क्रिप्टो करेंसी के ख़तरे और ज़रूरत!

बिटकॉइन या अन्य ‘क्रिप्टो करेंसी’

अभी भले भारत अपनी डिजिटल (आभासी) मुद्रा (क्रिप्टो करेंसी) की योजनाएँ बना रहा है लेकिन 18 अक्टूबर, 2021 की सुबह 9 बजे तक दुनिया में विभिन्न नाम से 6,950 ‘क्रिप्टो’ करेंसी चलन में आ चुकी थीं. इनमें सबसे पुरानी, चर्चित तथा लोकप्रिय ‘बिटकॉइन’ है. अब तक इसका ‘मार्केट कैप’ 24 खरब, 96 अरब, 46 करोड़, 58 लाख 08,552 डॉलर पहुँच चुका है.

डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर

अब डिजिटल युग है. इसे स्वीकारना होगा. इसकी अपनी अहमियत है; जो ज़ल्दबाज़ी की चाहत से स्थापित हुई है. इसे बदलना असम्भव सा है. डिजिटल चलन से तमाम चल-अचल सम्पत्ति की दस्तावेज़ी प्रामाणिकता बढ़ी है. यह सभी मानने लगे हैं. बावज़ूद इसके, क्या रुपये-पैसों के मामलों में भी हर कोई इसे मान्यता देगा? ज़वाब भविष्य के गर्भ में छिपा है. कारण साफ है. जो लोग नोटों को गठरी तथा बण्डलों में समेटने के आदी रहे, वे कैसे सन्तुष्ट हो सकेंगे? हालाँकि आभासी मुद्रा के चलन की सम्भावना (स्विस ‘टाइप्ड’ बैंकों के उदय के साथ) ही प्रकट होने लगी थी.

तब सञ्चार क्रान्ति की कल्पना गर्भ में थी, तथापि शिक्षा के अभाव के कारण इसे लम्बे समय तक नकारा जाता रहा. अभी भले भारत अपनी डिजिटल (आभासी) मुद्रा (क्रिप्टो करेंसी) की योजनाएँ बना रहा है लेकिन 18 अक्टूबर, 2021 की सुबह 9 बजे तक दुनिया में विभिन्न नाम से 6,950 ‘क्रिप्टो’ करेंसी चलन में आ चुकी थीं. इनमें सबसे पुरानी, चर्चित तथा लोकप्रिय ‘बिटकॉइन’ है. अब तक इसका ‘मार्केट कैप’ 24 खरब, 96 अरब, 46 करोड़, 58 लाख 08,552 डॉलर पहुँच चुका है.

मान्यताविहीन मुद्रा

निश्चित तौर पर देश-दुनिया के जानकार और सोच-समझ वालों की संख्या बढ़ी है. साथ ही लोगों में मेहनत के बज़ाय ‘शार्टकट’ तरीकों से मालदार बनने की आकांक्षा बढ़ती जा रही है. इसे ‘बिटकॉइन’ जैसी मुद्रा ने बढ़ाया है.

अभी किसी देश ने क्रिप्टो करेंसी को मान्यता नहीं दी. वेनेजुएला (20 फरवरी, 2018) को छोड़कर किसी देश की कोई अधिकृत ‘क्रिप्टो’ करेंसी भी नहीं आयी परन्तु कुछ झटकों के साथ ‘क्रिप्टो करेंसी’ के रूप में बिटकॉइन 2009 से ही चलन में है.

बीते 18 सितम्बर को देश के केन्द्रीय बैंक (रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया) ने ‘क्रिप्टो’ (या कहें ‘छद्म’) करेंसी की ख़रीद-फ़रोख्त के विरुद्ध चेतावनी दी थी. इसने लोगों को आगाह किया कि इसमें निवेश पूर्णतया ग़ैरक़ानूनी एवं बहुत ज़ोखिमपूर्ण है लेकिन तमाम बातों की तरह इसका क्या असर होता?

सदियों से जुए में भरोसा करने वाले तो ख़तरों के माहिर खिलाड़ी हैं. उन्होंने “नो रिस्क – नो गेन” (ख़तरे के बगैर हासिलात शून्य) को जीवन का उसूल बना रखा है. आरबीआई ही नहीं, केन्द्रीय वित्त मंत्रालय व भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भी लोगों को क्रिप्टो करेंसी के खिलाफ़ चेताया था. लेकिन इसके साथ सरकार (आरबीआई) की इस घोषणा ने कि, “शीघ्र ही देश अपनी आधिकारिक डिजिटल करेंसी (मुद्रा-ए-रुपया) लाने की योजना बना रहा है”; इसमें लोगों की आशाओं को रोशनी दिखा दी. तिकड़म से धनवान बनने की हसरत वालों की बाँछें खिल गयीं!

