आयुर्वेद की दृष्टि में कोरोना कोविद-19 से बचाव एवं चिकित्सा प्रंबंध की संभावना
डॉ आर.अचल
मुख्यसंपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल
आयुर्वेद की दृष्टि से कोरोना कोविद-19 के तेज प्रसार,संक्रमण व चिकित्सा का विकल्प खोजने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन व सूचनाओं का विश्लेषण की आवश्यक है।इसलिए यहाँ आधुनिक आयुर्विज्ञान के अनुसार इस महामारी का देखते है।
कोरोना आज एक ऐसी विश्वव्याप्त महामारी है जिसने दुनियाँ को बदल दिया है। वास्तव में कोरोना न कोई नयी बीमारी है न वायरस है।यह सर्दी-जुकाम उत्पन्न करने वाले वायरस समूह का नाम है।जिसकी खोज 1964ई. में ब्रिटिश वायरोलाजिस्ट डॉ.अल्मेडा ने की थी।
इस समूह में कई प्रकार के वायरस होते है।जिनका संक्रमण नाक की श्लेष्मकला(झिल्ली) से शुरु होकर गला-कंठ होते हुए फेफड़ो तक पहुँच कर गंभीर रुप धारण कर लेता है।इस रोग के शुरुआती लक्षण नाक बहने,छींके आना,हल्के ज्वर के साथ शरीर मे पीड़ा आदि होते है।इसे सामान्यतः फ्लू, एन्फ्लूएन्जा या सर्दी-जुकाम कहा जाता है।यह सर्व सुलभ सामान्य रोग है।विशेष रुप से ऋतु संधिकाल अर्थात मौसम मे बदलाव के समय होता है।एक सामान्य व्यक्ति को सामान्यतः2-3 बार हो ही जाता है।
प्रसार–संक्रमित व्यक्ति के खाँसने,छींकने,थूकने से दूसरे व्यक्ति या समूह तक तेजी से फैल जाता है।किसी संक्रमित व्यक्ति द्वारा छुयी गयी वस्तुओं जैसे कि दरवाजे की कुंडी, टेलीविजन, रिमोट, कंप्यूटर कीबोर्ड ,टेलीफोन को छूने के बाद जब आप अपनी आंख, नाक या मुंह को छूते या रगड़ते हैं तो आपकी त्वचा से फ्लू का वायरस नासा मार्ग में पहुँच जाता है।
फ्लू(इन्फ्लूएन्जा) वायरस तीन प्रकार के होते हैं।तीनो प्रकार वायरस के संक्रमण से फ्लू या सर्दी-जुकाम के ही लक्षण होते है।जिसमे ए अधिक खतरनाक होता है।इसके विपरीत बी तथा सी केवल मनुष्यो में होते है।
फ्लू वायरस– ए ( Flu Virus-A)-
इसका संक्रमण पशु-पक्षियो में भी होता है।सामान्यतःयह इन्ही से भी मनुष्यो में पहुँचता है। ए वायरस बड़े पैमाने पर मौसम के संक्रमण काल में फैलता है जो कभी-कभी महामारी का रुप धारण कर लेता है।एक अन्य प्रकार का A2 वायरस भी संक्रमित लोगो के माध्यम से फैलता है।
बी फ्लू वायरस (Flu Virus-B)
बी प्रकार का फ्लू वायरस केवल मनुष्यों में पाया जाता है। ये ए प्रकार फ्लू वायरस की तुलना में कम हानिकारक होता है।सामान्यतः यह भी बदलते मौसम के समय मे फैलता हैं।यह महामारी नही बनता है फिर भी आस-पास के लोगो में फैल जाता है।
फ्लू वायरस–सी (Flu Virus-C) इन्फ्लूएंज़ा सी वायरस भी केवल मनुष्यों में पाए जाते हैं।यह सामान्य सर्दी-जुकाम होता है।जिसका प्रसार नहीं के बराबर होता है।यह बिना किसी दवा के ही ठीक हो जाता है। यह महामारी बिल्कुल नहीं बनता है।
