गोवा में कल्पवास के बाद उडुपी में पंचकर्म
गोवा में दो हफ़्ते कल्पवास के बाद आयुर्वेद के पंचकर्म का इलाज कराने के लिए कर्नाटक में मंदिरों के लिए मशहूर उडुपी आना हुआ. दरअसल सालों से वैद्यों से सुनता आया था कि आयुर्वेद में पंचकर्म से शरीर के विकार निकल जाते हैं और बहुत लाभ होता है, शारीरिक और मानसिक.
पंच कर्म और कायाकल्प के बारे में सबसे पहले वैद्य स्वर्गीय आचार्य श्रीनारायण शास्त्री से सुना था. उन्होंने ही मुझे चरक संहिता किताब पढ़ने को दी थी . उन्होंने सतरिख बाराबंकी के आश्रम में एक कायाकल्प कुटी भी बनायी थी. इस आश्रम में उन्होंने चार सौ से अधिक देसी विदेशी औषधीय वनस्पतियाँ पौधे लगाये थे . गवर्नर और मुख्य मंत्री भी उनके पास इलाज के लिए जाते थे .
मेरी अपनी बीमारी कमर और पैरों के दर्द के इलाज के लिए चित्रकूट के मशहूर वैद्य डा मदन गोपाल वाजपेयी बहुत दिनों से बार – बार कह रहे थे कि दस पंद्रह दिन के लिए आ जाऊँ तो पंच कर्म करके शरीर शुद्धिकरण कर दें , लेकिन इतना समय निकालना संभव ही नहीं हुआ .
आयुर्वेद में वात , पित्त और कफ त्रिदोष के असंतुलन से बीमारी होना मानते हैं. वात यानी नर्वस सिस्टम , पित्त यानी अग्नि या डाइजेस्टिव सिस्टम और कफ यानि शरीर का लुब्रिकेशन सिस्टम . आग , पानी और हवा का संतुलन .
इस साल तय किया था कि लखनऊ की सर्दी और प्रदूषण से बचने के लिए गोवा और दक्षिण भारत में रहूँगा . गोवा रहते हुए मैंने केरल में आर्य वैद्य शाला कोट्टाकल के प्रोफ़ेसर रमेश जी से अनुरोध किया पर उनका कहना था वहाँ छह महीने पहले बुकिंग हो जाती है. रमेश जी से ऑनलाइन परामर्श लिया पर तसल्ली नहीं हुई.
उडुपी में दक्षिण भारत के मशहूर युवा वैद्य डा तन्मय गोस्वामी भी बार – बार जगह न होने का जवाब दे रहे थे . मगर गोवा में रहते हुए अचानक एक दिन डा तन्मय गोस्वामी का फ़ोन आया कि एक बुकिंग कैंसिल हो गयी है. मैंने तुरंत अवसर लपक लिया और ट्रेन पकड़कर पत्नी पुष्पा के साथ पहुँच गया मैत्रेय आयुर्वेद आश्रम जो मुख्य रूप से पंचकर्म का क्लीनिक और रिसर्च सेंटर है.
डा गोस्वामी ने मेरी और पत्नी की नाड़ी देखी और दूसरे दिन से हम लोगों का इलाज शुरू हो गया. हमारी वैदिक मान्यता है कि ब्रह्मांड के ग्रह नक्षत्रों का असर शरीर पर पड़ता है यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे। वैद्य डा गोस्वामी इलाज में ज्योतिष का भी सहारा लेते हैं। इसके अलावा आयुर्वेद में शरीर के साथ आत्मा, मन, बुद्धि और अहंकार को भी स्वास्थ्य के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है और उसी तरह इलाज भी किया जाता है।
यह जगह अस्पताल लगती ही नहीं . उडुपी से क़रीब पचीस किलोमीटर दूर टेक्कैटी गॉंव में समुद्र के किनारे मैत्रेय आयुर्वेद आश्रम किसी ऋषि का आश्रम जैसा लगता है. रुकने के लिए कुल आठ कमरे हैं. ज़्यादातर विदेशी रुके थे. योगासन हाल , यज्ञ शाला , गोशाला , सात्विक भोजनालय, ट्रीटमेंट रूम आदि. बिलकुल आदर्श नैसर्गिक वातावरण.
दिनचर्या में सुबह छह बजे समुद्र के किनारे ताज़ा हवा में भ्रमण, साढ़े सात बजे से योगासन, नौ बजे नाश्ता और फिर तरह तरह के ट्रीटमेंट. दिन में कम से एक बार समुद्र में स्नान का आनंद . शाम को फिर समुद्र के किनारे सैर . आश्रम के सामने पेड़ों के बीच से सूर्योदय और पीछे समुद्र में सूरज को डूबते देखना और उसका फ़ोटो और वीडियो बनाना अलग अनुभव.
कैम्पस में नारियल, ताड़ , काजू , कटहल , बरगद आम के पेड़ , तुलसी और अन्य फूलों वनस्पतियों को हवा में लहराते झूमते देखना अलग अनुभव रहा. एक और नया अनुभव रहा सात्विक हुक्का जिसकी चिलम में हल्दी, घी तथा कुछ और द्रव्य . बताया गया कि इससे सॉंस और खाने की नली स्वस्थ होती है. योगासन और प्राणायाम के बाद कान , नाक और आँख में भी दवा डाली जाती है.
आयुर्वेद ढाई हज़ार से अधिक पुरानी वैदिक क़ालीन विद्या है , जिसका मक़सद है स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ रखना और आतुर अर्थात् बीमार का उपचार करना . आजकल भयंकर प्रदूषण, काम का स्ट्रेस , जीवन शैली में दोष , खान पान में गड़बड़ी , पूर्व जन्म के कर्म फल आदि कारणों से तरह तरह की बीमारियॉं हो रही हैं.
पर मैत्रेय आयुर्वेद आश्रम आकर लगता नहीं कि आप अस्पताल में हैं . इलाज के साथ- साथ यहॉं की आबोहवा भी स्वस्थ होने का एहसास कराती है. दक्षिण भारत के लोगों का वर्क कल्चर या कर्तव्य निष्ठा वैसे ही सर्वमान्य हैं लेकिन मैत्रेय आयुर्वेद आश्रम का सारा स्टाफ़ बहुत कर्मठ है और मुस्कराता रहता है.
डा तन्मय गोस्वामी के सहयोगी डा भारती , डा विमल जॉन , योगासन टीचर रचना और मैनेजर नरेश विशेष साधुवाद के पात्र हैं.