बनारस में गंगापार नहर में रेत की कटान शुरू
बारह करोड़ रुपये पानी में ?
बनारस में गंगापार बारह करोड़ रुपये की लगभग साढ़े पांच किमी लम्बी रेत की नहर बनकर तैयार तो हो गई है , पर पहली बरसात में ही बालू की कटान से इसके औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है.
नहर का पहला सिरा रामनगर किला के पास पुल से जुड़ा है और आखिरी सिरा राजघाट पुल से पहले गायघाट के सामने गंगा में मिला दिया गया है. नहर की चौड़ाई 45 मीटर है.
मानसूनी बारिश के साथ ही रेत की नहर और गंगा के पश्चिमी किनारे पर बालू की कटान शुरू हो गई है. “रेत की नहर” के दोनों किनारे पर जमा बालू भी कट-कट कर पानी में गिर रहा है. गंगा का जलस्तर भी बढ़ रहा है. मीरघाट, ललिता घाट, जलासेन और मणिकर्णिका श्मशान के सामने बालू और मलबा डालकर जो प्लेटफार्म बनाया जा रहा है, उसके भी जल्दी ही गंगा की धारा में डूबने की आशंका प्रबल हो गई है.
विशाल दरवाज़ा भी तोड़ दिया
जलासेन घाट पर जो पत्थर का विशाल दरवाजा था, उसे अब तोड़ दिया गया है. 20 जून को जलासेन घाट की पत्थर की घाट की तरफ की दीवार का अधिकांश हिस्सा टूटा हुआ दिखा. दशाश्वमेध से ललिताघाट की तरफ जाने वाले रास्ते के ठीक बीचोबीच पुलिस ने टेंट लगाकर रास्ता रोक दिया है. उधर किसी को भी जाने नहीं दिया जाता है.
पुलिस जहां टेंट लगाई है, उसी के ऊपर पशुपति महादेव यानी नेपाली मंदिर है. इस मंदिर में घाट की तरफ से जाना संभव नहीं है. लगभग एक साल से घाट के इस रास्ते को बंद कर दिया गया है. इसी के आगे ललिता घाट पर प्रसिद्ध राजराजेश्वरी मंदिर है. वहां भी जाने का रास्ता बंद है. मणिकर्णिका घाट पर गंगा की धारा को पाटकर आधुनिक शवदाह गृह बनाने का काम चल रहा है.
गंगा की पश्चिमी धारा से लेकर जहां रेत की नहर बन रही है, उसके पास तक गंगा दशहरा के दिन कई जगह रेत में कटान देखने को मिली. दो तरीके की कटान हो रही है, पहला गंगा की धारा के पास और दूसरी नहर के किनारे..! सबसे बड़ा सवाल यह है कि गंगा का जलस्तर जब बढ़ेगा, तब नहर की दशा क्या होगी ? क्या बालू का बांध पानी की धारा के रोक लेगा या बालू बहकर नहर में जाएगा ? इसका जवाब तो मानसून के बाद ही मिलेगा.
नहर के पूर्वी छोर पर 8-10 जेसीबी रविवार को दोपहर में काम करती हुई दिखाई पड़ीं जो बालू को समतल कर रहीं थीं. लेकिन नहर के किनारे बालू धसक कर गिर भी रहा था. यह प्रक्रिया नहर के दोनों सिरे पर देखने को मिली. नहर का अगला सिरा भी गंगा से जोड़ दिया गया है.
कहते हैं कि नहर और गंगा के बीच बालू पर आईलैंड बनाया जाएगा, जिसका लुत्फ पर्यटक उठा सकते हैं.
चार दिन पहले ही अस्सीघाट पर गंगा किनारे मिट्टी धंसी है, जिससे वहां 15-20 फुट गहरा होल बन गया है. भविष्य की घटनाओं के संकेत तो मिलने लगे हैं. 17 जून को हुई बारिश में ही इसका नज़ारा गोदौलिया से दशाश्वमेध तक देखने को मिला था. देखते चलिए आगे-आगे क्या होता है. बालू की नहर भी बन गई है और चार घाटों के सामने गंगा की धारा भी पाट दी गई है. अब इसका परिणाम क्या होगा, इसका पता भी मानसून बाद चल जाएगा.
सुरेश प्रताप, वरिष्ठ पत्रकार, बनारस