फ्लू (Influenza)- सर्दी/जुकाम से कुछ अलग होता है। 100 से अधिक विभिन्न वायरस सर्दी-जुकाम पैदा कर सकते हैं, लेकिन केवल ए, बी इन्फ्लूएंज़ा वायरस ही गंभीर बीमारी का कारण बनते हैं।
ए और बी इन्फ्लुएंज़ा वायरस का प्रकोप अनिश्चितता वाले मौसम में सक्रिय होते हैं,जबकि सी वायरस का प्रकोप आमतौर पर सांस सम्बंधित रोगियों मे होता रहता है।फ्लू टीकाकरण ए और बी प्रकार से बचाने में मदद कर सकता है, लेकिन सी प्रकार वायरस के लिए कोई टीकाकरण नहीं है।
कोरोनाकोविद-19
वर्तमान में वैश्विक महामारी के रुप में कोरोना कुल का एक नया वायरस सक्रिय हुआ है।जो फ्लू- ए वर्ग का वायरस है। जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नोवेल कोरोना कोविड-19 नाम दिया है। यह सर्वप्रथम दिसम्बर 2019ई. में चीन के वुहान शहर में सक्रिय होकर से कुछ ही दिनों में पूरे विश्व में आतंक का पर्याय बन चुका है।केवल 2-3 महीनो में ही विश्व के लगभग 200 देशो में फैल चुका है। अप्रैल 2020 के अंतिम सप्ताह तक 30 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित कर चुके है।2 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके है।जिसमे 75 प्रतिशत केवल पश्चिम के विकसित देशो की संख्या है।सबसे अधिक लोग संयुक्त राज्य अमेरिका में मारे गये है।कोविद-19 का तेज प्रसार को रोकने के लिए दुनियाँ के लगभग सभी देशों में कई महीने से सारी गतिविधियाँ ठप है,लोग अपने घरों कैद है।सड़के बाजार,सुनसान हो चुके है।ऐसा दुनियाँ में पहली हुआ है।इसलिए महामारियों के इतिहास में यह सबसे भयावह महामारी सिद्ध हो रही है।
विषाणु व उसका संक्रमण– वायरस एक अकोशिकीय सूक्ष्म जीव होता है।जिसकी संरचना में नाभिकीय अम्ल व प्रोटीन होता है। यह वातावरण में आदि काल से सुषुप्तावस्था में उपस्थित है।जब किसी दुर्योग या प्राकृतिक परिवर्तन से किसी जीवित कोशिका के संपर्क में आकर सक्रिय हो जाते है।
वायरस एक जीवित कोशिका के आर.एन.ए -डी.एन.ए को प्रभावित करता है। प्रभावित कोशिकायें तेजी से अपने जैसी विकृत कोशिकाओं का प्रजनन करने लगती है।जिससे वह जीव,पशु या मनुष्य बीमार हो जाता है।
संक्रमण काल में मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक कोशिकायें सक्रिय होकर वायरस के विरुद्ध कार्य करने लगती है।जिनकी सबलता की स्थिति में रोगी स्वतः बिना किसी दवा के ही स्वस्थ होने लगता है।रोगप्रतिरोधक शक्ति के कमजोर होने पर रोगी गंभीर स्थिति में पहुँच जाता है।जिससे कभी-कभी रोगी की मृत्यु भी हो जाती है।यहाँ एक विशेष उल्लेखनीय तथ्य है कि विषाणु एक निश्चित समय में स्वयं प्रोटीन के कवच में बन्द होकर सुषुप्तावस्था में चला जाता है।इस निश्चित अवधि में सबल रोगप्रतिरोधक शक्ति का रोगी स्वतः बिना किसी दवा के ही का स्वस्थ हो जाता है।