शब्दों से दूर होते समय में एक कविता
–प्रदीप कपूर
घर की अलमारी में सजी किताबें
कई पीढ़ियों की मेहनत की प्रतीक हैं
हर किताब के पीछे कुछ न कुछ कहानी होती है
कुछ किताबों के पीछे
इतवार को चौक के नक्खास में लगने वाले बाज़ार से
लगातार जाने के जुनून की कहानी है।
कुछ किताबें जन्मदिन या एनिवर्सरी का उपहार हैं
कुछ किताबें ऐसी भी हैं
जो पिता से किसी खास मौके पर मिलीं थीं।
कुछ किताबें पुस्तक मेलों की याद दिलाती हैं
कुछ खास किताबें भी हैं
जो किसी डिबेट में प्राइज के तौर पर मिली थीं कभी
कुछ स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटी वाली भी हैं
जो मेरिट लिस्ट में आने पर बतौर घर तक पहुंची थीं।
कुछ किताबें अपने लॉन्च होने की याद दिलाती हैं
अपनी लॉन्चिंग पर बाहर खरीद कर लेखक के
हस्ताक्षर कराने के अनमोल मौके की याद दिलाती हुई
कुछ किताबें मांग कर लाई गई भी होती हैं
वे जिनको हम अपनी सुविधा अनुसार
वापस करना भूल जाते हैं।
पिता या दादा के ज़माने की किताबों पर
अपने बचपन में लिखे हुए नाम भी दिख जाते हैं कई बार
अलमारी के सामने खड़े होकर किताबें देखने पर उनकी कहानी याद आती है।
किताबें जहां कहीं भी हों
किताबें हमारे पास होती हैं
किताबें अनमोल होती हैं।
शब्दों से दूर होते समय में एक कविता
प्रदीप कपूर
घर की अलमारी में सजी किताबें
कई पीढ़ियों की मेहनत की प्रतीक हैं
हर किताब के पीछे कुछ न कुछ कहानी होती है
कुछ किताबों के पीछे
इतवार को चौक के नक्खास में लगने वाले बाज़ार से
लगातार जाने के जुनून की कहानी है।
कुछ किताबें जन्मदिन या एनिवर्सरी का उपहार हैं
कुछ किताबें ऐसी भी हैं
जो पिता से किसी खास मौके पर मिलीं थीं।
कुछ किताबें पुस्तक मेलों की याद दिलाती हैं
कुछ खास किताबें भी हैं
जो किसी डिबेट में प्राइज के तौर पर मिली थीं कभी
कुछ स्कूल कॉलेज और यूनिवर्सिटी वाली भी हैं
जो मेरिट लिस्ट में आने पर बतौर घर तक पहुंची थीं।
कुछ किताबें अपने लॉन्च होने की याद दिलाती हैं
अपनी लॉन्चिंग पर बाहर खरीद कर लेखक के
हस्ताक्षर कराने के अनमोल मौके की याद दिलाती हुई
कुछ किताबें मांग कर लाई गई भी होती हैं
वे जिनको हम अपनी सुविधा अनुसार
वापस करना भूल जाते हैं।
पिता या दादा के ज़माने की किताबों पर
अपने बचपन में लिखे हुए नाम भी दिख जाते हैं कई बार
अलमारी के सामने खड़े होकर किताबें देखने पर उनकी कहानी याद आती है।
किताबें जहां कहीं भी हों
किताबें हमारे पास होती हैं
किताबें अनमोल होती हैं।