भारतीय जीवनदर्शन में प्रकृति और मानव का सहभाव ही असली अर्थशास्त्र है : डॉ. कृष्ण स्वरूप आनंदी

अर्थशास्त्री एवं समाजकर्मी डॉ. कृष्ण स्वरूप आनंदी ने यूइंग क्रिश्चियन महाविद्यालय परिसर में गांधी प्रार्थना समाज और तरुण शांति सेना के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे संगोष्ठी में प्रकृति और मनुष्य के सहभाव और उत्पादन की विकेंद्रित प्रणाली को भारतीय परंपरा और जीवन दर्शन का मूल बताते हुए ‘जीवन के अर्थशास्त्र’ पर सारगर्भित व्याख्यान दिया।

वर्तमान में जो ‘हायर एंड फायर’ की व्यवस्था और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का बोलबाला है, वह समाज की आत्मा को पीछे छोड़ रही है।

डॉ. आनंदी ने स्वदेशी उत्पादों और सामुदायिक जीवन शैली पर बल देते हुए बताया कि भारतीय जीवन और दर्शन में प्रकृति सर्वत्र विद्यमान है।

डेनमार्क का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि इस युग में हमने कुछ सबसे मूल्यवान खोया है, तो वह है – “समुदाय की भावना”। समुदायिकता केवल मनुष्यों से नहीं बनती, बल्कि वह नदियों, पहाड़ों और जीव-जंतुओं से मिलकर एक पूर्ण पारिस्थितिकी का निर्माण करती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. उमेश प्रताप सिंह ने ‘जीवन का अर्थशास्त्र’ को ‘जीवन-दर्शन का ही अविभाज्य अंग’ बताया और मानव एवं प्रकृति के मध्य के गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला। प्रो उमेश ने कहा कि प्रकृति का अंधाधुंध शोषण रोका जाए अन्यथा मानवीय समाज को विनाश से बचाना असंभव है।


गोष्ठी का आरंभ गणित विभाग के प्राध्यापक एवं तरुण शांति सेना के निर्देशक डॉ. स्वप्निल श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने हाल ही में उत्तराखंड के धराली गाँव में आई त्रासदी का उल्लेख करते हुए टिकाऊ विकास पर गंभीर प्रश्न खड़े किए। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई और प्रकृति के दोहन की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि हमें आत्मचिंतन करना होगा – क्या हम अपने बच्चों को वह जीवन दे पाएंगे, जिसमें शुद्ध वायु और जल सहज रूप से उपलब्ध हो?


संगोष्ठी का संचालन बी ए तृतीय वर्ष की छात्रा तनुश्री द्वारा किया गया। कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के सम्माननीय प्राध्यापकगण उपस्थित रहे, जिनमें डॉ. सूरज गुणवंत (अंग्रेज़ी विभाग), डॉ. अरुणेय मिश्रा (संस्कृत विभाग), डॉ. कहकशां इरफ़ान (उर्दू विभाग) डॉ. पद्मभूषण प्रताप सिंह एवं डॉ. गजराज पटेल (सहायक आचार्य हिन्दी विभाग), डॉ. तनया कृष्णा(अर्थशास्त्र विभाग) तथा डॉ. जॉन कुमार (प्राचीन इतिहास विभाग) विशेष रूप से सम्मिलित थे।

अंत में गांधी प्रार्थना समाज के प्रभारी डॉ सुदीप तिरकी ने मौजूद वक्ताओं, अतिथियों और छात्रों को आभार व्यक्त किया।
उल्लेखनीय बात यह रही कि इस संगोष्ठी में 50 से अधिक विद्यार्थियों ने सक्रिय सहभागिता की। श्रोताओं ने पूरी एकाग्रता और जिज्ञासा से वक्ताओं की बातों को सुना, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि आज की पीढ़ी न केवल विषयों को समझना चाहती है, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व भी महसूस करती है।

यह संगोष्ठी न केवल ज्ञानवर्धक सिद्ध हुई, बल्कि इसने सभी उपस्थित जनों को अपने जीवन, समाज और प्रकृति के प्रति नई दृष्टि प्रदान की – एक ऐसी दृष्टि जो केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि संतुलित, सामूहिक और मानवीय विकास की ओर संकेत करती है।

गोष्ठी केवल शैक्षणिक संवाद नहीं रही, बल्कि इसने सामाजिक, वैचारिक और पारिस्थितिक विमर्शों की गहराइयों को भी स्पर्श किया।

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