खुलेआम ख़रीद-फ़रोख्त

भारतीय संयम में कहाँ भरोसा रखने वाले! ज़ल्द अमीर बनने की चाहत परवान पर जा चढ़ी. देशभर में पिछले एक महीने के दौरान सोशल मीडिया पर ‘बिटकॉइन’ समेत अनेकानेक क्रिप्टो करेंसी में निवेश करने वाले छोटे-बड़े विज्ञापनों की बाढ़ सी आ गयी. इस बारे में पहले भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से लोगों को जागरूक तथा प्रेरित करने वाले छोटे-मोटे विज्ञापन छपते रहे हैं. पर, भारत में बड़े अख़बारों में शुमार एक अंग्रेजी दैनिक में पहली बार रविवार (17 अक्टूबर, 2021) को बाक़ायदा ‘जैकेटनुमा’ राष्ट्रव्यापी विज्ञापन प्रकाशित हुआ. इसमें लोगों से लच्छेदार शब्दों में ‘क्रिप्टो इन्वेस्टिंग’ (आभासी निवेश) का आह्वान है.

विज्ञापन एक ऐप ‘कॉइनडीसीएक्स’ की ओर से प्रकाशित हुआ है. इसकी ‘टैग लाइन’ है- “फ्यूचर यही है!” जानकार कहते हैं- “यह उफ़ान सरकार {आरबीआई} के उस ऐलान का ही नतीज़ा है कि भारत शीघ्र आधिकारिक तौर पर अपनी मुद्रा [रुपये] का डिजिटल वर्जन ‘मुद्रा-ए-रुपया’ ज़ारी करने वाला है.” ऐसे लोगों के अनुसार देश और सरकारों की प्रवृत्तियों के अनुभवी जानते हैं कि वे देर-सवेर अभी क्रिप्टो करेंसी में किया जा रहा अपना निवेश वैध करा ले जाएँगे, नहीं तो इस तरह का निवेश बेकार तो नहीं ही जाएगा. ऐसा काले धन के प्रवाह को रोकने के लिए विगत नोटबन्दी के बाद देखने में आ चुका है.

बढ़ा अवैध धन प्रवाह

कहने को भारत में प्रतिभूति और वित्त का नियामक बोर्ड (सेबी) है. इसकी स्थापना 1988 में 12 अप्रैल को हुई थी. इसे “सेबी अधिनियम 1992” के अन्तर्गत वैधानिक मान्यता 1992 में 30 जनवरी को मिली. फ़िर भी देश में वैध-अवैध रूप से चल रहे और घोषित-अघोषित संस्थागत उपस्थानों के ज़रिये जब, जहाँ, जैसा चाहे मनचाहा निवेश धड़ल्ले से किया जाता आया है. कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी संस्थाओं पर नियंत्रण की बाबत सरकारों की मंशा में सख्ती की कमी से प्रारम्भ से ही रुपये-पैसों का अवैध निर्गमन फलता-फूलता आया है.

क्या है क्रिप्टो करेंसी

आज क्रिप्टो करेंसी की भले चतुर्दिक खुलेआम चर्चा हो, किन्तु अनेक लोगों के मन में प्रश्न उठ सकता है कि यह आख़िर क्या है? क्रिप्टो करेंसी ‘आभासी (वर्चुअल) मुद्रा’ है. इसकी खरीद-बिक्री इण्टरनेट से आईडी-पासवर्ड के ज़रिये की जाती है. पर, अभी इसे दूसरी करेंसी में बदला नहीं जा सकता. और आईडी-पासवर्ड भूल गये या, किसी ने ‘हैक’ कर लिया तो पूँजी डूबने का ख़तरा अलग.

‘क्रिप्टो’ का हिन्दी में मतलब छद्म या, गुप्त समझा जा सकता है. यह (CRYPTO) लैटिन भाषा का शब्द है. करेंसी भी लैटिन शब्द ‘करेंसिया’ (CURRENTIA) से बनी है. करेंसी रुपये-पैसों के लिए इस्तेमाल होती है. इस तरह ‘क्रिप्टो करेंसी’ का मतलब ‘छिपा’ या, गुप्त धन हुआ. इसे ही अब ‘डिजिटल रुपया’ कहा जा रहा है. “कैपिटल वाया ग्लोबल रिसर्च लिमिटेड के इण्टरनेशनल एण्ड कमोडिटीज रिसर्च” के प्रमुख और क्रिप्टो करेंसी के ‘एक्सपर्ट’ क्षितिज पुरोहित के अनुसार “यह एक तरह की डिजिटल रक़म ही है. इसे छू नहीं सकते, मगर रख सकते हैं. यानी, यह मुद्रा किसी सिक्के अथवा, नोट की तरह ज़ेब में नहीं होती, जबकि पूरी तरह से ऑनलाइन हर समय उपलब्ध है.

