इलाहाबाद विश्वविद्यालय : नाम परिवर्तन का द्वंद्व
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डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज , मुंबई से
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस कोरोना काल के संकट में भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम परिवर्तन के प्रति बहुत जागरूक प्रतीत होता है। विश्वविद्यालय प्रशासन को निर्देशित किया गया की इस सम्बन्ध में कार्य परिषद् के सदस्यों की राय दो दिनों में प्रेषित की जाए। तत्काल कार्यवाही की गई ,कार्यपरिषद के बारह सदस्यों ने विश्वविद्यालय के वर्तमान नाम को ही बरक़रार रखने के पक्ष में अपना मत व्यक्त किया ,तीन सदस्यों ने कोई भी राय नहीं दी। इसका अर्थ हुआ कि विश्वविद्यालय की सर्वोच्च समिति लगभग एक मत है की विश्वविद्यालय का नाम इलाहाबाद विश्वविद्यालय ही होना चाहिए।
कार्यपरिषद की सहमति के बाद भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय यदि संसद के माध्यम से इलाहबाद विश्वविद्यालय अधिनियम २००५ में कोई परिवर्तन करके विश्वविद्यालय के नाम में परिवर्तन करना चाहेगी तो व्यापक विरोध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। देश के प्रमुख तीन पुराने विश्वविद्यालय मद्रास ,कलकत्ता ,बम्बई के नाम में परिवर्तन नहीं किया गया तो इस चौथे पुराने प्रमुख विश्वविद्यालय के नाम परिवर्तन का द्वंद्व क्यों ?
इस परिवर्तन से किस गुलामी की बू दूर कर दी जायेगी और कौन सी आजादी के गंध से विश्वविद्यालय का वातावरण सुगन्धित जाएगा ?
1887 में देश के चौथे विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित इलाहाबाद विश्विद्यालय पूरब का आक्सफोर्ड कहलाता रहा। विश्वविद्यालय के हर संकाय में कोई न कोई अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिक्षक ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित करते रहे हैं ,जैसे डा गंगानाथ झा ,अमरनाथ झा ,डा साहा और कृष्णन जैसे भौतिकी के प्रोफ़ेसर रसायन के डा नीलरत्न धर ,रानाडे ,डा ईश्वरी प्रसाद ,डा ताराचंद ,के के भट्टाचार्य ,धीरेन्द्र वर्मा ,रामकुमार वर्मा। डा सत्यप्रकाश डा कृष्ण बहादुर ,डा आर पी अग्रवाल प्रो राजेंद्र सिंह ,डा टी पति ,प्ऱो जे के मेहता ,डा संगमलाल पांडेय फिराक गोरखपुरी ,डा बाबू राम सक्सेना डा गोरख प्रसाद ,डा शिव गोपाल मिश्र ,प्रो ऐ डी पंत ,प्रो बनवारी लाल शर्मा जैसे अन्यान्य शिक्षकों की एक अंतहीन सूची है जिसकी अनुभूति विश्वविद्यालय परिसर में आज भी होती रहती है। केवल एक विभाग की बात करूँ तो पांचवे छठे ,सातवें दशक में भारत के अधिकांश विश्वविद्यालयों के रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष डा नीलरत्न धर के विद्यार्थी ही थे।