रोगी के संक्रमण काल में अनुकूल वातावरण पाकर किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की कोशिका को संक्रमित करता है,इसप्रकार इसका प्रसार होता रहता है।विषाणु को नष्ट नही किया जा सकता है।परन्तु पहली बार संक्रिमत व्यक्ति में इसके विरुद्ध रोगप्रतिरोधक शक्ति (एण्टीबाडीज)उत्पन्न हो जाती है।समान्यतःउसे दुबारा संक्रमण नहीं होता है। इसकी चिकित्सा लक्षणों के अनुसार की जाती है।जिसमे कोशिश किया जाता है कि रोगी को वायरस के स्वसुषुप्ताकाल तक जीवित रखा जाय।
कोविद-19 संक्रमण के लक्षण–
कोविद-19 वायरस का संक्रमण नाक-मुँह से होता है।जो क्रमशःगले तक बढ़ते हुए फेफड़ो तक पहुँचकर गंभीर स्थिति उत्पन्न कर देता है। इसके संक्रमण में मुख्य दो लक्षण होते हैं, हल्का बुख़ार और सूखी खांसी। संक्रमण फेंफड़ो तक पहुँचने पर सांस लेने में कष्ट होने लगता है। इस वायरस के आरम्भिक संक्रमण काल में शरीर का तापमान 100.04 फारेनहाइट के लगभग होता है जिसके कारण व्यक्ति का शरीर गर्म होता है तथा ठंडी महसूस होकर कंपकंपी भी महसूस हो सकती है।सर्दी-जुकाम के लक्षण जैसे गले में खराश, सिरदर्द या डाएरिया भी हो सकता है। एक ताज़ा शोध के अनुसार स्वादहीनता व गंधहीनता का लक्षण भी हो सकता है।माना जा रहा है कि कोरोना वायरस के लक्षण दिखने में लगभग पाँच दिन का समय भी लग सकता है। कुछ लोगों में इससे पहले भी लक्षण प्रकट होते देखा जा रहा है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय भी लग सकता है।इसका प्रसार भी फ्लू वायरस की ही तरह से हो रहा है।
चिकित्सा– कोविद-19 अभी पहली बार सक्रिय हुआ है,इसलिए दुनियाँ के चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा अभी नित्य अध्ययन किया जा रहा है।परन्तु अभी तक विभिन्न सूत्रो से जो तथ्य सामने आये है उसके अनुसार कोविद-19 से संक्रमित लगभग 70 प्रतिशत व्यक्तियों में सर्दी,जुकाम,ज्वर,खाँसी जैसे मामूली लक्षण देखे जा रहे है।जो सामान्यतः आराम करने और पैरासिटामॉल जैसी सामान्य हल्की दर्दनाशक दवायें लेने से स्वस्थ हो रहे है।खाँसी अर्थात गले में संक्रमण होने पर एजीथ्रोमायसिन जैसी स्थानिक एण्टीबायोटिक दवाओ से सफलता मिल रही है। कंपकपी होने पर मलेरिया व रियूमिटाइड अर्थराइटिस मे प्रयोग की जाने वाली हाइड्राक्सिल क्लोरोक्वीन का प्रयोग प्रभावी पाया जा रहा है।
20 प्रतिशत लोगों में न्यूमोनिया जैसे गंभीर लक्षण देखे गए है। इन्हे सांस लेने में कष्ट पाया गया है।श्वास कष्ट के दौरे सामान्यतः24 घंटे मे तीन-चार देखा जा रहा है।इस स्थिति में न्यूमोनियाँ की चिकित्सा से लाभ मिल रहा है।इसके साथ डायरिया होने,ब्लडप्रेशर लो या हाई होने पर प्रचलित चिकित्सा की जा रही है। इस तरह लाक्षणिक चिकित्सा से संक्रमित रोगी स्वस्थ हो रहे है। सांस लेने में अधिक परेशानी होने पर ऑक्सीजन या वेंटिलेटर दिया जा रहा है।
