Heart दिल को खतरों से निकालेगा आयुर्वेद
डॉ.आर.अचल पुलस्तेय
आयुर्वेद Ayurved दिल को ख़तरों से कैसे निकलेगा? दिल heart हमारे शरीर का वह अंग है,जो जन्म से पहले धड़कना शुरु करता है,उसके बन्द होते ही जीवन समाप्त हो जाता है।हमारे जीवन का जितना ही वह ख्याल रखता है हम उतना ही उसकी उपेक्षा करते हैं।भागदौड़ भरे जीवन का सारा बोझ हृदय पर डालते रहते है।आज मानव मस्तिष्क की महात्वाकाँक्षा तले दबने के कारण दिल बीमार पड़ता जा रहा है।भोग के लोभ में हम दिल का बिल्कुल ख्याल नहीं रखते है। हृदय रोग के महामारी बनने का यही वह मुख्य कारण है।
आंकड़ों को देखें तो दुनियाँ में होनी वाली मौतो का 80% कारण हर्ट अटैक है।एक सर्वे के अनुसार हर साल हृदय रोगों की उपेक्षा के कारण विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगो की मौत होती है।अमेरिकी रिसर्च जरनल में प्रकाशित लेख के अनुसार 2015 तक भारत में 6.2 करोड़ लोगों को दिल से जुड़ी बीमारियाँ पायी गयी।जिसमें 2.3 करोड़ लोगों की उम्र 40 साल से कम थी। कोविड काल के बाद अचानक यह संख्या बढ़ गयी है।जिसका कारण कोविड-19 का संक्रमण व टीकारण को बताया जा रहा है। हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या के लिए आधुनिक संसाधन पर्याप्त नहीं दिखते है।भारत जैसे विकासशील देश में तो बिल्कुल ही नहीं है,जहाँ 70 प्रतिशत लोग कम आयवर्ग तथा गाँवों में रहते है। अधिक खर्च होने के कारण सर्व सुलभ भी नहीं है। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद की ओर देखना स्वभाविक सा है।
विशेषज्ञों के अनुसार हृदय रोग के कारण तनाव,खानपान की गलत आदतें, इलेक्ट्रानिक उपकरणो पर अधिक समय तक काम करना,धूम्रपान, मद्यपान,पर्यावरण प्रदूषण है।
दिल की बीमारियाँ कोई नयी बात नहीं है।विविध कारणों से प्राचीन काल में भी दिल की बीमारियाँ होती रही हैं। प्राचीन भारतीय आयुर्विज्ञान आयुर्वेद में हृदय रोगों की चिकित्सा व्यवस्था इस बात को प्रमाणित करती है,सुखद यह है कि उस प्राचीन चिकित्सा सूत्रों,दवाओं का सफल प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सकों,वैद्यों द्वारा आज भी किया जा रहा है,जिससे लाखो लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
आयुर्वेद के अनुसार हृदय रोग कारण सामर्थ्य से अधिक श्रम,चिंता, तनाव, भय,भावनात्मक आघात,अधिक गर्म, गरिष्ठ भोजन,मल,मूत्र में अवरोध, आमवात, मधुमेह,ज्वर आदि रोगों को बताया गया है।आधुनिक हृदयरोग विज्ञान भी इन्हीं कारणों को स्वीकार करता है।
आयुर्वेद के अनुसार पाँच प्रकार के हृदय रोग होते है।वात,कफज,पित्तज,सन्निपातज एवं कृमिज हृदय रोग।
वातज हृदय रोग में सीने में दर्द,सूई चूभने जैसी पीड़ा,कुछ फटने-फूटने जैसा महसूस होना,सूनापन,हृदयगति का बढ़ना,शोक,भय,सहन शक्ति का अभाव,ऐंठन,साँस की गति तेज होना,बेहोशी,नींद का कम आना होता है।इसका कारण कुपोषण, अतिश्रम,किसी रोग के कारण शारीरिक कमजोरी होती है।
कफज हृदय रोग में हृदय की गति में रुकावट महसूस होना,शरीर मे भारीपन,सीने पर पत्थर रखने जैसा आभास,सुस्ती,नींद की अधिकता,लार निकलना,अंग्निमांद आदि लक्षण बताये गये हैं।इसका कारण भारी,देर से पचने वाले अधिक भोजन,श्रम का अभाव होता है,इससे हृदय की मांसपेशियों में शोथ हो जाता है,इसे मायोकार्डाइटिस कहते है।
