गंगा में निर्माण से बनारस और गंगा का भविष्य डराने वाला है
बनारस में गंगा जल धारा अवरुद्ध, प्रदूषण स्तर घातक
कहाँ तो वादा था अविरल और निर्मल गंगा का और कहाँ अब बनारस में ही नियम विरुद्ध निर्माण से गंगा का प्रवाह रोककर जल को भयंकर प्रदूषित कर दिया गया है.
हिमालय की गोद गंगोत्री से निकलने वाली पापनाशिनी, मोक्षदायिनी गंगा हिमालय की सुरम्य वादियों की वनस्पतियों के संपर्क से औषधीय गुणों से युक्त होकर निकलती है. लेकिन टेहरी में बांध बनाकर जैसे गंगा का गला दबा दिया जाता है. हरिद्वार और नरौरा के बीच नहरों के ज़रिए उसके जल का बड़ा हिस्सा निकाल दिया जाता है.
बची खुची जलधारा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है . फिर उसके तट पर बसे नगरों से निकालने वाले मानव मल मूत्र और औद्योगिक कचरा सीवर आदि अपशिष्ट पदार्थों को अपने में समाहित करती हुई गंगा अब जब बाबा विश्वनाथ की मोक्षदायिनी नगरी वाराणसी पहुँचती हैं तो इतना प्रदूषित हो चुकी होती हैं कि उनका श्वेत एवं निर्मल जल का रंग श्वेत से हरा हो चुका है।
गंगा जल के प्रदूषण की यह समस्या इतना विकराल रूप ले चुकी है कि गत 30-35 वर्षों से इसे प्रदूषण मुक्त करने के लिए किए जा रहे समस्त नागरिक प्रयास एवं आंदोलन भी जिम्मेदार लोगों की निद्रा को भंग न कर सके। वैश्विक सहयोग से चलने वाली कई परियोजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गईं।
“मैं स्वयं नहीं आया, मुझे माँ गंगा ने बुलाया है” का नारा देकर माँ गंगा को प्रदूषण मुक्त करने का वचन देने वाले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से आज सर्वाधिक शिकायत माँ गंगा को ही है. माँ गंगा को प्रदूषण मुक्त कराना तो दूर, वर्तमान सरकार द्वारा विकास के नाम पर कराये जा रहे रहे विनाशकारी निर्माण और गंगा की धारा को रोकने के लिए बनाए जा रहे प्लेटफॉर्म के कारण यहाँ पर प्रदूषण भयावह स्तर तक बढ़ चुका है. इस प्रदूषण से अब गंगा नदी के जलीय जीव जंतुओं और बनारस नगर के निवासियों का जीवन ही खतरे में पड़ गया है।
यदि हमारे देश के नीति नियन्ता अब भी नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब बनारस के निवासियों का जीवन तो दुष्कर होगा ही, माँ गंगा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ चुका होगा।
प्रख्यात पर्यावरणविद एवं आईआईटी, वाराणसी में प्रोफेसर विश्वंभर नाथ मिश्र ने मीडिया स्वराज के लिए रामदत्त त्रिपाठी के साथ एक्सक्लूसिव वार्ता में कुछ ऐसे चौंकने वाले तथ्यों पर प्रकाश डाला जो वास्तव में दिल को दहला देने वाले हैं। प्रस्तुत हैं वार्ता के कुछ प्रमुख अंश:
श्री रामदत्त त्रिपाठी: प्रो. मिश्र जी! इधर कुछ चैनलों, मीडिया के विभिन्न माध्यमों एवं अन्य स्रोतों से यह जानकारी सामने आ रही है कि बनारस में गंगाजी का पानी हरा हो गया है। वाराणसी के बारे में ऐसा पहले कभी नहीं सुना गया। इसका क्या कारण है?