कोरोना के कारण होने वाली खांसी आम खांसी नहीं होती है यह लगातार दौरे जैसी हो सकती है।यह 24 घंटे में कम से कम तीन-चार बार इस तरह के दौरे पड़ सकते हैं।कोविद की खाँसी सूखी आती है।इसमें बलगम नहीं आता है।
मात्र 10 प्रतिशत लोग इस वायरस के कारण अति गंभीर रूप से बीमार पाये जा रहे है।जो पहले से ही किसी गंभीर रोग जैसे दमा,सेप्टिक,गुर्दे,लीवर,हृदय रोग,असंतुलित डायबेटिज,एड्स,कैंसर आदि मारक रोगो से पीड़ित है।ऐसे ही रोगीयों की अधिकतम मृत्यु हो रही है।इसमे भी 60 वर्ष से अधिक उम्र वालो की संख्या अधिक है।अध्ययन में यह भी पाया गया है बच्चे व महिलाओं की संख्या बहुत कम है।बच्चो की संख्या तो नगण्य जैसी है।
प्रचलित चिकित्सा विज्ञान के अनुसार कोरोना कोविद-19 वायरस के गंभीर संक्रमण की चिकित्सा इस बात पर आधारित है कि रोगी को सांस लेने में तकनीकी सपोर्ट देकर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर ख़ुद वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए।प्रत्येक वायरस (विषाणु) जनित रोग की चिकित्सा के लिए यही कार्यकारी सिद्धांत है। इसलिए इस महामारी में रोग प्रतिरोधक क्षमता के वृद्धि पर बल दिया जा रहा है।जो संक्रमण से बचाव भी करता है।ऐसे रोग से बचाव का सटीक उपाय टीका (वैक्सिन) होता है।कोरोना कोविद-19 का वैक्सिन अभी परीक्षण के चरण में है।इसलिए वर्तमान में रोगप्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि का प्रयास ही एक मात्र उपाय है।
मारकता–कोरोना कोविद-19 वायरस के मारकता को तुलनात्मक रुप से आँकड़ों में देखा जाय तो अन्य वायरस जनित रोगों जैसे सार्स, इबोला, निपाह, वर्डफ्लू, स्पेनिश फ्लू आदि की तुलना में बेहद कम हैं. हालांकि रोग का प्रसार कार इसलिए इसे निश्चित नही कहा जा सकता है।अभी इसका संक्रमण बढ़ रहा है,मृत्यु की संख्या भी बढ़ रही है।अभी तक यानि 2020 अप्रैल के अंतिम सप्ताह तक संक्रमितो की संख्या 30.33 लाख रही है जिसमें 8.98 लाख स्वस्थ हुए है। 209001 की मृत्यु हुई है।इसके अनुसार 28 प्रतिशत लोग स्वस्थ हुए है तथा लगभग 8 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हुई है। शेष की चिकित्सा चल रही है।
आयुर्वेद की दृष्टि में महामारी व बचाव–
ऐसा नहीं है कि इस प्रवृत्ति की महामारी दुनियाँ में पहली बार आयी है।आयुर्वेद के साथ ही सभी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में महामारियों के नियंत्रण व चिकित्सा का उल्लेख है।आयुर्वेद में इसे जनपदोध्वंश कहा गया है।जिसके संक्रमण से जनपदो(एक निश्चित परिक्षेत्र) का विनाश हो जाता है।वर्तमान में आवागमन के संसाधनो के विकास व सहज उपलब्धता के कारण पूरा विश्व एक जनपद बन चुका है।इसलिए कोरोना शिघ्रता से प्रसारित होकर विश्वोध्वंश बन गया है।
