काशी में गंगा के अस्तित्व पर ख़तरा
NEW CONSTRUCTIONS THREAT TO GNANGA IN BANARAS
भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी – वाराणसी अथवा बनारस में पिछले एक साल से गंगा नदी में कई निर्माण चल रहे हैं . इनमें एक है श्री काशी विश्वनाथ कोरिडोर से जुड़े ललिता घाट पर गंगा नदी की जलधारा में अवरोधक पक्का प्लेटफ़ॉर्म . दूसरा उस पार गंगा की रेती में कई किलोमीटर नहर . क़ानूनन नदी क्षेत्र में ऐसा निर्माण प्रतिबंधित है. इन नियम और प्रकृति विरुद्ध निर्माण कार्यों न केवल गंगा जल गंदा होकर हरा हो गया , बल्कि भविष्य में गंगा के घाटों और नदी के अस्तित्व पर ख़तरा है . आई आई टी बी एच यू वाराणसी में प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्र कई सालों से गंगा नदी के अध्ययन एवं उसे प्रदूषण मुक्त करने के अभियान से जुड़े हैं . उनके पिता (स्वर्गीय) प्रोफ़ेसर वीर भद्र मिश्र ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए संकट मोचन फ़ाउंडेशन की स्थापना करके स्वच्छ गंगा अभियान की शुरुआत की थी, जिसमें गंगा जल के अध्ययन के लिए एक लैब भी है. अब प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्र इस कार्य का संचालन कर रहे हैं. पढ़िये बनारस से प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्र का लेख.
गंगा के निर्मलीकरण CLEANING हेतु भारत सरकार ने सं 1986 में गंगा कार्य योजना GANGA ACTION PLAN का शुभारम्भ वाराणसी से किया I इस कार्य योजना का मुख्य उद्देश्य गंगा में गिरने वाले अवजल (सीवर ) को उचित तरीके से रोक कर उपचारित TREAT करके हानि रहित HARMLESS बनाना था . उस समय वाराणसी में करीब 33 नालों द्वारा लगभग 14 करोड़ लीटर अवजल EFFLUENT का प्रवाह DISCHARGE गंगा जी में हो रहा था I प्रदेश सरकार की कार्यदायी संस्था ने उपरोक्त कार्य के संपादन हेतु एक योजना तैयार करके इसे 1993 में पूर्णतःकार्यान्वित किया लेकिन गंगा में अवजल EFFLUENT का गिरना न रूक सका I 1986 में 33 नालों द्वारा क़रीब 147 mld sewage गिरता था। इस समय क़रीब 350 मिलियन लीटर डेली सिवेज 350 mld sewage गिर रहा है।
इसका मुख्य कारण सरकार की योजना का पूर्णतः विद्युत उपयोग पर आधारित होना था I गंगा उत्तरोत्तर प्रदूषित होती रही I सन 2004 में भारत सरकार के निमंत्रण पर जापानी संस्था जाइका ने गंगा में गिरना वाले नालों को रोकने हेतु योजना बनाने का कार्य शुरू किया I तत्पश्चात गंगा जी को राष्ट्रीय नदी NATIONAL RIVER बनाया गया, राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण का गठन हुआ, नमामि गंगे योजना का भी शुभारंभ हुआ I इन सब के बावजूद गंगा में अवजल सीवर का सतत प्रवाह आज भी जारी है I वर्तमान में गंगा के तटीय जल की गुणवत्ता अत्यंत खराब है I गंगाजल जो आचमन के उपयोग में लाया जाता है , आज नहाने योग्य भी नहीं रह गया है . वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्नान के योग्य जल में BOD की मात्रा 3 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम एवं फीकल कॉलिफोर्म की संख्या 500 प्रति 100 मिलीलीटर से कम होना चाहिए वास्तविकता यह है कि किन्ही घाटों पर BOD, 60-70 मिलीग्राम प्रति लीटर एवं फीकल कॉलिफोर्म की संख्या करोङों में पाई जाती है I स्थिति चिंताजनक है I
वर्तमान में वाराणसी में श्रीकाशी विश्वनाथ परिसर के विकास का कार्य सरकार द्वारा किया जा रहा है I इसके अंतर्गत गंगा तट के ललिता घाट पर गंगा के अंदर एक लम्बे प्लेटफार्मका निर्माण किया गया है , जिसके कारण गंगा जी का सामान्य प्रवाह बाधित हो रहा है I
इसके दुष्परिणाम भी दृष्टिगत हो रहे हैं. ललिता घाट के अपस्ट्रीममें शैवाल के पनपने के कारण पानी का रंग हरा हो गया है I गंगा जी में प्रचुर मात्रा में शैवाल का पाया जाना गंगा जल एवं गंगा जल के उपयोग करने वालों के स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है I हमें भय है कि इस प्लेटफार्म की वजह से घाटों की तरफ सिल्ट का जमाव बढ़ेगा एवं गंगा जी घाटों से क्रमशः दूर होती जाएँगी I
गंगा जी के पूर्वी तट पर एक नहर का निर्माण भी किया जारहा है एवं कहा जा रहा है कि इस कार्य से गंगा जी के पश्चिमी तट पर पड़ने वाले जल दबाव में कमी आएगी एवं घाटों के नीचे हो रहे जल रिसाव में कमीआएगी. हालाँकि इसका मुख्य उद्देश्य माल वाहक जलपोतों के आवागमन को सुचारू रूप प्रदान करना है I
अजीब विडम्बना है कि काशी में गंगा जी का अर्ध चंद्राकार प्राकृतिक स्वरुप जो सदियों से बना हुआ है एवं काशी में गंगा जी की महत्ता को दर्शाता है आज उसे बचाने के नाम पर नष्ट करने का कार्य हो रहा है I ये जो भी कार्य हो रहे हैं वे प्रौद्योगिकी tehcnology के विरुद्ध हैं . इनके दुष्परिणाम अवश्य सामने आएंगे और इन कार्यों का अस्तित्व लम्बे समय तक नहीं रहेगा I
प्रोफ़ेसर विश्वंभर नाथ मिश्र से राम दत्त त्रिपाठी की बातचीत यहाँ सुनें :
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