अकाली दल ने एनडीए से 24 वर्ष पुराना नाता तोड़ा
कृषि विधेयकों के मसले पर अकाली दल शिरोमणि ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ दिया है।
अकाली दल का एनडीए से 24 वर्ष पुराना नाता था। वह भाजपा की विश्वस्त साथी मानी जाती रही है।
केंद्र की एनडीए सरकार में पार्टी की प्रतिनिधि के रूप में मंत्री हरसिमरत कौर ने 17 सितंबर को ही इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद अब पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार को कहा कि पार्टी की कोर कमेटी ने सर्वसम्मति तौर पर एनडीए से अलग होने का फैसला किया है।
बादल ने कहा कि ‘जब ये अध्यादेश कैबिनेट में लाये गये थे, तब भी हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री के रूप में कई बार किसानों की भावनाओं के अनुसार विधेयकों को बदलने के लिए कहा था, लेकिन हमारी बात नहीं मानी गयी।’
बादल ने कहा कि उनकी पार्टी 1 अक्टूबर को पंजाब में किसानों का एक विशाल मार्च करेगी और राष्ट्रपति के नाम राज्यपाल को ज्ञापन देगी।
अकाली दल ने 1996 में भाजपा से समझौता किया था।
1997 में पहली बार दोनों पार्टियाँ मिलकर चुनाव लड़ी थीं।
भाजपा के साथ रहते हुए अकाली दल पहली बार लगातार दो चुनाव जीतने वाली पार्टी बनी।
2017 के विधानसभा चुनाव में यह आकलन था कि अकाली दल बुरी तरह से परास्त होगी।
लेकिन भाजपा ने उसका साथ नहीं छोड़ा। अब स्थिति अलग है।
शुरू में किसानों के रोष का नहीं हुआ था अंदाज
अकाली दल इन विधेयकों पर किसानों की प्रतिक्रिया का अंदाज शुरू में नहीं लगा पायी।
बादल ने 27 अगस्त को कहा था कि एमएसपी पर इन विधेयकों का कोई असर नहीं पड़ेगा।
तब बादल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की चिट्ठी दिखायी थी।
लेकिन बाद में जब पंजाब के किसानों ने जबरदस्त विरोध शुरू किया तो पार्टी के कान खड़े हुए।
दरअसल अकाली दल का वोट बैंक सिख रहा है। इसमें जाट सिख ही किसानी करते हैं।
पिछले चुनाव में जाट सिख वोट बैंक अकाली दल से खिसक गया था।
मालवा के किसानों ने चेतावनी भी दी थी कि इन विधेयकों का समर्थन करने वाले सांसदों को घुसने नहीं दिया जायेगा।
इसी के बाद पार्टी अपना वोटबैंक और साख बचाने के लिए पहले अपनी मंत्री हरसिमरत कौर से इस्तीफा दिलाया।
हालांकि तब भी वे एनडीए से नाता तोड़ने के बारे में नहीं सोच रहे थे।
लेकिन किसान आंदोलन को बढ़ते देख अकाली दल ने अब एनडीए से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया।