अजीत जोगी : लड़ते तो वे हमेशा रहे पर यह लड़ाई वे हार गए
अम्बरीश कुमार
अजीत जोगी अचानक ऐसे चले जाएंगे यह उम्मीद तो नहीं थी .अपना नाता दो दशक से पुराना रहा .इंडियन एक्सप्रेस ने सन 2000 में छतीसगढ़ राज्य बनने के बाद मुझे ब्यूरो के वरिष्ठ संवाददाता की जिम्मेदारी देकर भेजा था .नया राज्य आकार ले रहा था .राजनैतिक गतिविधियां भी तेज थी .विद्याचरण शुक्ल जैसे कांग्रेसी दिग्गज रायपुर में ही रहते थे .उनका दबदबा था और वे मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे .कांग्रेस के सामने भी बड़ा संकट था इस नए राज्य का नेतृत्व तय करने का .इस बीच इंडियन एक्सप्रेस में मैंने रायपुर से एक खबर दी कि मुख्यमंत्री अजीत जोगी बन सकते हैं .खबर में छतीसगढ़ के सामाजिक समीकरण और अजीत जोगी के सतनामी समाज के संबंध का भी हवाला था .यह खबर उस समय आई जब छतीसगढ़ में मीडिया विद्याचरण शुक्ल को भावी मुख्यमंत्री मान चुका था .अजीत जोगी दिल्ली में कांग्रेस के प्रवक्ता थे वे रायगढ़ से सांसद भी थे .पर मुख्यमंत्री पद की दौड़ में उन्हें मीडिया बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा था .
अपना संवाद उनसे पहले से था .इस खबर को लेकर जब उनसे बात की तो उन्होंने कोई टिपण्णी करने से मना कर दिया .बोले यह कांग्रेस आलाकमान तय करेगा कौन मुख्यमंत्री बनता है .फिर उन्होंने मेरा हाल लिया और बोले ,रायपुर में कोई दिक्कत तो नहीं है .जोगी तब मीडिया में लोकप्रिय भी थे अपनी हाजिर जवाबी को लेकर .खैर छतीसगढ़ में मुख्यमंत्री बनने का रास्ता इतना आसान भी नहीं था .पर वे किस्मत के भी धनी रहे और प्रतिभा के भी .वर्ना अविभाजित मध्य प्रदेश के एक बेहद पिछड़े हुए इलाके जोगी डोंगरी से निकल कर इंजीनियर बनना ही आसान नहीं होता .वे इंजीनियर बने फिर आईपीएस की परीक्षा पास की .पर यही नहीं रुके और आईएएस भी क्वालीफाई कर लिया .जिस बच्चे का बचपन का आदर्श जंगल किनारे रहने वाला एक आदिवासी भैरा बैगा हो वह कलेक्टर बन जाए तो आदिवासी सतनामी समाज के लिए यह गर्व की बात तो थी ही .पर राजनीति में जोगी के आने का किस्सा दिलचस्प है .
वर्ष 1978 से 81 तक अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे .केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी .राजीव गांधी तब राजनीति में नहीं आए थे .वे इंडियन एयरलाइंस में पायलट थे और दिल्ली से भोपाल रायपुर की एवरो जहाज की फ्लाइट के पायलट होते थे .तब हवाई अड्डा भी बहुत सामान्य किस्म का था .पर केंद्रीय मंत्री खासकर पुरषोतम कौशिक अक्सर आते जिनके पास उड्डयन मंत्रालय था तो दूसरे बृजलाल वर्मा थे .प्रोटोकोल के चलते अजीत जोगी हवाई अड्डे पर रहते और जहाज के कप्तान राजीव गांधी से भी मुलाक़ात होने लगी .वीआइपी लाउंज में चाय काफी होने लगा .पर यह लाउंज बहुत ही जीर्णशीर्ण था .कलेक्टर होने के नाते अजीत जोगी ने इसका कुछ कायाकल्प करा दिया .नए सोफे के साथ एसी लगवा दिया .अगली बार राजीव गांधी आए तो यह बदलाव देखा और जोगी को धन्यवाद भी कहा . पृष्ठभूमि यही थी .