आजादी के पूर्व इलाहाबाद विश्वविद्यालय वह अग्रणी विश्वविद्यालय रहा है जिसने स्वतंत्रता संग्राम के लिए देश के युवजनो में बौध्दिक चेतना जागृत किया। महामना मदनमोहन मालवीय ,मोतीलाल नेहरू ,पुरषोत्तमदास टंडन ,गोविंदबल्लभ पंत ,हेमवतीनंदन बहुगुणा , नारायणदत्त तिवारी जैसे लोग इसी विश्वविद्यालय के छात्र रहे। दो प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और चंद्रशेखर जी इसी विश्वविद्यालय की उपज हैं। इसने देश को पांच सुप्रीम कोर्ट को प्रधान न्यायाधीश दिया माननीय न्यायमूर्ति हिदायतुल्लाह ,आर यस पाठक ,के यन सिंह, जे यस वर्मा ,वी यन खरे। इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे भगवती चरण वर्मा ,फिराक साहेब ,महादेवी वर्मा ,विद्या निवास मिश्र पद्मविभूषण से विभूषित किये गए। सी यस आई आर के चेयरमैन डा यस के जोशी और यू जी सी के चैयरमैन रहे प्रो डी यस कोठारी यहीं के के छात्र रहे. डा मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन मंत्री रहे जो छात्र और शिक्षक दोनों रहे, जिन्होंने इसको केंद्रीय विश्वविद्यालय बनवाया।
आजादी के बाद इस यूनिवर्सिटी के छात्र देश के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा के बल पर शीर्षस्थ स्थान पाते रहे ,चाहे प्रशासन का क्षेत्र हो या शिक्षा का या राजनीति ,कला संस्कृति साहित्य सभी क्षेत्रों में यहाँ के छात्रों ने निरंतर प्रतिष्ठा अर्जित की है।
ग्रामीण आँचल के निम्न मध्यम वर्ग ,मध्यम वर्ग के छात्र जो स्वप्न लेकर इस विश्वविद्यालय में दाखिल हुए शिक्षा के इस मंदिर में वे स्वप्न पूरे किये, जिनके कोई स्वप्न नहीं होते थे उनमें यह विश्वविद्यालय स्वप्न जागृत कर देता था। संघर्ष की चेतना जागृत कर देता था ,स्वतः स्फूर्ति जागृत हो जाती थी कुछ कर गुजरने की कुछ बन जाने की कुछ बना देने की।
विश्वविद्यालय का ऐसा वातावरण कोई मार्क्सवादी साहित्य बांटता रहता ,कोई जन के साथ समाजवादी साहित्य थमा देता ,कोई मुफ्त में पांञ्चजन्य पकड़ा कर शाखा में चलने को प्रेरित करता ,कोई गांधी साहित्य पढ़ाता। कविता कहानी के साथ राजनीति के भी ट्रेनर मिल जाते थे ,प्रशासनिक सेवा में सफल होने के गुर भी सिखाने वाले थे। जो बनना हो बन जाइये।ऐसा था इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नाम में। अभी उधर से गुजरने पर म्योर कालेज के टावर ,सीनेट हाल के भवन के समक्ष स्वतः ही मस्तक झुक जाता है ,ऐसा प्रतीत होता है की गुरु जनों की सूक्ष्म सत्ता विचरण कर रही है. ऊर्जा सम्प्रेषित कर रही है।
बहुत ही दुःख और क्लेश का तत्व है की जब से यह विश्वविद्यालय केंद्रीय हुआ इसकी प्रतिष्ठा में ह्रास हुआ। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इसपर ध्यान देने की आवश्यकता है कि कैसे इस विश्वविद्यालय की वह शैक्षिक और बौद्धिक प्रतिष्ठा और मर्यादा स्थापित हो सके जिसकी ऊंचाई हिमालय की और गहराई समुद्र की थी। नाम परिवर्तन बेमानी प्रश्न है
भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है की छात्र जिस गुरुकुल में अध्ययन करते थे, उसके कुलपति नाम ही उस छात्र का गोत्र होता था। हे सगोत्रीयों इस विश्वविद्यालय के मोटो ‘;जितनी शाखा उतने वृक्ष ;की रक्षा करने का उत्तरदायित्व सम्हालिए।
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Ji sir bikul sahi kaha rhe hai aap or hum sub ko mil kar AU ki garima ko barkarar rkhana hai, or mai se puri tarah se sahmat hun……..
क्या कोई संगठित प्रयास हो रहा है.
But why Allahabad University fades away from education world..Sun sets for Allahabad?