बिहार में मतदाता सूची पर सियासी संग्राम: सुधार या साज़िश?
जानिए चुनाव आयोग के पुनरीक्षण पर सियासी घमासान
- मीडिया स्वराज के वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने इस संवेदनशील मुद्दे पर बिहार की राजनीति और प्रशासन पर गहरी पकड़ रखने वाले पत्रकार कुमार भवेश चंद्र से विस्तार से बातचीत की। इस विशेष संवाद में उन्होंने बताया कि यह चुनाव सिर्फ मतगणना का नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की विश्वसनीयता का भी परीक्षण बन गया है।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने राज्य में 22 वर्षों बाद विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Summary Revision) की प्रक्रिया शुरू की है। इस कदम को जहां एक ओर चुनाव सुधार के रूप में पेश किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस पर गंभीर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है।
नए निर्देशों के तहत, करोड़ों मतदाताओं से कुछ ही हफ्तों के भीतर उनके और उनके माता-पिता के जन्म प्रमाण-पत्र या अन्य दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया केवल सुधार नहीं, बल्कि मतदाता अधिकार छीनने की एक साज़िश है — खास तौर पर मुस्लिम समुदायको निशाना बनाने का संदेह जताया गया है।
बुधवार को कांग्रेस, राजद, और वाम दलों के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाक़ात कर इस प्रक्रिया पर गंभीर आपत्ति जताई। विपक्ष ने दावा किया कि इससे लाखों नागरिकों को मताधिकार से वंचित किया जा सकता है। उन्होंने आयोग से प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता की मांग की, साथ ही सभी मतदाताओं के अधिकार सुरक्षित रखने की अपील की।
क्या यह पुनरीक्षण वास्तव में एक लोकतांत्रिक सुधार है या फिर लोकतंत्र को कमजोर करने की सोची-समझी चाल? क्या बिहार में मतदाता सूची के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण की नींव डाली जा रही है?
मीडिया स्वराज के वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने इस संवेदनशील मुद्दे पर बिहार की राजनीति और प्रशासन पर गहरी पकड़ रखने वाले पत्रकार कुमार भवेश चंद्र से विस्तार से बातचीत की। इस विशेष संवाद में उन्होंने बताया कि यह चुनाव सिर्फ मतगणना का नहीं, बल्कि भारत के लोकतंत्र की विश्वसनीयता का भी परीक्षण बन गया है।
👉 पूरा वीडियो देखें:
[Voter list controversy in Bihar! Reform or disenfranchisement? Watch Ramdutt Tripathi in conversation with Kumar Bhawesh Chandra.]
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