बीबीसी हिन्दी की सबसे चहेती रजनी कौल का निधन
बीबीसी हिन्दी की सबसे चहेती और बीबीसी श्रोताओं की दीदी, रजनी कौल का आज दिल्ली में निधन हो गया है। वे 93 वर्ष की थीं और पिछले दो सालों से फ़रीदाबाद के एक आरोग्य सदन में रहती थीं।
रजनी जी को पढ़ने और नई-नई दिलचस्प जानकारियाँ जुटाने का बड़ा शौक़ था। बीबीसी हिन्दी में उन्हें उनकी ख़ुशमिज़ाजी, मिलनसारी और सहयोग तत्परता की वजह से जाना जाता था जो उनके लेखन और इंद्रधनुष जैसे रेडियो कार्यक्रमों में भी झलकती थी। उनके जाने से लगता है मानो बीबीसी हिन्दी की मुस्कराहट चली गई है।
पेशावर के एक संभ्रान्त परिवार में जन्मी रजनी कौल अपने आप को हिंदू पठान कहती थीं। पंजाबी और कश्मीरी के अलावा वे पश्तो बोल सकती थीं और बडे़ चाव से पश्तो लोकगीत गाया करती थीं। रजनी जी ने प्रसारण की शुरुआत आकाशवाणी से की जहाँ उन्होंने पश्तो के साथ-साथ हिंदी में प्रसारणों में भाग लिया। ब्रिटन में हिन्दुस्तानी टीवी कार्यक्रमों का सूत्रपात करने वाले उर्दू और हिन्दी के जाने-माने प्रसारक स्वर्गीय महेन्द्र कौल के साथ विवाह होने के बाद वे अमरीका गईं जहाँ उन्होंने कौल साहब के साथ वॉयस ऑफ़ अमेरिका की हिन्दी सर्विस में काम किया और पुस्तकालय विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की।
वॉयस ऑफ़ अमेरिका में क़रीब आधा दशक काम करने के बाद साठ के दशक में स्वर्गीय महेन्द्र कौल को बीबीसी हिन्दी ने लन्दन बुलाया और उनके साथ रजनी जी ने भी बीबीसी हिन्दी सेवा में काम करना शुरू किया। यहाँ समाचार और सामयिक चर्चाओं के कार्यक्रमों के साथ-साथ बालजगत और इंद्रधनुष जैसे साप्ताहिक कार्यक्रमों के ज़रिए उन्होंने अपनी ख़ास पहचान बनाई जहाँ वे दुनिया भर से जुटाई दिलचस्प जानकारियों को अपने स्वाभाविक चुटीले अंदाज़ में पेश करती थीं।
उस ज़माने में इंटरनेट और गूगल जैसे साधन नहीं थे। भारत में टेलीविज़न भी अपने शैशव काल में था। इसलिए रजनी जी के कार्यक्रम श्रोताओं के लिए दिलचस्प जानकारियों की साप्ताहिक ख़ुराक का काम करते थे।
रजनी कौल का जाना रेडियो प्रसारण की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। आकाशवाणी, वॉयस ऑफ़ अमेरिका और बीबीसी के उनके साथियों और श्रोताओं को उनका हँसमुख व्यक्तित्व, रचनाशीलता और मानवीय संवेदना हमेशा याद रहेगी।
शिवकॉंत, पूर्व संपादक, बीबीसी हिन्दी रेडियो, लंदन