ऐतिहासिक जंग-ए- मैदान रहा है अफगानिस्तान
*डॉ.दुष्यंत कुमार शाह, एवं **डॉ.आर.अचल
सार- धार्मिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान के कब्जे में आने के बाद दुनियाँ की निगाहें आज अफगानिस्तान पर टिकी हुई है।इस दौर में अफगानिस्तान को लेकर तमाम सच्ची -झूठी खबरें तैर रही है। ऐसे दौर में अफगानिस्तान केइतिहास पर गौर करें तो प्राचीन काल ही यह जंग -ए मैदान रहा है। प्राचीन काल में इसे गंधार,गजनी,खुरासान आदि नामों से जाना जा जाता रहा है,17वीं शताब्दी में अहमदशाह अब्दाली के शासन काल से इसे अफगानिस्तान के नाम से जाना जाने लगा।यह पहाड़ी दुर्गम राज्य भारतीय,फारसी राजाओं,ब्रिटिश,सोवियत के अलावा स्थानीय कबीलों के सरदारो के कब्जे में रहा है।
धार्मिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान के कब्जे में आने के बाद दुनियाँ की निगाहें आज अफगानिस्तान पर टिकी हुई है।इस दौर में अफगानिस्तान को लेकर तमाम सच्ची -झूठी खबरें तैर रही है। अफगानिस्तानी नागरिको के भविष्य को लेकर दुनियाँ आशंकित है।पिछले तालिबानी शासन के कटु अनुभवके आधार पर महिलाओं,युवाओं,बच्चों के भविष्य की एक डरावनी तस्वीर उभर रही है।ऐसे में अभगानिस्तान के इतिहास को देखे तो यह जमीन प्राचीन काल से ही जंग का मैदान रही है।
पुरातत्वविदों के अनुसार इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में मध्य पाषाण काल से मनुष्य के रहने के प्रमाण मिलते है।यह सामान्य तथ्य है कि प्राचीन काल में पूरी दुनियाँ में कबीलों में लोग रहते थे।अफगानिस्तान भी इससे अलग नहीं रहाहै।
पहाड़ी कंदराओं की बसावट-आवागन की दुर्गमता ने आज भी अफगानिस्तान की 78 प्रतिशत आबादी कबीलाई जीवन से निकल नहीं पायी है,केवल 22 प्रतिशत बड़ी घाटियों में बसे शहरो रहने वाले लोग विकसित है।यही क्षेत्र प्राचीनकाल से विकसित रहे है,जिसमें कंधार का उल्लेख विशेष रूप में किया जाता है।महाभारत में इसका वर्णन गांधार के रूप में आता है।भीष्म पितामह द्वारा गांधार नरेश की पुत्री गांधारी का बलात् हरण कर अंधे धृतराष्ट्र से विवाह कराया जाता है।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ईसाई व ईस्लाम के जन्म के पहले अफगानिस्तान ही नहीं पूरी दक्षिण-पश्चिम एशिया भारतीय संस्कृति के प्रभाव में रहा है।
यह क्षेत्र एक ऐसे रणनीतिक स्थान पर अवस्थित है जो मध्य एशिया और पश्चिम एशिया को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ता है।इसलिए यह इलाका प्राचीन काल से ही जंग का मैदान बना हुआ है।वर्तमान अफगानिस्तान आज भी भारत,पाकिस्तान,चीन, तजाकिस्तान, कजाकिस्तान,तुर्कमेनिस्तान,ईरान से घिरा हुआ है। हालाँकि आज जो अफगानिस्तान है उसका मानचित्र व नामकरण 19वीं सदी के अन्त में तय हुआ,1700 ईस्वी से पहले दुनिया में अफगानिस्तान नाम का कोई राज्य नहीं था।इसके पहले इस क्षेत्र उल्लेख गांधार,गजनी,खुरासान नाम से मिलता है।
जहाँ तक इतिहास में इस क्षेत्र के कब्जे को देखा जाय तो 500 ईसापूर्व फ़ारस के हखामनी शासकों ने इसे कब्जे में लिया। सिकन्दर ने फारस विजय अभियान में गांधार को यूनानी साम्राज्य का अंग बना लिया ।यूनान के कमजोर पड़ने पर यह शकों के अधीन हो गया, जो स्कीथियों के भारतीय अंग थे,कालान्तर मेंशकों ने पूरी तरह भारतीय संस्कृति को अपना लिया । शक, शैव सम्प्रदाय को मानने वाले थे।इसके पश्चात ईसापूर्व 230 में पूरा गांधार क्षेत्र मौर्यवंश के अधीन हो गया,सम्राट अशोक काल में यहाँ बौद्ध धर्म का केन्द्र बन गया था।सम्राट अशोक के वंशजो के कमजोर होने पर फारस के पार्शियन,सासानी शासकों ने कब्जा कर लिया,इस क्रम में ईस्लाम के उदय के पूर्व ईरान का सासनी वंश शासन रहा।इसके बाद अरबों ने 707 ईस्वी में ख़ुरासान अधिकार कर लिया ।इस समय गांधार के बजाय खुरासान प्रमुख शासन का केन्द्र बन गया।इसके बाद यहाँ फारसी मूल,परन्तु ईस्लाम (सुन्नी) ग्रहण कर चुके सामानी वंश का कब्जा हुआ। जिसे 987ईस्वी में गजनीवियों ने खदेड़ कर कब्जा कर लिया।इस समय यह क्षेत्र गजनी के नाम से जाना जाने लगा।1148 ईस्वी में गोरी वंश के शासकों ने गजनी पर अधिकार कर 1215 ईस्वी तक शासन किया ।ये सभी शासक फारस मूल के थे।
