कृत्रिम – अर्थव्यवस्था बनाम वास्तविक विकास
एक नई कृत्रिम अर्थव्यवस्था का जन्म कोरोना त्रासदी से उत्पन्न नई वैश्विक अर्थव्यवस्था द्वारा हुआ है , जिसमें आवश्यकता , निवेश , उत्पादन और उपभोग के स्वरूप को बदल दिया गया है । इसके पूर्व वैश्विक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के द्वारा विकासशील देशों में शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन , पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन , तकनीकी परिवर्तन और आर्थिक सुधारों पर जोर दिया गया था , उत्पादन और उपभोग के स्वरूप में परिवर्तन लाते हुए उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को बदलते हुए और उनके उपभोक्ता व्यय में परिवर्तन और वृद्धि करते हुए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था द्वारा किए जाने वाले उत्पादन का उपभोग कर ने और रोजगार के नाम पर वृहद उद्योगों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए स्किल्ड कर्मचारी तैयार किए गए थे.
अब नए तरीकों से विश्व में ऑनलाइन व्यापार के द्वारा व्यापार का अंतरराष्ट्रीय ढांचा खड़ा करते हुए विश्व के अन्य देशों में उत्पादित सामग्रियों के विक्रय के द्वारा नए व्यापारिक साम्राज्य का निर्माण किया गया है और इस वैश्विक त्रासदी से जनित कृत्रिम अर्थव्यवस्था के अंतर्गत इस पद्धति से किए जाने वाले व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है।
5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उद्देश्य…
दवा निर्माता कंपनियों और जीवन रक्षक और प्रतिरोधक दवाइयों के व्यापार में अत्यधिक वृद्धि हो रही है । एक ऐसी कृत्रिम अर्थव्यवस्था में जब भारत जैसी 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के उद्देश्य से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में पूंजी निवेश की अनुमति देते हुए उपभोक्ता और औद्योगिक वस्तुओं के निर्यात द्वारा कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे हो , रोजगार और आम आदमी की आय में वृद्धि के उद्देश्य पीछे रह गए हैं ।
इन बड़ी कंपनियों को रा मैटेरियल और इनपुट प्रदान करने वाली एस एम ई की आय में वृद्धि होने का तर्क प्रस्तुत किया जाता है तथापि टेक्नोलॉजी प्रधान होने के कारण इन एस एम के द्वारा भी अधिक रोजगार उत्पन्न नहीं किए जा रहे हैं . कम व्यक्तियों के रोजगार में संलग्न होने से बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न नहीं हो पा रहे हैं. तब अर्थव्यवस्था के विकास विस्तार और राष्ट्रीय आय में वृद्धि के बावजूद भी उस आय का वितरण व्यापक पैमाने ना हो पाने से आम जनता इनके लाभों से वंचित रहेगी ।
भारत में रोज़गार का अभाव और आम – आदमी की पीड़ा(Opens in a new browser tab)
यह तो भारत के संदर्भ में लागू होता है . लेकिन वैश्विक स्तर पर भी मांग और आवश्यकता के स्वरूप में परिवर्तन हो जाने से उपभोग की शैली भी बदल रही है । प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न देशों में आर्थिक हितों और पूंजीवादी व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर बल देना ही सरकारों की प्राथमिकता है .
अतः अर्थशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का संचालन न होकर इस पूंजीवादी व्यवस्था के निर्णयों और नीतियों से ही अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण और संचालन किया जाएगा , जिसमें वास्तविक आवश्यकताओं के स्थान पर कृत्रिम आवश्यकताओं की प्रमुखता होगी और इसके लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा टेक्नोलॉजी के आधार पर निर्मित नई उपभोक्ता सामग्री अनिवार्य रहेगी , और जैसा कि स्पष्ट है , जीवनशैली भी परिवर्तित होगी.
