खेती उत्पादक श्रम के लिए उत्तम साधन है: सुश्री नलिनी नावरेकर
विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति
खेती की खोज ने मनुष्य के लिए अहिंसा का नवीन द्वार खोला।
खेती के कारण मनुष्य ने मांसाहार त्याग की ओर अपना कदम बढ़ाया। खेती ईश्वर भक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है।
हरेक व्यक्ति को अपने जीवन में उत्पादक श्रम के लिए खेती को अपनाना चाहिए। खेती ब्रह्मविद्या प्राप्त करने का साधन है।
नासिक की सर्वोदय सेवक सुश्री नलिनी नावरेकर ने विनोबा जी की 125 जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में यह विचार व्यक्त किए।
सुश्री नावरेकर ने कहा कि खेती में सारे भेदभाव दूर हो जाते हैं। व्यायामशाला अथवा जिम में जाकर अनुत्पादक श्रम करने से कोई राष्ट्र ऊंचा नहीं उठ सकता।
वैदिक ऋषि अगत्स्य ने कठोर परिश्रम कर ज्ञान प्रधान और कर्म प्रधान वर्ण का पोषण किया। हमारे यहां के प्रधान सेवक को भी आधा घंटा खेती के लिए निकालना चाहिए।
ऋषि खेती
सुश्री नावरेकर ने कहा कि विनोबा जी ने अपने जीवन में ऋषि खेती का प्रयोग किया। अपने स्वास्थ्य सुधार के लिए उन्होंने खेती को अपनाया।
वे इतने कमजोर हो गए थे कि केवल पांच मिनट ही खोद पाते थे। धीरे-धीरे दो घंटे तक पहुंचे। योग्य आहार और खेती से उनका वजन दस पौण्ड बढ़ गया।
खेती में काम करने से जिनका वजन कम है उनका बढ़ेगा और जिनका अधिक है उनका कम हो जाएगा। हल बैल की खेती से ऋषि खेती डेढ़ से दो गुना सस्ती होती है।
अहिंसक खेती
सुश्री नावरेकर ने कहा कि आज खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से अनाज जहरीला हो गया हैं। आज की पीढ़ी में इसके स्वास्थ्यगत दुष्परिणम दिखाई दे रहे हैं।
इसलिए उत्तम स्वास्थ्य के लिए अन्न में स्वावलंबन जरूरी हो गया है।
ऋषि खेती के प्रयोग बताते हैं कि यदि चार व्यक्ति दो-दो घंटे रोज खेत में काम करें तो ढाई एकड़ में खेती कर सकते हैं।
खेती से पेट की भूख मिटती है और मनुष्यता की रक्षा होती है।
मांसाहारी को जमीन ज्यादा
सुश्री नावरेकर ने बताया कि मांसाहारी की तुलना में शाकाहारी को जमीन की जरूरत कम होती है।
आज देश में खेती योग्य जमीन का आकार सिकुड़ता जा रहा है। इसके लिए शाकाहार को अपना समय की मांग है।
चीन में खेती में नुकसान को कम करने के लिए पक्षियों को मार दिया गया था, लेकिन यह देखा गया कि पक्षियों के न रहने से अधिक नुकसान हुआ। वे पक्षी कीट-पंतंगों को खाकर फसल की रक्षा करते थे।
खेती से श्रम की प्रतिष्ठा सुश्री नावरेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज व्यक्ति कम से कम श्रम में अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है।
यह समाज में अशांति का सबसे बड़ा कारण है। यह वृत्ति जुआ खेलने के समान है।
खेत में परिश्रम करने से इंद्रिय निग्रह करना सरल होता है।
प्रकृति के साथ संपर्क होने से ईश्वर का निरंतर स्मरण बना रहता है और चित्त व्यापक होता है।
वैदिक ऋषि तो कहता ही है कि वह ईश्वार प्राप्ति के लिए हाथ में हसिया लेकर काम कर रहा है।
खेती में नये प्रयोग
इन दिनों खेती में विज्ञान के माध्यम से प्रकृति विरुद्ध प्रयोग किए जा रहे हैं। इसकी दिशा बदलने की जरूरत है।
जमीन की पौष्टिकता, उन्नत बीज, जल संरक्षण, सजीव खेती और औजारों में सुधार करना विज्ञान का उद्देश्य होना चाहिए।
प्रेम सत्र के वक्ता श्री चैतन्य भाई ने उनके द्वारा शिक्षा में किए जा रहे प्रयोगों की विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि शिक्षा हासिल करने के छः प्रकार हैं सत्संग, सृष्टि के साथ संपर्क, लोक निरीक्षण, परमेश्वर का ध्यान और उद्योग। विनोबा जी ने आज की शिक्षा की कड़ी आलोचना करते हुए उसे निकम्मी बताया।
शिक्षा में पाठ्यपुस्तक की जगह अनुभव को स्थान देना चाहिए।
श्री चैतन्य भाई ने नदी दर्शन, कुम्हार का जीवन आदि से विद्यार्थियों के शिक्षण के प्रसंग सुनाये।
करुणा सत्र के वक्ता नेपाल के श्री चंद्रकिशोर भाई ने कहा कि विनोबा जी के भूदान आंदोलन की जरूरत नेपाल को भी है। उनके विचार नयी स्फूर्ति पैदा करते हैं।
उन्होंने कहा कि कोरोना काल ने एक बार फिर गांधी जी के विचारों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।
नेपाल भी गांव का देश है और गांव को स्वावलंबी बनाने की बात यहां पर भी लागू होती है।
दुनिया में स्वामित्व के कारण द्वंद्व पैदा हुआ है। विनोबा जी का स्वामित्व विसर्जन का विचार इस द्वंद्व से बचाने में सक्षम है।
गुजरात की सुश्री झंखना जोशी ने तकली के महत्व की जानकारी दी। संचालन श्री संजय राॅय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे