आचार्य नरेन्द्रदेव: समाजवादी विचारधारा की नई प्रासंगिकता

प्रोफ़ेसर आनंद कुमार
प्रोफेसर आनंद कुमार
आचार्य नरेन्द्रदेव (31 अक्टूबर 1889 – 19 फरवरी 1956) केवल एक राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि राष्ट्रवादी, समाजवादी और शिक्षाविद् भी थे। वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, किसान आंदोलन और समाजवादी राजनीति के महान चिंतक थे। उनके विचार बौद्ध दर्शन, मार्क्सवाद, और भारतीय संस्कृति के गहरे अध्ययन से प्रेरित थे।
उन्होंने स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र की जिस विचारधारा को प्रस्तुत किया, वह आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। लेकिन स्वतंत्र भारत में उनकी अनदेखी की गई। कांग्रेस छोड़ने के बाद उनकी राजनीतिक यात्रा संघर्षों से भरी रही और समाजवादी आंदोलन के विघटन से वे आहत हुए। हालांकि, आज भारत जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है, वे आचार्य नरेन्द्रदेव की वैचारिक विरासत को पुनः प्रासंगिक बनाती हैं।

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आचार्य नरेन्द्रदेव का समाजवाद: आज की चुनौतियों का समाधान?
1. भारतीय संस्कृति और समाजवाद का संगम
आचार्य नरेन्द्रदेव का समाजवाद पश्चिमी ढांचे की नकल नहीं था। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति में रचे-बसे मूल्यों के अनुरूप विकसित किया। उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति का आधार वसुधैव कुटुम्बकम है, यानी समस्त विश्व एक परिवार है। उन्होंने कहा:
“हमारी संस्कृति में वे सभी तत्व मौजूद हैं, जिनसे हम नवयुग और नवमानव का निर्माण कर सकतेहैं।”
2. राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा
आचार्य नरेन्द्रदेव संकीर्ण राष्ट्रवाद और सांप्रदायिक विभाजन के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि धर्म के आधार पर राष्ट्र नहीं बन सकते। उन्होंने विभाजन का विरोध किया क्योंकि इससे अल्पसंख्यकों में अलगाववाद की भावना स्थायी रूप से बनी रहती।
3. लोकतंत्र बनाम सत्ता की राजनीति
स्वतंत्रता के बाद भारत में जिस प्रकार लोकतंत्र को मात्र चुनावी जीत तक सीमित कर दिया गया, उसे आचार्य नरेन्द्रदेव ने खतरनाक बताया था। उनका मानना था कि अगर लोकतंत्र में बलिदान, तपस्या और जनता की सेवा का भाव नहीं रहेगा, तो यह सिर्फ सत्ता हथियाने का साधन बन जाएगा।
उनकी चेतावनी आज सच होती दिख रही है, जहां राजनीति व्यक्तिपूजा और जातीय-सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का रूप ले चुकी है।
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क्या भारत आचार्य नरेन्द्रदेव की चेतावनी को समझ पाया?
