भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और संपत्ति के केंद्रीकरण के विकास के साथ कैसा होगा इस वर्ष का बजट
इस वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट की प्रस्तुति होने वाली है. जाहिर है कि, उद्योग जगत , व्यापारी वर्ग और आम जनता हर वर्ष की भांति प्रतीक्षा कर रही है बजट प्रावधानों और घोषणाओं का. अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थितियों और बजट से आशाओं का उल्लेख करने के पूर्व पूर्व वर्ष के केंद्रीय बजट के प्रावधानों पर एक दृष्टिपात करना वांछित प्रतीत होता है......
इस वित्तीय वर्ष के केंद्रीय बजट की प्रस्तुति होने वाली है. जाहिर है कि, उद्योग जगत , व्यापारी वर्ग और आम जनता हर वर्ष की भांति प्रतीक्षा कर रही है बजट प्रावधानों और घोषणाओं का. अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थितियों और बजट 2022 से आशाओं का उल्लेख करने के पूर्व पूर्व वर्ष के केंद्रीय बजट के प्रावधानों पर एक दृष्टिपात करना वांछित प्रतीत होता है.
विगत वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित तीन महत्वपूर्ण खबरें आईं थीं. प्रथम , वर्तमान में भारत में भ्रष्टाचार में अत्यधिक वृद्धि हुई है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के भ्रष्टाचार इंडेक्स में पिछले वर्षों में वृद्धि हुई है , द्वितीय, लोकतंत्र में गिरावट आना ( वर्ष 2019 के 6.9 के स्कोर से वर्ष 2020 में 6 . 61 पर आ जाना ) और तृतीय , पिछले 1 वर्ष की अवधि में संपत्ति के केंद्रीकरण में वृद्धि होना ( ऑक्सफैम के अनुसार विगत 9 माह की अवधि में भारत में सबसे अमीर व्यक्तियों द्वारा 13 लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित की गई है ) .
अर्थशास्त्रीय दृष्टि से और अर्थशास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों के अनुसार बजट आर्थिक नीतियों का निर्धारण करता है एवं उसके अनुसार अर्थव्यवस्था की प्राथमिकताएं और दिशा तय होती हैं , जिनसे आर्थिक – विकास का स्तर प्रभावित एवम् निर्धारित होता है. इस बुनियादी तत्व का अभाव होने पर एक आम व्यक्ति के पारिवारिक बजट और शासकीय बजट में कोई विशेष अंतर नहीं होता . यह अंतर अवश्य होता है कि, सरकार के बजट के द्वारा जो प्राथमिकताएं और निवेश निर्धारित होता है , वह संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था , जनसंख्या और उनके जीवन स्तर को प्रभावित करता है.
इन संदर्भों में और वैश्विक महामारी कोरोना जिससे पूरा देश और अर्थव्यवस्था पिछले दो वर्ष से त्राहि त्राहि कर रहे हैं को दृष्टिगत रखते हुए दृष्टि पिछले वर्ष के बजट पर करने से ज्ञात होता है कि, इसमें कुल आवंटन का 23.25 प्रतिशत हिस्सा अर्थात 8.09 लाख करोड़ रुपए पूर्व की देन दारी के ब्याज भुगतान आवंटित किया गया था, जिसमें 15.7 लाख करोड रुपए का राजकोषीय घाटा घोषित किया गया था, जो कि कुल जीडीपी का 6.76% था, अतः ऐसे बजट(बजट 2022) आवंटन से 140 करोड़ जनसंख्या के विकास एवं जीवन स्तर में वृद्धि की क्या उम्मीद की जा सकती थी ?
कोरोना त्रासदी से सर्वाधिक प्रभावित सर्वाधिक गरीब जनता के लिए जीवन यापन के लिए रोजगार की किरण महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना मनरेगा में 38, 000 करोड रुपए की कटौती , स्वास्थ्य सेवाओं और वेल बीइंग के लिए बजट में मात्र 2.3% की वृद्धि , बहु प्रचारित आयुष्मान भारत योजना के बजट को यथावत 6,400 करोड रुपए रखे जाने , देश की वर्तमान की एक सबसे बड़ी समस्या रोजगार के अभाव के संदर्भ में और कोरोना त्रासदी से प्रभावित होकर करोड़ों लोगों के रोजगार छुटने और करोड़ों शिक्षित बेरोजगारों के रोजगार से वंचित होने पर भी रोजगार सृजित करने अथवा प्रदान करने के लिए कोई महत्वपूर्ण , उल्लेखनीय और क्रांतिकारी प्रावधान न होने से वैश्विक त्रासदी के बाद प्रस्तुत किया गया यह बजट देश की बहुसंख्यक जनता के लिए अत्यंत सामान्य और निराशाजनक साबित हुआ था .
