इंद्रधनुषी छटा बिखेरती कृति “अमलतास के फूल “
राजीव कुमार ओझा
कवयित्री कनकलता तिवारी ने अपनी काव्य कृति “अमलतास के फूल” कालजयी गीतों के रचनाकार गोपाल दास नीरज को समर्पित की है। भूमिका साहित्य साधक मंच बेंगलूरु के अध्यक्ष एव़ संपादक वरिष्ठ साहित्यकार ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने लिखी है।
मुंबई की डाक्टर कनक लता तिवारी जी ने जब मुझसे मेरा पोस्टल एड्रेस मांगा और कहा कि अपनी एक पुस्तक आपको भेजना चाहती हूं तब मैंने इसे एक शिष्टाचार के रुप मे लिया था । लेकिन जब स्पीड पोस्ट से प्रेषित उनकी काव्य कृति अमलतास के फूल मिली तब साहित्य साधिका डाक्टर कनक लता तिवारी के किरदार से परिचित हुआ।हिन्दी और इंग्लिश भाषा की मर्मज्ञ, बहुमुखी प्रतिभा की धनी डाक्टर कनक लता तिवारी ने इंग्लिश साहित्य को पांच और हिन्दी साहित्य को आठ कालजयी कृतियों से समृद्ध करने का अभिनव सारस्वत प्रयास किया है ।
गद्य ,पद्य दोनो विधा की कुशल शब्द शिल्पी डाक्टर कनक लता तिवारी का प्रतीक पब्लिकेशन,साकीनाका , मुंबई से सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह “अमलतास के फूल” सुन्दर शब्द शिल्प,सहज ,सरस ,बोधगम्य भाषा में सृजित कविताओं का खूबसूरत पुष्पगुच्छ है ।
कवयित्री कनकलता तिवारी ने अपनी काव्य कृति “अमलतास के फूल” कालजयी गीतों के रचनाकार गोपाल दास नीरज को समर्पित की है। भूमिका साहित्य साधक मंच बेंगलूरु के अध्यक्ष एव़ संपादक वरिष्ठ साहित्यकार ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने लिखी है।
कवयित्री की 109 गीतों की सृजन यात्रा आराधना शीर्षक की कविता ईश वंदना से शुरू होती है। प्रारंभिक छह कविताएं कवयित्री के अध्यात्म प्रेम से पाठकों को परिचित कराती हैं।कवयित्री की 109 कदम की यह सृजन यात्रा बांसुरी नामक रचना पर विराम लेती है।
आध्यात्मिक रचना संसार के पार पाठक विविध विषयों पर केंद्रित कविताओं का रसास्वादन कर सकेंगे।
कवयित्री अपनी “प्रश्न” शीर्षक कविता में देश के सम्मुख मूँह बाए खड़े सवाल मर्यादा पुरुषोत्तम राम से करती है –
“सीताहरण रोज होता है,कोई नहीं बचाने आता
बिलख रही नारी के आंसू,कोई नहीं छिपाने आता।।
चारो ओर जल रही लंका,कितना अत्याचार करोगे
राम तुम्हारे तरकश सूने,कैसे तीर प्रहार करोगे।।
कवयित्री सियासी कदाचार को रेखांकित करते हुए राम से पूछती है –
कुर्सी की खातिर बिकते नेता ,हमको भरमाते हैं
शान देश की करते धूमिल ,नहीं कभी शर्माते हैं।।
उनकी नजर बड़ी पैनी है ,कैसे उनका शिकार करोगे
राम तुम्हारे तरकश सूने ,कैसे तीर प्रहार करोगे ।।
“दिया जलाओ आज एक अंधियारे में” शीर्षक कविता में कवयित्री का संवेदनशील मन प्रतिबिंबित होता है जो प्रगति की आंधी में बिलुप्त होते मिट्टी के दीपक के अस्तित्व पर मड़राते संकट से व्यथित है। इस कविता में कवयित्री अपने लेखन धर्म का निर्बहन करती है ,समाज को मिट्टी के दीप जलाने का प्रेरक सन्देश देती है-
माटी के दीपक वे रचते
और तुम्हारे घर में सजते
फिर भी उनकी आस खड़ी अब द्वारे में
दिया जलाओ एक आज अंधियारे में। ।
देश की आन बान शान मां भारती के सपूतों की कुर्बानी को देय सम्मान न मिलने,उनको भूल जाने का कवयित्री के संवेदनशील मन का दर्द शहीदों की याद शीर्षक कविता में छलकता है –
चिताओं पर लगा मेले उन्हें हम याद करते हैं
वतन पर कर्ज है उनका यही फ़रियाद करते हैं।।
यूं फोटो छाप कर उनकी बना दो शब्द कहते हैं
महीनों बाद उनके नाम भी ना याद करते हैं ।।
शहीदों को हमारी आन अर्पित सोचने वाले
कभी कोने में घर के ना उन्हें आबाद करते हैं ।।