आयुर्वेद की दृष्टि में कोरोना भी जनपदोध्वंसक व्याधि है।जनपदोध्वंश के नियंत्रण के लिए आचार्यो ने गृह-ग्राम धूपन व उपासना चिकित्सा का उल्लेख है।जिसके अनुसार गुगुल, जटामांशी, भोजपत्र, कदंब फल,कमल पुष्प,नीम्ब पत्र आदि सूखी औषधियो को गोघृत,मधु,शर्करा कपूर मिलाकर नित्य धूपन करना चाहिए।स्वच्छता रखने के साथ आवागमन, भीड़ से बचना चाहिए।महामारी के प्रसार काल में अपनी आस्था के अनुसार उपासना करनी चाहिए।इससे मनोबल बना रहता है।
आयुर्वेद की दृष्टि में कोरोना कोविद-19
आधुनिक वैज्ञानिक अध्ययन व सूचनाओं को आयुर्वेद की दृष्टि से देखने पर कोरोना-कोविद-19 प्राणवहस्रोतस(श्वसनतंत्र) का विकार है।प्राथमिक लक्षणों के अनुसार यह प्रतिश्याय है।जो गंभीर होकर फुफ्फुसज्वर(फेफड़ो में संक्रमण के कारण ज्वर-Pneumonia) की गंभीर रोग में बदल जाता है।
आयुर्वेद में प्रतिश्याय का कारण– किसी वाह्य प्रतिद्रव्य के संसर्ग से नासा मार्ग में होने वाले उपद्रव को प्रतिश्याय कहा गया है।इसका कारण नासागत वात(प्राणतत्व)-पित्त (पाचकतत्व)-कफ(पोषकतत्व) का विषम या कमजोर होना होता है। साम्यावस्था या सबल होने पर वाह्य प्रतिद्रव्य (विषाणु) का कोई प्रभाव नहीं होता है।परन्तु वात-कफ-पित्त के असंतुलित या दुर्बल(Disordered) होने की स्थिति में वाह्यप्रतिद्रव्य के प्रभाव से प्रकुपित हो जाते है।वात-कफ-पित्त के असंतुलन से आमदोष (Metabolic Mal Products) बढ़ जाता है।जिससे व्याधि क्षमत्व (Immunity) कमजोर हो जाती है।परिणाम स्वरुप वाह्य प्रतिद्रव्य का सहज संक्रमण हो जाता है।जिसमें सबसे पहले कफ का प्रकोप होता है।इसके शान्त न होने पर वात भी प्रकुपित हो जाता है।यदि इस स्थिति मे भी रोग नियंत्रित नहीं हो सका तो पित्त भी प्रकुपित होकर पाक उत्पन्न कर देता है।रोग की यह क्रमशःगंभीर स्थिति होती है।
दोषो के आधार पर मूलतः चार प्रकार के प्रतिश्याय होते है।कफज प्रतिश्याय(Catarrhal Rhinitis),पित्तजप्रतिश्याय(Suppurative Rhinitis), वातज प्रतिश्याय(Nervous Rhinitis),त्रिदोषज प्रतिश्याय (Severe) कहते है।इसके अतिरिक्त किन्ही दो दोषो के एक साथ प्रकुपित होने पर इसके कई अन्य प्रकार भी बनते है।जैसे कफज-वातज,कफज-पित्तज आदि।
लक्षणों के अनुसार के आधार पर कोविद-19 आयुर्वेद का श्लेष्मवातिक(कफज-वातज) प्रतिश्याय है।जो व्याधिक्षमत्व की कमजोर स्थिति या उचित चिकित्सा के अभाव में त्रिदोषज होकर गंभीर स्थिति उत्पन्न करता है। जिसकी चिकित्सा प्रतिश्याय में प्रभावी औषधियों से संभव है।
बचाव व रोगप्रतिरोधक शक्ति–तेज प्रसार के कारण यह वैश्विक महामारी बन चुका है। आधुनिक आयुर्विज्ञान के अनुसार इससे बचाव व संक्रमण होने पर चिकित्सकीय परिणाम के लिए रोगप्रतिरोध शक्ति(व्याधिक्षमत्व) का सुदृढ़ होना आवश्यक है।जबकि यह आयुर्वेद का मूलभूत सिद्धांत है।