यही ” न्यू नॉर्मल ” है , जिसमें सब कुछ , उन अदृश्य शक्तियों के द्वारा निर्धारित और निर्मित किया जा रहा है , जिनका उद्देश्य अधिक से अधिक पूंजी अर्जित करते हुए , विश्व के आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण स्थापित करते हुए विश्व की लगभग 7.5 बिलियन जनसंख्या के जीवन को नियंत्रित करते हुए उन उद्देश्यों को प्राप्त करना है जो समय के साथ साथ प्रकट होंगे और आम आदमी का जीवन अनिश्चितताओं और पर – निर्भरता ओ में रहेगा । दूसरी ओर आर्थिक शक्ति बनने की प्रतिस्पर्धा में सामरिक शक्ति का प्रयोग और भय उत्पन्न किया जाता रहेगा ।
राजनीतिक दर्शन एवं स्वदेशी अर्थव्यवस्था…
कोई नया राजनीतिक दर्शन एवं स्वदेशी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने वाली नीतियों और आम नागरिकों की खुशहाली के विचारों और योजनाओं का अभाव होना स्वभाविक है . क्योंकि प्राथमिकताएं तो विश्व व्यापार , नवीनतम और अत्याधुनिक तकनीकी के प्रयोग द्वारा उत्पादन वृद्धि , व्यावसायिक घरानों की आय में वृद्धि इत्यादि ही होंगी।
उदाहरणार्थ , कोरोना के प्रभाव के कारण जब माल थिएटर और मल्टीप्लेक्स बंद हैं , तब मनोरंजन के क्षेत्र में दो बिलियन डालर के बाजार पर कब्जा करने के लिए अमेजॉन प्राइम और नेटफ्लिक्स जैसे ओवरटॉप की कंपनियां प्रयास कर रहे हैं और बोस्टन कंसल्टेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अगले 3 वर्षों में इन 80 कंपनियों द्वारा भारत में 5 बिलियन डालर का बाजार स्थापित किया जाएगा । इसके परिणाम स्वरूप , भारत में इस क्षेत्र से रोजगार प्राप्त करने वालों का रोजगार स्थाई रूप से समाप्त हो जाएगा ।
इस प्रकार ही , मीडिया के क्षेत्र में भारतीय समाचार पत्रों और उनसे रोजगार प्राप्त करने वालों पर भी विपरीत भाव दृष्टिगोचर हो रहे हैं क्योंकि गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों द्वारा इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाया जा रहा है एवं इस प्रकार की डिजिटल कंपनियों द्वारा भारत से प्रतिवर्ष 20 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार किया जा रहा है । लेकिन , इन कंपनियों को भारतीय कानूनों और टैक्स के दायरे से छूट प्राप्त है ।
भारतीय और विदेशी अंतरराष्ट्रीय – व्यावसायिक गठजोड़
नई वैश्विक अर्थव्यवस्था के स्वरूप में होने वाले परिवर्तन , विदेशी और भारतीय व्यापारिक की गठजोड़ और इससे उन को होने वाले लाभों को एक उदाहरण द्वारा समझाइए आ सकता है .वर्ष 2016 में 40 अरब डॉलर के निवेश से जिओ प्लेटफार्म की स्थापना की गई थी ।
तथापि , व्यापार की जियो प्लेटफार्म की अत्यधिक महत्वाकांक्षी योजना हेतु और अधिक निवेश की आवश्यकता थी । इस हेतु कोरोना त्रासदी के पश्चात अप्रैल 2020 में फेसबुक द्वारा जिओ प्लेटफार्म में 43 , 547 करोड रुपए के निवेश द्वारा 9.99 % की हिस्सेदारी का क्रय किया गया l
इस निवेश वृद्धि के परिणाम स्वरूप जिओ प्लेटफार्म के मार्केट का विस्तार होगा और टेलीग्राम सेवाओं यथा डिजिटल सर्विसेज , मोबाइल , ब्रॉडबैंड , एप्स कैपेबिलिटीज ( ए आई , बिग डाटा , आई ओ टी और निवेश ( डे न , हैथवे ) इत्यादि का विस्तार होगा । दूसरी ओर फेसबुक को भारत में जिओ के 38.80 करोड़ यूजर्श तक पहुंच प्राप्त होगी. स्पष्ट है कि , एक विदेशी और एक भारतीय कंपनी के व्यवसायिक हितों के तालमेल से उनके निवेश में वृद्धि हो कर , व्यापार और लाभ में अत्यधिक वृद्धि होगी और यह सब भारत सरकार द्वारा भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर इकोनामी बनाने की दौड़ में शामिल होने के कारण किया जा रहा है।
कॉमर्स कंपनी की गतिविधियों के द्वारा भारत में छोटे व्यवसायियों को व्यावसायिक लाभ प्राप्त होंगे और उपभोक्ताओं को डिजिटल विश्व के द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं और सेवाओं की प्राप्ति होगी ।
यह समस्त क्रियाएं , अर्थात वैश्विक आर्थिक संकट , डिजिटल कंपनियों के निवेश और व्यवसाय का विस्तार और उनसे प्राप्त लाभ आपस में जुड़े हुए हैं । इस प्रकार से , एक कृत्रिम मांग उत्पन्न कर उस से व्यापार स्थापित कर लाभ प्राप्त करना जारी रहेगा।
डा अमिताभ शुक्ल
अर्थशास्त्री डॉ. अमिताभ शुक्ल चार दशकों से शोध , अध्यापन और लेखन में रत हैं. सागर विश्वविद्यालय ( वर्तमान में डॉक्टर हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय ) से अर्थशास्त्र विषय में डॉक्टरेट कर 80 के दशक में अध्यापन और शोध प्रारंभ किया और भारत और विश्व के अनेकों देशों में अर्थशास्त्र और प्रबन्ध के संस्थानों में प्रोफेसर और निर्देशक के रूप में कार्य किया. विकास की वैकल्पिक अवधारणाओं और गांधी जी के अर्थशास्त्र पर कार्यरत हैं . वर्तमान में शोध और लेखन में रत रहकर इन विषयों पर मौलिक किताबो के लेखन पर कार्यरत हैं . ई मेल : – amitabhshuk@Gmail. com