस्त थे।”
योगिता आगे कहती है, श्वेता को पहला फोन पिछले महीने मई में दिया गया था ताकि वह आनलाइन क्लास अटैंड कर सके।
मनीषा ने कहा कि उनके पास खुद का कंप्यूटर या लैपटॉप भी नहीं है। श्वेता को वह एक ऐवरेज छात्र बताते हुये कहती है, श्वेता पढ़ाई में बहुत तेज नहीं थी। उसके अंदर इतनी काबिलियत नहीं थी कि वह इस तरह के किसी ऐप से जुड़ पाती।
मनीषा कहती है, ऐसी चीजों को अंजाम देने के लिए आपको बहुत सारे तकनीकी ज्ञान, स्रोत आदि की आवश्यकता होती है। वह तो अपने स्कूल की पढ़ाई पर भी बहुत ध्यान नहीं दे पाती थी। उसके आंखों का इलाज भी चल रहा था और वह कभी भी बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित नहीं कर पाती थी।”
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यह बताते हुए कि श्वेता में बहुत सारे “अच्छे मूल्य” थे, मनीषा ने कहा: “आप कह सकते हैं कि इसे सबूत के तौर पर नहीं देखा जा सकता, लेकिन एक लड़की जिसकी खुद दो बहनें हैं और वह एक अनाथ है, जिसे खुद भी समाज अक्सर अपनी कसौटी पर आंकता रहता है, वह इस तरह किसी और लड़की को नहीं देख सकती न ही बदनाम कर सकती है।”
योगिता ने मनीषा की बात को आगे बढ़ाते हुये कहा कि वैसे भी ऐसे कामों में शामिल होने के मामले में श्वेता बहुत “आलसी” थी। वह उन लोगों में से एक है, जो आराम से सोना और खाना पसंद करते हैं,
“आप जानते हैं कि जब हम मुंबई के लिए उसका बैग पैक कर रहे थे, तब थाने से कॉल करने पर उसने क्या कहा? उसने हमें अपने कपड़े, इत्र और कुरकुरे चिप्स के पैकेट पैक करने के लिए कहा।”
मनीषा और योगिता ने कहा कि श्वेता को हिरासत में लिए जाने के बाद से उन्हें सोशल मीडिया पर “अत्यधिक” नफरत का सामना करना पड़ रहा है।
योगिता ने कहा, “ये समाचार चैनल उसके बारे में फर्जी खबरें चला रहे हैं। और हमें ऑनलाइन बेहद नफरत मिल रही है। लोग कह रहे हैं कि श्वेता ने उत्तराखंड का नाम खराब किया है। एक ने तो यहां तक कमेंट कर दिया है कि उसकी बहन की भी नीलामी कर देनी चाहिये।”
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मनीषा ने इन सबको अदालत के फैसला सुनाने से पहले ही ऐसा करके लोगों को “ऑनलाइन फैसला सुनाने” जैसा वर्णित किया।
मनीषा कहती है, “इतनी नफरत जो हमें मिल रही है और जिस तरह से हमें बदनाम किया जा रहा है, मुझे यकीन है कि इससे पहले तक जो लोग हमारी मदद कर रहे थे, वे भी ऐसा करने से हिचकिचाएंगे। यहां तक कि हमारे मकान मालिक भी अब हमें यह घर खाली करने को कह रहे हैं।”
मनीषा के अनुसार, कई समाचार चैनलों ने श्वेता पर आरोप लगाया कि “क्या यह सब पैसे के लिए किया गया?” हम निम्न मध्यम वर्ग से ताल्लुक भले ही रखते हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि श्वेता को पैसों की कमी थी।”
उसने कहा, महामारी के दौरान अनाथ हुये लोगों के लिए एक योजना के तहत उन्हें 3,000 रुपये प्रति माह मिल रहे हैं और पिता जहां कार्यरत थे, उस कंपनी से भी हमें 10,000 रुपये की मासिक राशि मिल जा रही थी। मनीषा ने बताया कि श्वेता के नाम पर एक बैंक खाता भी है, जिसमें उनके पिता की मृत्यु के बाद परिवार को मिली बीमा राशि जमा है।
उसने कहा, “जब भी उसे जरूरत हो, वह इसका इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन हमने इसे अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए सहेजा है।”