आयुर्वेद के अनुसार शीत-ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल में मौसम व दिनचर्या के असमायोजन से चयापचय असंतुलित हो जाता है।जिससे व्याधिक्षमत्व शक्ति कमजोर हो जाती है।समान्यतः कफज प्रकृति के व्यक्ति इससे अधिक प्रभावित होते है।वातज प्रकृति के व्यक्ति बहुत कम प्रभावित होते है।पित्तज प्रकृति में नगण्य प्रभाव होता है।कोरोना संक्रमण को भी इस सूत्र के अनुसार देखा जाना चाहिए।
व्याधिक्षमत्व(Immunity)
आयुर्वेद में व्याधिक्षमत्व के दो महत्वपूर्ण घटक होते है।जिन्हे सत्वबल व ओज कहा गया है।सत्वबल का तात्पर्य मानोबल से है।ओज का तात्पर्य देह,मन,आत्मा के संयुक्त शक्ति है।व्याधिक्षमत्व को बल कहा गया है।यह तीन प्रकार का होता है।
1-सहज बल-यह जन्म जात होता है।
2-काल बल–यह मौसम व ऋतुओं पर आधारित होता है।
3-युक्तिबल–यह औषधि सेवन,आहार,पोषण,व्यायाम,योगादि से अर्जित किया जाता है।संक्रामक रोगो या महामारी के प्रसार काल में युक्तिबल का आवश्यक होता है।
व्याधिक्षमत्ववर्धकऔषधियाँ-(ImmunityBooster) सामान्यतःमहामारीकाल में भय-तनाव व विषाद का प्रभाव भी संक्रमक हो जाता है।इससे व्यधिक्षमत्व कमजोर होती है।इसलिए इस स्थिति में ऐसी औषधियों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो मानसिक व शारीरिक दोनो स्तरो पर सबलता प्रदान करे।इसके लिए आयुर्वेद में रसायन चिकित्सा का प्रावधान है।रसायन सेवन का उद्देश्य आयु,मेधा,स्मृति वृद्धि व आरोग्य लाभ तथा असमय वृद्धावस्था व व्याधि(जरा-व्याधि) से रक्षा है।इसके निम्नलिखित तीन प्रकार है।
1-काम्य रसायन–इसका प्रयोग किसी विशेष उद्देश्य जैसे मेधा,स्मृति,बल की के लिए किया जाता है।
2-आजस्रिक रसायन–यह नियमित पोषक द्रव्यो के सेवन जैसे दूध, घी,माँस रस आदि के सेवन को कहा गया है।
3-नैमित्तिक रसायन–यह रोग विशेष से बचाव के लिए सेवन किया जाता है।यह तत्काल प्रभावी होते है।महामारी काल मे इसी वर्ग के रसायनो का सेवन करने किया जाता है।
प्रयोग विधि के अनुसार रसायन औषधियाँ निम्न दो वर्गो में विभाजित है।
1-कुटीप्रवेशिक विधि रसायन–यह विधि चिकित्सक के पूर्णतः देख-रेख में ही प्रयोग की जाती है।आधुनिक शैली में कहा जाय तो वातानुकूलित चिकित्सा कक्ष में वमन,विरेचन आदि कर्म से शरीर का संसोधन करके किया जाता है।इस वर्ग की औषधियो में ब्रह्म रसायन,च्यवनप्रास रसायन, अभयामवकावलेह, आमलक रसायन,पंचार्विन्दघृत आदि हैं।
2-वातातपिक रसायन विधि–इसका प्रयोग सामान्य दैनिक जीवन मे किया जाता है।महामारी काल में इन्ही रसायनो का प्रयोग उपयुक्त होता है।वर्तमान के कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए इस वर्ग की कुछ सहज उपलब्ध रसायन औषधियों का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है।
1-अश्वगंधाचूर्ण-3 से 5 ग्राम नित्य दूध या गुनगुने जल से दिन में एक बार।