इसके बाद इतिहास का मध्यकाल शुरु होता है।जिसमें 300 सालों तक कबीलों में बँटा हुआ उथल-पुथल मचा रहा, परन्तु15वीं शताब्दी में गिल्जाई कबीले के सरदार बहलोल लोदी ने कब्जा किया । यह कबीला ताजिक और तुर्को का मिश्रण था जिसे पश्तो या पश्तून कहा जाने लगा। लगभग १४वीं शताब्दी तक इनकी स्थिति गरीबा और गुमनामी की थी। कठोर जीवन शैली वपशुपालन इनका पेशा था । यदा कदा अपने संपन्न पड़ोसी क्षेत्र पर चढ़ाई करके लूटपाट करते रहते थे। फख्तूनो के स्वतंत्र तथा लड़ाकू स्वभाव ने महमूद गजनवी का ध्यान आकृष्ट किया और अल-उत्बी के अनुसार उसने उन्हें सिपाहसालार बना लिया। गोरीवंशीय प्रभुता के समय अफ़गान लोग दु:साहसी और पहाड़ी विद्रोही मात्र रहे। भारत के इलबरी शासकों ने अफ़गान सैनिकों का उपयोग अपनी चौकियों को मज़बूत करने और अपने विरोधी पहाड़ी क्षेत्रों पर कब्जा जमाने के लिए किया।
इस क्षेत्र के शासको में गजनवी व गोरी भारत मे लूट-पाट करके लौट गये।बहलोल लोदी के पुत्र सिकंदर लोदी,पौत्र ईब्राहिम लोदी ने दिल्ली पर शासन किया ।दिल्ली पर काबिज होने के बाद गांधार क्षेत्र पर ईब्राहिम की पकड़ कमजोर पड़ गयी। इसका लाभ उठाकर उजबेकिस्तानी सरदार तैमूर व चंगेज के वंशज ज़हीरुद्दीन मुहम्मद उर्फ़ बाबर ने 1504 ई. में काबुल तथा 1507 ई. में कंधार पर कब्जा कर बादशाह को बादशाह घोषित कर लिया ।इधर दिल्ली के तख्त से ईब्राहिम लोदी को हटाने के लिए अफगान सरदार दौलत खाँ व राणा कुम्भा नें बाबर को बुलाया । पानीपत में ईब्राहिम लोदी को हरा कर दिल्ली पर काबिज होने के बाद अफगानिस्तान में बाबर कमजोर हो गया,जिससे यहाँ1688 से 1748 तक नादिरसाह तथा अहमदशाह अब्दाली का कब्जा हो गया।
अहमद शाह अब्दाली पश्तून कबीले का सरदार था जिसने इस पूरे क्षेत्र पर पहली बार आधिपत्य स्थापित किया। अब्दाली को अफगान क़बीलों की पारंपरिक पंचायत जिरगा ने शाह बनाया था, जिसकी बैठक पश्तूनों के गढ़ कंधार में हुई थी। अहमद शाह अब्दाली ने 25 वर्ष तक शासन किया। ताजपोशी के वक़्त, साबिर शाह नाम के सूफ़ी दरवेश ने अहमद शाह अब्दाली को दुर-ए-दुर्रान का ख़िताब दिया था जिसका मतलब होता है मोतियों का मोती। इसके बाद से अहमद शाह अब्दाली और उसके क़बीले को दुर्रानी के नाम से जाना जाने लगा। अब्दाली, पश्तूनों और अफ़ग़ान लोगों का बेहद अहम क़बीला है।इसी समय इस क्षेत्र को अफगानिस्तान के नाम से जाना जाने लगा।अब्दाली के लूटपाट से तंग आकर 1803 ईस्वी के बाद सिक्ख सम्राज्य के महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानिस्तान को अपने अधीन कर लिया ।1839 ई. में रणजीत सिंह के मृत्यु के बाद उनके पुत्र दलीप सिंह कमजोर शासक सिद्ध हुए । इस समय भारत में अग्रेजी शासन का विस्तार हो रहा था । अंग्रेजों ने सिक्ख-अफगानों को परास्त कर अफगानिस्तान को ब्रिटिश इंडिया के अधीन कर लिया ।
