9 अगस्त भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, भ्रम और आज के लिए सबक | भारत गढ़ो की पुकार
भारत जोड़ो, नफ़रत छोड़ो
वी. के. पंत
भारत का आधुनिक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया किसी एक दिन की घटना नहीं थी। यह एक लंबी, संघर्षशील और सहभागी यात्रा थी, जो 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से शुरू होकर 1947 की आज़ादी तक चली।
प्राचीन काल में भारत एक सांस्कृतिक इकाई तो था, लेकिन मौर्य, गुप्त, दिल्ली सल्तनत, मुगल जैसी राजशाहियों और अनेक स्वतंत्र या अर्ध-स्वतंत्र राज्यों के बीच कोई एकीकृत राजनीतिक चेतना नहीं थी। आधुनिक भारत का निर्माण विभिन्न जन आंदोलनों, विविध समुदायों की साझेदारी और साझा पीड़ा की आंच में हुआ।
1857 से 1942 तक — राष्ट्र बनने की यात्रा
इन 90 वर्षों में भारत के किसान, छात्र, महिलाएँ, दलित, आदिवासी — सभी ने किसी न किसी रूप में आंदोलनों में भाग लिया। यह प्रक्रिया participatory (भागीदारी-आधारित) भी थी और emancipatory (मुक्तिकामी) भी।
भारत का राष्ट्र-निर्माण संसद भवन में क़ानून पास करके नहीं, बल्कि आंदोलनों की तपिश, बलिदानों और साझा अनुभवों की आंच में हुआ।
भारत छोड़ो आंदोलन: निर्णायक मोड़
9 अगस्त 1942 को गांधीजी के “करो या मरो” के आह्वान ने आज़ादी की लड़ाई को निर्णायक मोड़ दिया। यह केवल राजनीतिक विद्रोह नहीं था, बल्कि सांस्कृतिक जागरण भी।
भारतीयों ने अपनी विविध परंपराओं — वेदांत, भक्ति, सूफी, बौद्ध-सामाजिक विचार — सभी को मिलाकर एक नई ‘भारतीयता’ गढ़ी। अंग्रेज़ों द्वारा थोपी गई हीनता-बोध को त्यागकर आत्मसम्मान, न्याय और समानता की चाह में जनता सड़कों पर उतर आई।
नेतृत्व जेल में था, लेकिन आंदोलन जनता के हाथ में चला और गाँव-गाँव तक फैल गया। यही वह क्षण था जब भारत ने स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में पहचाना।
आंदोलन को लेकर फैले भ्रम
1. आज़ादी केवल द्वितीय विश्व युद्ध के कारण मिली
यह धारणा ग़लत है। चर्चिल भारत की आज़ादी के विरोधी थे, जबकि एटली मानते थे कि अंग्रेज़ी सत्ता की वैधता समाप्त हो चुकी है। WWII ने परिस्थिति बनाई, लेकिन निर्णायक शक्ति जन-आंदोलन थे।
2. केवल अहिंसा पर निर्भर रहना ऐतिहासिक भूल थी
अमेरिकी और फ्रांसीसी क्रांतियाँ सत्ता परिवर्तन तक सीमित रहीं, जबकि भारत छोड़ो आंदोलन ने एक सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक चेतना पैदा की, जिसके परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण संभव हुआ।
3. अगर कांग्रेस ने ब्रिटेन का साथ दिया होता तो पाकिस्तान न बनता
यह तर्क ऐतिहासिक दृष्टि से अधूरा है। ब्रिटेन ने भारत को बिना अनुमति युद्ध में झोंका, जो राष्ट्रीय स्वाभिमान के विपरीत था। पाकिस्तान की मांग ब्रिटिश “फूट डालो और राज करो” की नीति और भू-राजनीतिक रणनीतियों का भी परिणाम थी।
आज के लिए सीख और कर्तव्य
युवाओं के लिए:
सोशल मीडिया से बाहर आकर जमीन से जुड़ना, गांधी, नेहरू, लोहिया, पटेल, मौलाना आज़ाद के विचारों से संवाद करना, और सामाजिक न्याय, समानता व आत्मनिर्भरता के मूल्यों को अपनाना।
राजनीतिक दलों के लिए:
चुनावी मशीन बनने से बचें। संविधान की मूल भावना — स्वराज, समता, सांस्कृतिक एकता — को अपने एजेंडे में शामिल करें।
सरकार के लिए:
भारत छोड़ो आंदोलन की विरासत को केवल औपचारिक आयोजनों तक सीमित न रखें, बल्कि इसे शिक्षा, मीडिया और सार्वजनिक संवाद में पुनः जीवित करें।
बुद्धिजीवियों व संगठनों के लिए:
लेखक, गांधीवादी और नेहरूवादी संगठन मिलकर राष्ट्र के मूल्यों की रक्षा के लिए संयुक्त वैचारिक पहल करें।
क्या इसे मिटाया जा सकता है?
इतिहास को दबाया जा सकता है, पर मिटाया नहीं जा सकता। भारत छोड़ो आंदोलन भारत की आत्मा से जुड़ा है। इसे कमजोर करने के प्रयास आज भी जारी हैं — लेकिन जब भी कोई नागरिक असहमति का साहस दिखाता है, वह इस आंदोलन की आत्मा को पुनः जीवित करता है।
आज की पुकार
“भारत जोड़ो, नफ़रत छोड़ो”
“सत्य पकड़ो, सत्ता नहीं”
“सिर्फ वोट नहीं, सोच बनो”
स्वतंत्रता केवल पाई नहीं जाती — हर पीढ़ी को इसे जीना और बचाना होता है।
सेकेंडरी कीवर्ड (Secondary Keywords):
• 9 अगस्त 1942
• भारत का राष्ट्र निर्माण
• गांधी का करो या मरो
• Quit India Movement in Hindi
• भारतीय स्वतंत्रता संग्राम