भारत का संविधान कैसे बना? | संविधान सभा की पहली बैठक का ऐतिहासिक विश्लेषण
कुमार कलानंद मणि , सामाजिक कार्यकर्ता, गोवा

संविधान सभा की पहली बैठक: ऐतिहासिक संदर्भ और विश्लेषण
“भारत का संविधान कैसे बना”—मीडिया स्वराज द्वारा शुरू की गई इस नई श्रृंखला में संविधान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। कुमार कलानंद मणिद्वारा संकलित इस श्रृंखला का पहला भाग संविधान सभा की पहली बैठक (9 दिसंबर 1946) के घटनाक्रम पर केंद्रित है।
संविधान सभा का गठन: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना (1946) के तहत किया गया था। इसका उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता उपरांत एक स्वायत्त संविधान का निर्माण करना था। यह सभा 389 निर्वाचित और नामित सदस्यों से बनी थी। बाद में, देश के विभाजन के कारण यह संख्या घटकर 299 रह गई।
9 दिसंबर 1946 को, संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली के संविधान हॉल (अब संसद भवन) में आयोजित हुई।
प्रमुख घटनाएँ और तथ्य
1. डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की अस्थायी अध्यक्षता
• संविधान सभा की अस्थायी अध्यक्षता के लिए प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को नामित किया गया।
• आचार्य जे. बी. कृपलानी ने सभा की शुरुआत करते हुए डॉ. सिन्हा का विस्तृत परिचय दिया।
• डॉ. सिन्हा ने अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया से प्राप्त शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाए।
2. ब्रिटिश बलूचिस्तान से निर्वाचन विवाद
• खान अब्दुल समद खान द्वारा नवाब मोहम्मद खान जोगजाई के निर्वाचन को चुनौती दी गई।
• इस विवाद पर अंतिम निर्णय स्थायी अध्यक्ष के लिए सुरक्षित रखा गया, तब तक उनकी सदस्यता बनी रही।
3. डॉ. सिन्हा का उद्घाटन भाषण
• अस्वस्थता के कारण डॉ. सिन्हा ने अपना भाषण बी. एन. राऊ से पढ़वाया।

• उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा 1934 में स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के आधार पर संविधान सभा गठित करने की मांग को रेखांकित किया।
• अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी द्वारा मई 1934 में पटना अधिवेशन में पारित प्रस्ताव और 1936 के फिरोजपुर अधिवेशन में इसके अनुमोदन का उल्लेख किया गया।
4. प्रेरणादायक उद्धरण
अपने भाषण के अंत में, डॉ. सिन्हा ने डॉ. इक़बाल की प्रसिद्ध पंक्तियाँ उद्धृत कीं—
“यमन–ओ–मिश्र–ओ–रोम सब मिट गए जहाँ से,
बाक़ी अब तलक है नाम–ओ–निशां हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर–ए–ज़मां हमारा।”
साथ ही, उन्होंने बाइबल का यह उद्धरण भी दिया—
“जहाँ कोई दृष्टि नहीं होती, वहाँ लोग नष्ट हो जाते हैं।”
5. उपाध्यक्ष पद का चयन
• डॉ. सिन्हा ने अस्वस्थता के कारण संविधान सभा के उपाध्यक्ष का चुनाव करने का अनुरोध किया।
• उन्होंने श्री फ्रैंक एंथोनी के चयन की घोषणा की।
6. संविधान सभा के सदस्य वितरण (प्रांतवार)
प्रांत सदस्य संख्या
मद्रास 43
बॉम्बे 19
बंगाल 25
संयुक्त प्रांत 42
पंजाब 12
बिहार 30
मध्य प्रांत एवं बेरार 14
असम 7
उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWF) 2
उड़ीसा 9
सिंध 1
दिल्ली 1
अजमेर-मेरवाड़ा 1
कुर्ग 1
7. कार्यवाही का समापन और अगले सत्र की घोषणा
बैठक के अंत में, अस्थायी अध्यक्ष ने घोषणा की कि अगली बैठक 10 दिसंबर 1946 को सुबह 11 बजे होगी।
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विश्लेषण और निष्कर्ष
1. संविधान सभा की ऐतिहासिक और राजनीतिक भूमिका
संविधान सभा केवल एक कानूनी निकाय नहीं थी, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक नींव रखने वाला एक वैचारिक मंच भी थी। इस बैठक से यह स्पष्ट हुआ कि संविधान निर्माण केवल एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक और ऐतिहासिक द्वंद्वों का परिणाम था।
2. यह श्रृंखला क्यों महत्वपूर्ण है?
• संविधान निर्माण प्रक्रिया की गहराई को समझने का अवसर मिलेगा।
• संविधान सभा में हुए विचार-विमर्श और बहसों को एक क्रमबद्ध रूप में जानने का मौका मिलेगा।
• भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को समझने और सराहने में मदद मिलेगी।
3. आगे क्या देखने को मिलेगा?
आगे के भागों में—
• संविधान सभा में रखे गए प्रारंभिक प्रस्ताव,
• विभाजन का प्रभाव,
• मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निदेशक तत्वों पर चर्चा,
• डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर और अन्य सदस्यों की प्रमुख भूमिकाओं को विस्तार से प्रस्तुत किया जाएगा।
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अंतिम शब्द
मीडिया स्वराज और कुमार कलानंद मणि द्वारा प्रस्तुत यह श्रृंखला संविधान निर्माण की ऐतिहासिक यात्रा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने का एक सराहनीय प्रयास है। यह न केवल इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए बल्कि विधि, राजनीति और प्रशासन के छात्रों के लिए भी अत्यंत उपयोगी होगी।
इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाएँ ताकि हम अपने संविधान की ऐतिहासिक जड़ों को और बेहतर तरीके से समझ सकें।
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