सरकार के स्कूलों में अमीर-गरीब को एक साथ मिले बुनियादी शिक्षा : राम दत्त त्रिपाठी
मौलाना आज़ाद मेमोरियल अकादमी ने मौलाना आज़ाद के शैक्षिक द्रिष्टिकोण और नई शैक्षिक नीति के शीर्षक पर मौलाना आज़ाद की 132वीं जयंती (राष्ट्रीय शिक्षा दिवस) के अवसर पर एक वेबिनार का आयोजन किया। बैठक की शुरुआत मौलाना ओबैद-उर-रहमान द्वारा पवित्र कुरान के पाठ से हुई। अध्यक्षता अकादमी के अध्यक्ष शारिक अलवी और संचालन अकादमी के सचिव अब्दुल कुद्दूस हाशमी ने किया।
चर्चा के विशिष्ट अतिथि पूर्व उपाध्यक्ष श्री मोहम्मद मुज़म्मिल थे और उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद की व्यापक दृष्टि का लाभ उठाते हुए, केंद्र सरकार ने शिक्षा नीति में बुनियादी शिक्षा का विस्तार किया और आयु की आवश्यकता को कम किया ताकि बच्चों का शैक्षिक विकास हो सके।
उन्होंने कहा कि नई नीति स्थानीय भाषा में शिक्षा पर ज़ोर देती है जबकि मौलाना आज़ाद उसी विचारधारा के समर्थक थे जो उन्होंने पटना में एक शैक्षिक बैठक में व्यक्त किया था कि अगर हम क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ते थे, तो आज हम चीन, जापान, कोरिया, इंडोनेशिया से बहुत आगे होते ।
रांची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जमशेद क़मर ने कहा कि मौलाना के शैक्षिक विचार धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद पर आधारित थे। वरिष्ठ पत्रकार रामदत त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षा नीति से यह स्पष्ट है कि सरकार शिक्षा का निजीकरण कर रही है जबकि सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य को अपने हाथों में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति को समान शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिसमें अमीर अधिकारी, गरीब और किसान बच्चे एक ही स्कूल में जा सकें।
प्रो शकीला खानम ने कहा कि दूरस्थ शिक्षा पर नई नीति में कोई रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद की शैक्षिक दृष्टि जिसमें उन्होंने सभी के लिए समान शिक्षा की व्यवस्था की, उससे भारत आज विकासशील देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
डॉ अब्दुल कुद्दूस हाशमी ने कहा कि सरकार को नई शिक्षा नीति पर सभी धार्मिक नेताओं, शिक्षकों और बुद्धिजीवियों के साथ संवादों की एक श्रृंखला शुरू करनी चाहिए ताकि समस्याओं और संदेहों को दूर किया जा सके। धन्यवाद अकादमी के अध्यक्ष शारिक अल्वी ने दिया।