कोविड टीके के लिए इंटरनेट पर पंजीकरण की अनिवार्यता अव्यावहारिक

हर देश की अपनी मुद्रा होती है; जैसे- भारत का रुपया, अमेरिका का डॉलर, ब्रिटेन का पौण्ड, सऊदी अरब का रियाल, इंग्लैण्ड का यूरो आदि. देशों की सरकारी करेंसी वह धन-प्रणाली है जो उस देश के द्वारा मान्य होती है और वहाँ के लोग उसका प्रयोग कर जरूरी चीजें ख़रीदते हैं. अर्थात् करेंसी वह है जिसकी सरकारी वैल्यू हो. उसे विभिन्न देश अपनी सुविधा और नियमों के अनुसार सीधे या, परोक्ष परस्पर बदलते रहते हैं. ऐसी कोई आधिकारिक मान्यता अभी बिटकॉइन या अन्य ‘क्रिप्टो करेंसी’ को नहीं है. लिहाज़ा इनका लेन-देन यानी- व्यापारिक भविष्य अनिश्चित है.

क्यों बनी क्रिप्टो करेंसी?

माना जाता है कि बिटकॉइन के रूप में ‘क्रिप्टो करेंसी’ सतोशी नाकामोतो ने शुरू की थी. (कुछ समय पहले बुडापेस्ट की राजधानी हंगरी में उनकी प्रतिमा तक लगा दी गयी.) यद्यपि इससे पहले भी कई निवेशकों या, देशों ने डिजिटल मुद्रा पर काम किया था. 1996 में अमेरिका का “मुख्य इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड” ऐसी ही मुद्रा था. हालाँकि उसे रखा नहीं जा सकता था, किन्तु उससे दूसरी चीज़ें खरीदी जा सकती थीं. 2008 में उसे रोक दिया गया. इसी प्रकार 2000 में नीदरलैण्ड ने पेट्रोल भरने के लिए कैश को ‘स्मार्ट कार्ड’ से जोड़ा था. भारत में भी अनेक तरह के ‘व्यावसायिक कार्ड’ प्रचलन में आ चुके हैं. ये पेट्रोल पम्पों, मॉलों, रिसॉर्ट्स आदि में बेधड़क चल भी रहे हैं. यों, इस तरफ़ अभी नियामकों की दृष्टि नहीं है. फ़िर भी उपयोगकर्ताओं को यह आसान लगता है. इसी आकांक्षा ने डिजिटल करेंसी की धारणा को मज़बूत किया है.

नियमन आवश्यक

सरल शब्दों में क्रिप्टो करेंसी एक ‘डिजिटल कैश’ प्रणाली है. यह कम्प्यूटर ‘एल्गोरिदम’ पर बनी है. यह मुद्रा केवल डिजिट के रूप में ऑनलाइन रहती है. अभी तक इस पर किसी देश या सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. यही इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष अथवा, ज़ोखिम है, क्योंकि कल को अगरचे यह सिस्टम ‘क्रैश’ कर जाए तो इसका कोई निवेशक धन वापसी के लिए कहीं, किसी प्राधिकारी (अथारिटी) निकाय के पास नहीं जा सकता. बहरहाल, आसान शब्दों में ‘क्रिप्टो करेंसी’ एक ऐसी डिजिटल सम्पत्ति हो गयी है जिसे किसी एक्सचेंज (जो अब बिना किसी निश्चित पता-ठिकाने के विभिन्न ऐप्स के रूप में गूगल स्टोर पर सहजता से उपलब्ध हैं) से किसी दूसरे प्रयोजन या, व्यावसायिक प्रयोग में लाया जा सकता है.

विशेषज्ञों के मुताबिक़ इसे ‘एक्सचेंज’ के माध्यम के रूप में काम करने के लिए डिज़ाइन भी किया गया है. इसमें व्यक्तिगत सिक्का स्वामित्व-रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत डेटाबेस के रूप में मौजूद बही-खाते में संग्रहीत किया जाता है. यह क्रिप्टो करेंसी के रूप में मज़बूत होकर बाद में किसी भी काम में लाया जा सकता है. अतएव, इसे सभी पहलुओं का बारीकी से अध्ययन करने के बाद सरकारी तौर पर लागू किया ही जाना चाहिए. इससे धन के अनधिकृत प्रयोग पर क़ाबू पाने में मदद मिलेगी.

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