स्वास्थ्य के क्षेत्र में बजट में जो वृद्धि की गई थी वह मुख्यत: अधिसंरचनात्मक सुविधाओं की मद में होने से आम आदमी को प्राप्त होने वाली स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि प्राप्त होने की कोई सकारात्मक स्थितियां निर्मित नहीं हुईं . देश के विकास को ठोस और दीर्घकालीन दिशा देने वाली शिक्षा पर बजट आवंटन में 6.13% की कमी ( विगत वर्ष के 99, 312 करोड़ रुपए से घटा कर 93, 222 करोड रुपए ) खेद जनक था. बालिकाओं की शिक्षा पर भी व्यय बढ़ाया जाना चाहिए था , लेकिन वह भी कम ही रहा . निजीकरण बढ़ाते जाने की योजना के अंतर्गत अधिसंरचनात्मक क्षेत्र के लिए राशि जुटाने के लिए सरकारी संपत्तियों को बेचने की घोषणा भी इस बजट में करते हुए निजी करण को बढ़ाते जाने की प्राथमिकता तय हुई .
कृषि मंत्रालय को आगामी वित्त वर्ष के लिए आवंटित राशि 1, 31, 530 करोड रुपए उस वर्ष के बजट अनुमान 1,41,761 करोड रुपए की तुलना में 10, 000 करोड़ रुपए कम रही. कृषि मंत्रालय की सबसे बड़ी योजना “पी – एम किसान ” में बजट आवंटन विगत वर्ष की तुलना में 75, 000 करोड़ रुपए से घटाकर 65, 000 करोड़ रुपए किया गया .
इस प्रकार , संक्षेप में शिक्षा ,स्वास्थ्य ,कृषि और रोजगार जो कि अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आयाम हैं एवं देश की अधिसंख्य जनता के जीवन – स्तर को प्रभावित करते हैं के संदर्भ में कोई उल्लेखनीय प्रावधान न करते हुए पिछला बजट बहुसंख्यक जनसंख्या के लिए निराशाजनक था.
अब इन स्थितियों में जब कोरोना महामारी से देश में लोग रोजगार खो चुके हैं, (बजट 2022) रोजगार अनुपलब्ध हैं, आय और संपत्ति के केंद्रीयकरण में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और सरकार रेलवे , एयर पोर्ट्स , रेलवे स्टेशनों तक का प्रबंधन करने में नाकामयाब हो चुकी हो और बेतहाशा निजीकरण कर रही हो ,जिससे आम आदमी को रोजगार मिलने के अवसर और सिकुड़ रहे हैं और बेतहाशा महंगाई से आम जन जीवन और जनता त्रस्त हो , आगामी बजट से क्या उम्मीदें की जा सकती हैं….?
अर्थशास्त्री प्रो. अमिताभ शुक्ल विगत चार दशकों से शोध , अध्यापन और लेखन में रत हैं. सागर विश्वविद्यालय ( वर्तमान डॉक्टर हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय ) से डॉक्टरेट कर अध्यापन और शोध प्रारंभ किया और भारत और विश्व के अनेकों देशों में अर्थशास्त्र और प्रबन्ध के संस्थानों में प्रोफेसर और निर्देशक के रूप में कार्य किया. आर्थिक विषयों पर दस किताबे और 100 शोध पत्र लिखने के अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था और भारत की अर्थव्यवस्था संबंधी विषयों पर पत्र पत्रिकाओं में लेखन का दीर्घ अनुभव है .
” विकास ” विषयक शोध कार्य हेतु उन्हें भारत सरकार के ” योजना आयोग ” द्वारा ” कोटिल्य पुरस्कार ” से सम्मानित किया जा चुका है. प्रो. शुक्ल ने रीजनल साइंस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और भारतीय अर्थशास्त्र परिषद की कार्यकारिणी परिषद के सदस्य के रूप में भी योगदान दिया है और अनेकों शोध संस्थाओं और सरकार के शोध प्रकल्पों को निर्देशित किया है. विकास की वैकल्पिक अवधारणाओं और गांधी जी के अर्थशास्त्र पर कार्यरत हैं (बजट 2022). वर्तमान में शोध और लेखन में रत रहकर इन विषयों पर मौलिक किताबो के लेखन पर कार्यरत हैं . हाल ही में विश्वव्यापी कोरो ना – त्रासदी पर आपका एक काव्य – संग्रह ” त्रासदियों का दौर ” और एक विश्लेषण पूर्ण किताब ” वैश्विक त्रासदी: भारत पर आर्थिक एवं सामाजिक प्रभाव ” प्रकाशित हुईं हैं .
लेखक- अमिताभ शुक्ल