प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र : बिलकुल सही सुना है। इस समय गंगा का हरा पानी स्पष्ट दिखाई देता है। 1986 में जब गंगा परियोजना आरंभ हुई थी तब गंगा के प्रदूषण का प्रमुख कारण शहर के सीवरेज का पानी गंगा में जाना था। इस परियोजना के अंतर्गत इस दिशा में तो बहुत प्रयास किए गए लेकिन इधर कुछ नई समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। मणिकर्णिका घाट के समीप, ललिता घाट पर गंगा के चैनलों में घुस कर 30-35 फुट उठा पर एक प्लेटफॉर्म बनाया जा रहा है, जिससे पानी रुक रहा है। स्वाभाविक है कि जहां पर जल के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है तो वहाँ पर पानी की वेलोसिटी कम हो जाती है और पानी सड़ने लगता है और उसमें काई उत्पन्न हो जाती है। काई के कारण गंगा का पानी हरा दिखाई देता है। अभी हाल में ही लिए गए पानी के नमूनों के परिणाम वास्तव में सभी की आँखें खोल देने वाले हैं। अभी 15 जनवरी 2021 को असी घाट और वरुणा संगम से प्राप्त के नमूनों के परीक्षण से पता चला है वहाँ पर प्रदूषण का स्तर मानकों से कई हज़ार गुना अधिक है। इसके अलावा जल के प्रवाह को नियंत्रित कर एक नहर बनाई जा रही है जिससे गंगा की धारा तो बनारस को छोड़ देंगी, यहाँ पर केवल रेत ही दिखाई देगी। इससे गंगा का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: प्रो. मिश्र जी! कुछ वर्ष पूर्व रेता, जहां पर नहर बन रही है, मैं प्रो. यूके चौधरी जी के साथ गया था। उस समय वहाँ पर कछुआ सेंचुरी बना दी गई थी और बालू खनन पर रोक लगा दी गई थी जिससे वहाँ पर बालू के पहाड़ खड़े हो गए थे और धारा पर दबाव बढ़ गया था। इस प्रकार की अवैज्ञानिक परियोजनाओं को मंजूरी कौन देता है?
प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र : इस विषय पर तो क्या कहा जाए, जब विशेषज्ञों से परामर्श किए बिना योजनाएँ बनती हैं तो ऐसी ही योजनायेँ बनेंगी। नदी का कटान एक प्राकृतिक क्रिया है। इसकी क्रम में रेत की ड्रेसिंग का कार्य भी प्राकृतिक रूप से होता है। जब आप उसे नियंत्रित करेंगे तो धारा पर दबाव बढ़ेगा और धारा अपना मार्ग बदलेगी जो विनाशकारी होगा। जो संकेत दिख रहे हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि गंगा शीघ्र ही बनारस को छोड़ देंगी। यह मोक्षदायिनी काशी के मूल स्वरूप को ही नष्ट कर देगा।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: प्रो. मिश्र जी! गंगा के साथ तो वाराणसी के लोगों की आध्यात्मिक आस्थाएं प्राचीन काल से ही जुड़ी हुई हैं। ऐसे में आस्थावान लोग इस पर क्या सोचते हैं?
प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र : आमजन की गंगा के प्रति आस्था इतनी प्रगाढ़ है कि उनका मानना है कि गंगा माँ कभी प्रदूषित हो ही नहीं सकती। उनको न तो इतने तकनीकी पक्ष का ज्ञान है न उनको इसकी चिंता है। यदि हम लोगों के पास यह वैज्ञानिक प्रमाण न होते तो हमें भी सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करना पड़ता।
श्री रामदत्त त्रिपाठी: इस जल प्रदूषण के कारण वाराणसी के लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
प्रो. विश्वंभर नाथ मिश्र : अभी तक तो कोई बहुत अधिक घातक प्रभाव सामने नहीं आए हैं, चाहे इसे गंगा माँ की कृपा कहें या कुछ और, लेकिन भविष्य डराने वाला है।
कृपया पूरी बात चीत सुनें .
संकट मोचन फ़ाउंडेशन की प्रयोगशाला के अनुसार विभिन्न घाटों पर प्रदूषण स्तर