एक हैं हम शीर्षक कविता के माध्यम से कवयित्री विभाजनकारी सियासत से समाज को आगाह करती हैं –
नहीं अलग हैं राम खुदा से सब में वही विराजे
ये तो हम इंसान हैं जो ईश्वर को भी बांटे ।।
अभी नहीं है बिगड़ा कुछ भी ,अब भी संभलो भाई
नहीं रखा कुछ इन झगड़ों में छोड़ो ये लड़ाई ।।
ईश्वर अल्ला के सब बन्दे एक हैं हम सब सारे
मुझमे तू है तुझमे मैं हूँ कहने वाले सारे ।।
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त के उस नजरिये को कवयित्री आज की नारी शीर्षक कविता में नकारती है जिसमे नारी का मूल्याङ्कन –
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।। कहते हुए किया गया है। आज की नारी शीर्षक कविता पाठकों को कवयित्री के वैदुष्य का दर्शन कराती है –
है आज की अहिल्या वो चुप नहीं रहेगी
अन्याय इंद्र का वो अब नहीं सहेगी ।।
गौतम नहीं रहेंगे जीवन में उसके अब तो
श्री राम की प्रतीक्षा सदियों नहीं करेगी ।।
अब वो गया ज़माना चुप चाप जुल्म सह ले
अब हर किसी बाला का प्रतिकार वह करेगी ।।
कवयित्री आजादी के बाद के भारत का दर्शन कराती है आजादी शीर्षक कविता में –
यह है आजादी !जहां धर्म के नाम पर इंसान जल जाते हैं
सड़कों के किनारे जानवरों के संग मनुष्य भी पल जाते हैं ।।
अमीर गरीब दलित सवर्ण जाने कितने विभाजन हैं
दो मुट्ठी अन्न को कौन कहे बोलने पर भी राशन है ।।
कैसे अंकुरित होते हैं काव्य भाव कवयित्री सधे अंदाज में बताती हैं –
जब हो जाते हैं आर्द्र नयन
तब बहने लगती है कविता ।।
यह तरल तुम्हारे शब्दों का
ज्यों उमड़ी हो सुर सरिता ।।
प्रतीक के माध्यम से समसामयिक संदर्भो को कवयित्री ने जिस अंदाज में अपनी कविता मौन की मुखरता में रेखांकित किया है वह पाठकों पर अपनी अमिट छाप छोड़ेगी,तटस्थ भाव से जीने वालों पर तीखा प्रहार प्रहार करेगी –
मुझे देख मैं भौंक भौंक कर
व्यवस्था के प्रति अपना विरोध प्रकट करता हूँ
तेरी तरह नहीं हैं दो मुखौटे मेरे
जो सोंचता हूँ वही प्रतिक्रया देता हूँ
तू तो मूँह में राम बगल में छूरी की
कहावत को चरितार्थ करता है।।
पर्यावरण के गहराते संकट को अभिव्यक्त करने के लिए कवयित्री ने समुद्र को चुना है –
प्रदूषित समुद्र तट के जहरीले वातावरण में
मछली तैरना उछलना भूल गई
पड़ी है तट पर बेजान मारी हुई मछली।।
एक अन्य कविता में पर्यावरण प्रदूषण से बिलुप्त होती चिड़िया की चिंता समाज से कवयित्री ने साझा की है –
कहाँ गई वह प्यारी चिड़िया
घर आँगन की थी शोभा जो
खिड़की पर मुस्काती चिड़िया
आँगन का कोना सूना है
जहां बनाती थी घर चिड़िया
आओ मिलकर ले आएं हम
फिर से अपनी प्यारी चिड़िया
घरेलू हिंसा के जमीनी सच को कवयित्री ने आजादी शीर्षक कविता में मुखरित किया है –
घरेलू हिंसा का शिकार वो औरतें ही नहीं हैं
जो अदालत में जाती हैं
अपने अधिकार के लिए
वो औरतें भी हैं जो मूँह पर झूठी
हंसी का मेक अप ओढ़े हुए
रहती हैं घरों में
जाती हैं सखियों के साथ
औरतों की आजादी का ढोल पीटने
और खुद की आजादी पड़ी रहती है
दबी कुचली मर्द के जूतों के नीचे
अमलतास के फूल का शब्द चित्र कवयित्री के श्रृंगार रस से अनुराग की बानगी है –
आमंत्रण देता ये यौवन झर झर रस छलकाए
अमलतास के धवल पुष्प में साजन मुख मुस्काए
अमलतास के फूल नामक यह काव्य संग्रह विविध विषयों को समाहित करती रचनाओं की वजह से पाठक को खुद से बांधे रखने में सक्षम है।
शब्द शिल्प ,भाव ,बोधगम्यता ,ग्राह्यता की कसौटी पर यह कृति पाठक को निराश नहीं करेगी। इस बेहतरीन काव्य कृति ने मेरा परिचय डाक्टर कनक लता तिवारी के जिस वैदुष्य से कराया उसके आलोक में मैं आश्वस्त हूँ यह कृति पाठकों की अदालत में ही नहीं साहित्य जगत में भी सराही जाएगी।