आयाम

कमलेश कुमारी*

हे.. न्यायसंगत धर्मरूप, 

तुम क्यों धृतराष्ट्र-से 

‘किंकर्तव्यविमूढ़? धरे हुए मेरे ‘अनिश्चित कंधे’ पर हाथ

अघोर अंधी दिशा बह रहे हो साथ? 

मैं ‘नीति-अनीति’ राजनीति 

और स्थिति ऐसी.. 

उबर कर, डूबनेवाले जैसी! 

छोड़ दो मेरा हाथ, 

अन्यथा तुम भी….! 

डूबना नहीं तुम्हारी परिणति… 

तुम्हें तो उबारनी रही मनुष्यता ; 

जो गिर रही‌ है दिन प्रतिदिन; 

अंधे, तलहीन कुएं में बाल्टी-सी 

शायद ईश्वर के हाथ से, 

छूटी होगी डोर… 

किन्हीं ऐसे अचूक पलों में, 

जब ‘धर्म के अध्याय’ का, 

खुला होगा पृष्ठ कोई… 

किंतु मुझ संग डूब कर, 

तुम क्या मुंह दिखाओगे ईश्वर को??

*श्रीमती कमलेश कुमारी, वर्तमान में, हरियाणा राज्य के शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। 

संपर्क: हाउस न. 1885 ए, सेक्टर-65, बल्लभगढ़-124004, (फरीदाबाद, हरियाणा)   

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