इस समय अफगानिस्तान में यूरोपीय प्रभाव बढ़ता गया। 1919 ई. में अफ़ग़ानिस्तान ने विदेशी ताकतों से एक बार फिर स्वतंत्रता प्राप्त किया ।अमानुल्लाह खान अफगानिस्तान के शाह बने । अमानुल्ला खान को इतिहास मेंसमय से आगे सोचने वाले शासक के तौर पर याद किया जाता है।लंबे समय तक यूरोप में रहने के कारण अमानुल्लाह खान पश्चिमी संस्कृति से काफी प्रभावित थे। वे अफगानिस्तान को एक आधुनिक विकसित राज्य बनाना चाहते थे। वे हर वो विकास करना चाहते थे,जिससे अफगानिस्तान को दुनियाँ एकसशक्त विकसित देश के रूप में देखा जाय । आज से 102 साल पहले अमानुल्लाह खान शिक्षा का महत्व समझते हुए,आधुनिक शिक्षा पद्धिति कोअफगानिस्तान में लागू किया,विज्ञान,प्रौद्योगिकी,सिविल सेवा,संचार का विकास किया,परम्परिक परिधानों व रूढ़ियों को प्रतिबंधित किया ।
राजतंत्रीय शासन व्यवस्था के बावजूद एक लोकतंत्र की तरह अफगानिस्तान विकसित किया,परन्तु यह विकास का दौर अभी केवल शहरी इलाके तक सिमित था।इसलिए दुर्गम ग्रामीण कबाइली रूढ़िवादी बने रहे। सन्1933 से 1973ईस्वी के बीच जहीर शाह का शासन आया,इसके बाद पुनः एक बार अफगानिस्तान अव्यवस्था का शिकार हो गया । सन्1973 ई में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य, जहीर शाह के बहनोई द्वारा तख्ता पलट कर दिया गया,देश में फिर से अस्थिरता आ गई। सोवियत सेना ने कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग के लिए देश में कदम रखा,इस समय पूँजीवादी अमेरिका व समाजवादी सोवियत में शीतयुद्ध का दौर था।इस लिए सोवियत प्रभाव के खिलाफ अमेरिका प्रायोजितमुजाहिदीन तालिबान ने सोवियत सेनाओं के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया,ये तालिबान अविकसित रूढ़िवादी धार्मिक कट्टर कबाइली लोगों का संगठन था,बाद में अमेरिका तथा पाकिस्तान के सहयोग से सोवियत को वापस जाना पड़ा ।अफगानिस्तान कट्टर रूढ़िवादी तालिबानियों के कब्जे में आ गया,परन्तु 11 सितम्बर 2001 के हमले में मुजाहिदीन के सहयोगी होने की खबर के बादतालिबानियों पर अमेरिका ने हमला कर दिया । तालिबानी 6 दिसंबर को अफगान राजधानी काबुल से भाग खड़े हुए। अमेरिका ने हामिद करजई के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन कराया।जिसकी सुरक्षा के लिए उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अपने अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल तैनातकिया।
एक नई प्रणाली के तहत अफगानिस्तान का पहला चुनाव 9 अक्टूबर, 2004 को हुआ, जिसमें 70 प्रतिशत मतदान हुआ । करजई को 55 फीसदी वोट मिले,लेकिन इसी वक्त तालिबान दक्षिण और पूर्व में फिर से संगठित होकरविद्रोह करना शुरू कर दिया । अंततः2021 अगस्त में विदेशी सैनिकों की वापसी शुरू होते ही तालिबान आतंकियों ने पूरे अफगानिस्तान में बिजली की रफ्तार में हमले शुरू कर दिए, जिसका परिणाम वर्तमान में अगस्त 2021में अफगानिस्तान पर पुनःतालिबानियों पर कब्जा हो गया।
इस तरह ऐतिहासिक जंग-ए- मैदान रहा है अफगानिस्तान,आगे भी ऐसी स्थितियों से मुक्ति की संभावना नहीं दिखती है।
अफगानिस्तान में 22 % आबादी शहरी है और बाकी बची 78 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। 22 % शहरी आबादी को छोड़कर,78% ग्रामीण (कबाईली)आदिम जातीय समूह के है। बड़ा जातीय समूह पश्तुन है, इसके बाद ताजिक, हजारा, उजबेक, एमाक, तुर्कमेनिस्तान, बलूच और कुछ अन्य लोग हैं। 22 प्रतिशत शहरी अभिजात वर्ग है,जिनकी जीवन शैली पाश्चात्य दुनियाँ जैसी है। ग्रामीण लोग अभी भी कट्टर रूढ़िवादी है,इसलिए सरकारी शिक्षा व सुविधाओं से दूर रहते है।तालिबान लड़ाके इसी वर्ग से आते है।
*डॉ.दुष्यंत कुमार शाह, *असिस्टेंट प्रोफेसर, इतिहास संकाय,किरोड़ीमल कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
**डॉ.आर.अचल * *संपादक-ईस्टर्न साइंटिस्ट जर्नल, लेखक,कवि, स्तम्भकार एवं स्वतंत्र विचारक