एक बलराम ऐसा भी…

अमन गुप्ता

बलराम 11साल का मासूम लड़का, जिसके शर्ट में बटन नहीं हैं, आँखों में मायूसी है, चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा है, पैंट में ज़िप नहीं है, और पैरों में जो चप्पल हैं उसके पैर से बड़ा है… पूछने पर मालूम हुआ सड़क पर मिला इसलिए पहन लिया।

जिसक नाम बलराम है वो न बलशाली है और न ही राजा है और ना ही उसके पास कोई साम्राज्य। वो रात दिन मेहनत करता है ताकि अपने बूढ़े माँ बाप को दो वक़्त की रोटी खिला पाए। उसे आज की ही नहीं अपने भविष्य की भी चिंता है क्योंकि उसकी दो बहनें भी हैं, उनकी शादी करनी है और कुछ ख्वाब खुद के भी हैं जो उसको पूरा करना है।

बलराम एक मुसहर जाति का 11 वर्ष का बच्चा है । उसके परिवार में एक भाई, दो बहने, माँ और पिता हैं। पिता की जबसे दुर्घटना हुई है, तब से बलराम ने अपने घर की जिम्मेदारी अपने कंधो पर उठा लिया। वो रोज सुबह अपने घर से काम की खोज में निकलता है और उम्मीद करता है कि आज उसे कोई काम मिलेगा, जिससे कुछ पैसे मिले, ताकि वो अपने परिवार का पेट पाल सके।

आजकल शादियों का मौसम है इसलिए बलराम को आजकल काम जल्दी मिल जाता है। वो शादियों में अपने छोटे से सिर पर बड़े बड़े लाइट्स को लेकर बारात के साथ घूमता है। चेहरे पर मायूसी रहती है पर उम्मीद होती है की जल्दी से बारात घूम ले और उसके मालिक उसको 50 रु या 100 रूपये दे ताकि वो घर जाते वक़्त अपने परिवार के लिए खाना ले जा सके।

वो रोज लगभग 100 रूपये कमा लेता है और उस रूपये से अपने पापा की दवाइयां, और परिवार के लिए खाना खरीदता है….. जैसे तैसे वे लोग ज़िन्दगी काट रहे है। बलराम रोज सुबह से शाम तक भटकता है काम के लिए। ताकि वो रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खरीद सके।

बलराम गरीब है, कुपोषण का शिकार लगता है, उसका पढ़ाई से कोई नाता नही है और मजदूरी करने को मजबूर है। बलराम जैसे ना जाने कितने और बच्चे होंगे जो वक़्त से पहले बड़े हो जाते है और अपने परिवार के लिए संघर्ष करते रहते हैं।

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