पित्तज हृदयरोग में प्यास लगना,चक्कर,मुर्छा,पसीना,खट्टी डकार,सुस्ती,उल्टी,ज्वर आदि लक्षण बताये गये हैं।इसका कारण किसी न किसी प्रकार का संक्रमण होता है।फेंफड़ो का संक्रणम या आमवातिक संक्रमण हृदय को संक्रमित कर मांसपेशियों में शोथ उत्पन्न कर देता है,इसे इण्डोकार्डाइटिस कहते है।
सन्निपातज हृदय रोग में उपरोक्त तीनो रोगों के मिले जुले लक्षण होते है।उचित चिकित्सा के अभाव में उपरोक्त दोषो के बढ़ने से सन्निपातिक हृदय रोग हो जाता है,जो अत्यंत गंभीर स्थिति होती है।
कृमिज हृदय रोग में आँखो के चारो ओर कालापन,आँखों के सामने अंधेरा छा जाना,सूजन,खुजली,अधिक लार आना,तनाव,सीने में चीरने जैसा अनुभव होना बताया गया है।पेट के संक्रमण,उदरकृमि के इसके कारण होते है।इसका कारण अशुद्ध भोजन होता है।
हृदय रोगों से बचने के लिए सबसे आवश्यक है जीवन शैली का संतुलन ।ऐसे आहार-बिहार पर ध्यान देना चाहिए, जिसके सेवन से शरीर को कोई असुविधा होती हो ।जैसे शरीर का भारीपन,गैस बनना,मानसिक तनाव आदि पर नजर रखना चाहिए।उन कारकों की पहचान करना चाहिए, जिससे मन,मस्तिष्क और शरीर को परेशानी होती हो।काम के बोझ के बीच कुछ समय स्वयं की प्रसन्नता के लिए भी निकालना चाहिए,जैसे खेलना,संगीत,स्वाध्याय,मित्रों या परिवार के साथ आनन्दमय क्षणों को जीना, मन,मस्तिष्क,हृदय ही पूरी देह तो तरो ताजा कर देता है।इसे इस तरह समझा जा सकता है कि कोई इंजन अधिक देर चलते-चलते गर्म हो जाता है,उस समय उसे कुछ देर के लिए बंद कर दिया जाता है।ऐसा ही हमारी देह और दिल के साथ भी है। तिब्बती चिकित्सा पद्धति सोवारिंग्पा में कहा गया है कि अपने स्वास्थ्य की निगरानी के लिए 24 घंटे में एक बार ठहर कर अपने सारे अंगो का ध्यान कर लेना चाहिए।मुझे लगता है,कि यह सूत्र हृदय ही नहीं शरीर के सारे रोगों के बचाव का सर्वोत्तम विधि है। यदि कोई अंग असामान्य दिखे तो उसे विश्राम देना चाहिए,यदि विश्राम से भी सामान्य न हो तो उसे औषधीय बल देना चाहिए ।
आज के प्रदूषण,भागदौड़ वाले जीवन एवं फास्ट फुड के युग में हृदय को बल देने के लिए सामान्य औषधियों को भोजन में शामिल करना चाहिए,जैसे अर्जुन की छाल, मुलहठी, बलामूल,पूष्करमूल,पुनर्नवामूल,दशमूल,कुटकी जवाखार, कमल, गुलाब, जूही के फूलों का दूध में बना पाक, अवलेह या शर्बत व अभ्रकभस्म हृदय को बल देते हैं।
इसके बाद कोई परेशान करने वाला लक्षण मिलने पर चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। आयुर्वेद में हृदय संबंधी रोगों के लिए दवाओं के अनेक योग है,जो प्रत्येक रोगी के लिए अलग-अलग हो सकते है।इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही लेना चाहिए। प्रभाकर वटी,हृदयार्वरण रस,याकूती रसायन,जहरमोहरा,संगेयशव पिष्टी,लक्ष्मी विलास रस, मुक्ता पिष्टी,अकीक भस्म, त्रिनेत्ररस,श्रृंगभस्म, प्रवालपिष्टी, पूर्णचन्दोदय रस, त्रैलोक्यचिंतामणि रस आदि अनेक दवाओं के योग है जो हृदय चिकित्सा में सफलता पूर्वक प्रयोग किये जाते है।इस प्रकार आज दिल को खतरे बाहर निकालने में आयुर्वेद सक्षम है।इसके लिए योग्य आयुर्वेद चिकित्सकों से ही परामर्श लेना चाहिए।
(*लेखक-ईस्टर्न साइंटिस्ट शोध पत्रिका के मुख्य संपादक,वर्ल्ड आयुर्वेद कांग्रेस के संयोजक सदस्य एवं लेखक और विचारक है।)
नमस्कार,
उत्तम जानकारी।
शुभकामनाएं।