2-शतावरी चूर्ण-3 से 5 ग्राम नित्य दूध या गुनगुने जल से दिन में एक बार।
3-मधुयष्टि(मुलेठी) 3 से 5 ग्राम नित्य दूध या गुनगुने जल से दिन में एक बार।
5-अश्वगंधा,मधुयष्टि,रससिंदूर(50ग्राम,50 ग्राम1.5 ग्राम)मिलाकर 2-3तीन ग्राम की शहद या जल से दिन में एक बार।
6-गिलोय स्वरस 50 मिली या काढ़ा 20 मिली,लेना चाहिए।काढ़े में शहद, गुड़, काली मिर्च,दालचीनी,मुलेठी,मुनक्का आदि मात्रानुसार मिलाया जा सकता है।
7-शिलाजित-500 मिग्रा कैप्सूल बाजार में उपलब्ध है जिसे दिन में एक बार जल या दूध से लिया जा सकता है ।इसके साथ गुर्च या अश्वगंध या शतावरी,या वासा का कैप्सूल भी लिया जा सकता है।
8-नारदीय लक्ष्मीविलास रस-यह बाजार में आयुर्वेदिक स्टोर्स पर उपलब्ध होता है।इसे 250 मिग्रा की मात्रा में दिन में एक बार लिया जा सकता है।परन्तु रसौषधि होने के कारण वैद्य के परामर्श से ही इसका सेवन उचित है।
ये रसायन औषधियाँ शिघ्रता से व्य़ाधिक्षमत्व को बढ़ाकर कोरोना कोविद-19 से रक्षा कर सकती है।
9-नस्य योग–षडविन्दु तैल,अणुतैल,तुरवक तैल का नस्य भी लेना चाहिए।इसके लिए प्रातःकाल प्रत्येक नासा छिद्र में 4-5 बूँद तैल डाल कर 5 मिनट विश्राम अवस्था रहना चाहिए,इसके बाद नमक मिले गुनगुने पानी से गरारा करना चाहिए।
चिकित्सा–
कोरोना कोविद-19 के संक्रमण की चिकित्सा के लिए आयुर्वेद के श्लेष्मवातिक प्रतिश्याय की चिकित्सा प्रभावी सिद्ध होगी।रोग के प्रत्येक स्तर(स्टेज) की चिकित्सा के लिए आयुर्वेद में योग उपलब्ध है। त्रिभुवनकिर्तिरस,लक्ष्मीविलास रस नारदीय, मल्लसिन्दूर ,यवाखार, सूतशेखर,गोदंतीभस्म, कफकेतुरस, कफकर्तरीरस, प्रवालपंचामृत,समीरपन्नगरस,वसंतमालती रस आनन्दभैरवरस, कस्तूरी भैरवरस, राजमृगांक रस आदि प्रतिश्याय, श्वास,कास,क्षय आदि श्वसनतंत्र पर प्रभावी अनेक औषधियोग है।रसभस्म युक्त होने के कारण इनके प्रयोग से रोगी को तत्काल लाभ मिलता है। इसके अतिरिक्त दार्वीक्वाथ, दशमूलक्वाथ, वासावलेह, वासापत्रस्वरस, सितोपलादि,तालिसादि चूर्ण आदि प्रभावी वनौषधियाँ भी है जिनका स्थिति व आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जा सकता है।
इस संबंध में यह उल्लेखनीय तथ्य है कि आयुर्वेद समुदाय की पुरानी माँग को सरकार ने स्वीकार कर पहली बाद महाव्यापद की चिकित्सा का अवसर प्रदान किया।परन्तु खेद है कि उपरोक्त रसौधियों का प्रयोग संकोच के साथ किया जा रहा है।इसका कारण आधुनिक आयुर्विज्ञान की विधि से मानकीकरण का अभाव बताया जाता है।जबकि हजारो साल से लेकर आज तक इन औषधियों के प्रयोग से मनुष्य लाभान्विक हो रहा है।इसके बावजूद चूहों व खरगोश पर आंकड़ो जुटाने की जिद हास्यापद लगती है।अंततःरसौधियों के प्रयोग से कोरोना कोविद-19 की सफल एवं प्रभावी चिकित्सा प्रबंधन संभव है।
डा आर अचल
संयोजक सदस्य वर्ल्डआयुर्वेद कांग्रेस
Email-achal.wac@gmail.com