बाद में इंदौर में वे कलेक्टर से जब कमिश्नर बने और फिर तबादला हुआ तो विदाई समारोह के बीच ही उन्हें दिल्ली से संदेश मिला .प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क करने को कहा गया .राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे .बाद में उन्होंने फोन लगाया तो राजीव गांधी के सचिव विंसेंट जार्ज से उनकी बात हुई .जार्ज ने कहा कि राजीव गांधी चाहते हैं कि वे आईएएस से इस्तीफा देकर उसे मुख्य सचिव के जरिए फ़ौरन दिल्ली भेज दूं .उनकी मदद के लिए रात में ही विशेष वायुयान से दिग्विजय सिंह इंदौर आ रहे है .फिर वे अजीत जोगी को लेकर दिल्ली जाएंगे .दूसरे दिन उन्हें राज्यसभा का नामांकन भरना है कांग्रेस की तरफ से .वह अंतिम दिन भी था इसलिए यह जद्दोजहद करनी पड़ी .अजीत जोगी के समझ में नहीं आ रहा था क्या करें .समय भी कम था .अंततः उन्होंने घर परिवार से भी राय ली और रात को विशेष विमान से जो दिल्ली गए तो फिर एक नेता में बदल चुके थे .राजनीति में आने की यह कहानी थी .पर यहां तक पहुंचने में उन्हें बहुत परिश्रम भी करना पड़ा .पेंड्रा रोड के एक अनाम से आदिवासी और पिछड़े गांव जोगी डोंगरी में 29 अप्रैल 1946 को जन्म लेने वाले अजीत जोगी गांव से निकले तो मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे .
पर उन्हें बहुत कुछ समय से पहले मिला भी .छतीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं था खासकर जब सामने विद्या चरण शुक्ल जैसा दिग्गज खड़ा हो .पर सोनिया गांधी ने आदिवासी राज्य के लिए अजीत जोगी को ही पसंद किया था .अजीत जोगी ने शुरूआती दौर में काम भी भी काफी किया .बालको के सवाल पर तो वे मुख्यमंत्री होते हुए केंद्र से भिड गए थे .आदिवासी समाज के लिए वे एक नए राज्य को कैसे ढाला जाए इसका सपना भी देख रहे थे .वे दिल्ली से आए जहां मीडिया से उनके बहुत अच्छे रिश्ते भी थे .रायपुर में भी वे लैंडलाइन पर पत्रकारों से आराम से बात करते .घर बुलाते और चर्चा करते .पर दुर्भाग्य से नौकरशाही ने उन्हें मीडिया को लेकर गुमराह कर दिया .राजकाज की जो शुरुआत बहुत ही लोकतांत्रिक ढंग से हुई थी वह साल भर बाद बदल गई .अफसरों की चली तो बहुत से फैसलों पर सवाल खड़ा होने लगा .आंदोलन शुरू होने लगा .राजनीति भी गर्माने लगी .मीडिया खासकर राष्ट्रीय अखबारों से विवाद शुरू हुआ .विपक्ष के जुलूस का नेतृत्त्व कर रहे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार से पर बर्बर ढंग से लाठी चार्ज हुआ .उनके पैर में दर्जन भर से ज्यादा जगह हड्डी टूट गई . अजीत जोगी का यह नया अवतार था .वे आंदोलन को दबाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करने लगे और बहुत ज्यादा अलोकप्रिय भी हो गए .इस बीच विद्या चरण शुक्ल ने छोटे छोटे दलों को लेकर आंदोलन तेज कर दिया .विधान सभा चुनाव से पहले माहौल बहुत तनावपूर्ण हो चुका था .इसी बीच जनसत्ता के दफ्तर पर ख़बरों को लेकर हमला हुआ तो राज्य भर में पत्रकारों ने भी विरोध प्रदर्शन किया .वरिष्ठ पत्रकार राजनारायण मिश्र ने इसका नेतृत्त्व किया था .ऐसे माहौल में अजीत जोगी के नेतृत्त्व में कांग्रेस का चुनाव जीतना आसान नहीं था .पर कांग्रेस आलाकमान ने अजीत जोगी का साथ दिया .जोगी चुनाव हार गए .कांग्रेस के हाथ से भाजपा ने एक आदिवासी राज्य छीन लिए .अब पार्टी में भी गुटबाजी तेज हो चुकी थी .धीरे धीरे जोगी जो तेजी से उठे थे वे हाशिए पर जाने लगे .इस बीच एक भीषण दुर्घटना में वे बच तो गए पर व्हील चेयर के सहारे हो गए .पर लगातार असफलताओं ने उन्हें तोड़ भी दिया था .वे भी ठीक उसी तरह उभरे थे जैसे लालू यादव बिहार में उभरे पिछड़ों की अस्मिता का सवाल उठाते हुए .अजीत जोगी आदिवासी सतनामी समाज का सवाल लगातार उठाते रहे .पर कई राजनीति की सड़क इतनी सीधी होती भी कहां है .वे पार्टी में अपना वर्चस्व कायम नहीं रख पाए .शायद बाद में उनके बदले हुए व्यवहार की वजह से यह हुआ .पिछले चुनाव के बाद से वे और सिमट गए .राजनीति में उनकी जगह छोटी होती गई .
कुछ दिन पहले एक जरा सी असावधानी के चलये नाश्ता करते समय सांस की नाली में जंगल जलेबी का बीज फंसना उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही साबित हुआ . डाक्टरों ने बहुत कोशिश की पर वे बचा नहीं पाए .लड़ते तो वे हमेशा रहे पर यह लड़ाई वे हार गए .वे हमेशा याद आएंगे .