1. आर्थिक असमानता और समाजवाद की अनदेखी
उन्होंने कहा था कि यदि आर्थिक संसाधनों पर पूंजीपतियों का एकाधिकार बना रहेगा तो लोकतंत्र केवल अमीरों के हाथ की कठपुतली बन जाएगा। आज भारत में आर्थिक असमानता बढ़ रही है, और धनी वर्चस्ववादी ताकतों का प्रभाव लोकतांत्रिक संस्थाओं पर गहराता जा रहा है।
2. लोकतंत्र का पतन और चुनावी मशीनरी
उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि अगर राजनीति सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित रह गई, तो राजनीतिक दल “लोकतंत्र के प्रहरी” नहीं, बल्कि “चुनावी मशीन” बन जाएंगे। आज भारत में चुनावी प्रक्रिया में धनबल और बाहुबल का प्रभाव साफ दिखाई देता है।
3. सामाजिक न्याय और शिक्षा का महत्व
आचार्य नरेन्द्रदेव मानते थे कि बिना शिक्षा के लोकतंत्र संभव नहीं है। उन्होंने कहा था कि सहकारी आंदोलन ही लोकतंत्र को मजबूत करने का सबसे बड़ा साधन हो सकता है।
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आचार्य नरेन्द्रदेव की विचारधारा की वर्तमान प्रासंगिकता
1. नवउदारवाद और समाजवादी दृष्टिकोण
आज दुनिया पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के दुष्प्रभावों से जूझ रही है। बड़े कॉरपोरेट्स के हाथों में संसाधनों का केंद्रीकरण गरीबों और श्रमिक वर्ग के शोषण को बढ़ा रहा है। आचार्य नरेन्द्रदेव का आर्थिक दृष्टिकोण सामाजिक समानता और सहकारी प्रणाली पर आधारित था, जो इन समस्याओं का समाधान दे सकता है।
2. सांप्रदायिकता और बहुसांस्कृतिक समाज
वर्तमान समय में धार्मिक ध्रुवीकरण राजनीतिक एजेंडा बन चुका है। आचार्य नरेन्द्रदेव ने पहले ही चेतावनी दी थी कि यदि धर्म के आधार पर राजनीति होगी, तो समाज में बंटवारा और हिंसा बढ़ेगी। आज उनका यह कथन पहले से कहीं अधिक सच प्रतीत होता है।
3. लोकतंत्र का पुनर्निर्माण
भारत का लोकतंत्र अब केवल चुनावी राजनीति तक सीमित रह गया है। आचार्य नरेन्द्रदेव ने कहा था कि जनता को केवल वोट देने वाली भीड़ नहीं, बल्कि लोकतंत्र का सक्रिय भागीदार बनना चाहिए।
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निष्कर्ष: आचार्य नरेन्द्रदेव की शिक्षाओं से क्या सीखा जाए?
✔ राजनीति को सत्ता की होड़ से निकालकर जनता की सेवा का माध्यम बनाना होगा।
✔ धर्म और राजनीति के घालमेल को रोकना जरूरी है।
✔ संपत्ति का पुनर्वितरण और सहकारी आंदोलन का विस्तार लोकतंत्र को मजबूत कर सकता है।
✔ सर्वोच्च प्राथमिकता शिक्षा और सामाजिक न्याय को दी जानी चाहिए।
आज जब लोकतंत्र संकट में है, आर्थिक असमानता बढ़ रही है, और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हो रहा है, तब आचार्य नरेन्द्रदेव की वैचारिक विरासत को अपनाने की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
आइए, उनके विचारों को फिर से समझें और अपने समाज में लागू करें।
आचार्य नरेन्द्रदेव अमर रहें!
समाजवाद ज़िंदाबाद!
जय हिंद, जय जगत!
प्रमुख कीवर्ड:
✔ आचार्य नरेन्द्रदेव विचारधारा
✔ भारतीय समाजवाद के स्तंभ
✔ लोकतंत्र और समाजवाद
✔ आचार्य नरेन्द्रदेव और वर्तमान भारत
लेखक परिचय
प्रोफेसर आनंद कुमार: समाजशास्त्री, गांधीवादी और लोकतंत्र के प्रहरी
प्रोफेसर आनंद कुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), दिल्ली के एक प्रतिष्ठित समाजशास्त्री और गांधीवादी कार्यकर्ता हैं, जो लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक रहे हैं। भारतीय समाज और राजनीति पर उनका गहरा विश्लेषण उन्हें एक जनवादी बौद्धिक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अलग पहचान दिलाता है। वे समाजवादी विचारधारा, चुनाव सुधार, और नागरिक अधिकारों के लिए निरंतर सक्रिय रहे हैं। छात्र आंदोलनों से लेकर सामाजिक और राजनीतिक सुधार अभियानों तक, उनकी उपस्थिति न्याय, समता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए हमेशा रही है। उन्होंने भारतीय राजनीति और सामाजिक संरचना को समझने के लिए महत्वपूर्ण शोध कार्य किए हैं और कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के महत्व को रेखांकित किया है।